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विपक्ष ने खड़ी की बहुमत की चुनौती, हरियाणा सरकार पर संकट गहराया

विपक्ष ने खड़ी की बहुमत की चुनौती, हरियाणा सरकार पर संकट गहराया

हरियाणा में एक बार फिर बहुमत को लेकर सियासी उठापटक शुरू हो गई है। निर्दलीय विधायक के निधन के बाद भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के पास अब सिर्फ 42 विधायक बचे हैं, जबकि विपक्ष में 45 विधायक हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा की भाजपा सरकार पर एक बार फिर बहुमत को लेकर संकट गहरा गया है। राज्य विधानसभा में गुरुग्राम के निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन के बाद सत्ताधारी गठबंधन के पास अब सिर्फ 42 विधायक बचे हैं, जबकि विपक्ष में 45 विधायक हैं। 

विपक्षी दलों ने इसी का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली सरकार पर फ्लोर टेस्ट करवाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) दोनों ने गवर्नर को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री से बहुमत साबित करने की मांग की है।

इसके अलावा विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सड़कों पर भी उतरना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों चंडीगढ़ और अन्य जिलों में विरोध प्रदर्शन किए गए। कार्यकर्ताओं ने विधानसभा का भी घेराव किया। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने बहुमत खो दिया है और उसे इस्तीफा देकर बहुमत वाली सरकार बनाने का रास्ता साफ करना चाहिए। हालांकि सरकार इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है। 

वर्तमान में हरियाणा विधानसभा में कुल 87 विधायक हैं और बहुमत का आंकड़ा 44 का है। भाजपा के 40 विधायकों के अलावा सत्ताधारी गठबंधन में हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) का एक और निर्दलीय नैनपाल रावत का समर्थन मिलकर कुल 42 विधायक हैं। 

वहीं विपक्ष में कांग्रेस के 30, जेजेपी के 10, इनेलो के एक और चार निर्दलीय विधायक मिलकर कुल 45 विधायक हैं। हालांकि जेजेपी ने अपने दो विधायकों जोगीराम सिहाग और राम निवास गंगवा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की मांग की है। अगर उनकी सदस्यता समाप्त हो गई तो विपक्ष के पास भी 43 विधायक ही बचेंगे। 

इस प्रकार सैनी सरकार और विपक्ष की ताकत बराबर हो जाएगी। लेकिन मुख्यमंत्री नायब सैनी अगर 4 जून को करनाल से होने वाले उपचुनाव जीत गए तो भाजपा का पलड़ा भारी हो जाएगा। ऐसे में विपक्ष उन्हें फ्लोर टेस्ट करवाने के लिए मजबूर कर सकता है।

कुल मिलाकर हरियाणा में एक बार फिर विवादास्पद राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस संकट को कैसे सुलझाया जाता है या फिर इसे लंबित रखा जाता है। लेकिन इस बीच जनता के मुद्दे पिछड़ते जा रहे हैं, यह तय है।

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