
हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। आखिरकार, दोनों दलों को 5-5 सीटें हासिल हुईं। यह भाजपा के लिए 2014 के बाद सबसे खराब प्रदर्शन रहा, जबकि कांग्रेस ने पिछले 10 साल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
सत्ता का नया समीकरण:
चुनाव परिणाम ने हरियाणा की सियासी परिदृश्य में बदलाव की ओर इशारा किया है। भाजपा और कांग्रेस के बराबर प्रदर्शन से एक नया सत्ता समीकरण उभरा है। दोनों दलों को अब राज्य में अपनी ताकत बढ़ाने और विपक्ष को कमजोर करने की कोशिश करनी होगी। हरियाणा में 10 साल से सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के खिलाफ जनता में काफी नाराजगी थी। लोग अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे, लेकिन नेतृत्व ने इसकी अनदेखी की। जैसे ही मौका मिला, लोगों ने वोट के जरिए अपना गुस्सा निकाला।
भाजपा की कमजोरियां:
भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे कई कारण रहे। सत्ता विरोधी लहर, जाटों और किसानों की नाराजगी, बेरोजगारी, पोर्टल राज से परेशानी और अग्निवीर योजना का विरोध मुख्य कारण रहे।
- मोदी सरकार की अग्निवीर योजना ने हरियाणा के युवाओं और उनके परिवारों को नाराज कर दिया, खासकर अहीरवाल क्षेत्र में जहां सेना में भर्ती होने का शौक ज्यादा है। भाजपा ने इस नाराजगी को गंभीरता से नहीं लिया, जबकि कांग्रेस ने इसका लाभ उठाया।
- बढ़ती बेरोजगारी भाजपा उम्मीदवारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। हरियाणा में बेरोजगारी दर बहुत बढ़ गई है। मोदी सरकार ने स्वीकार किया कि राज्य में पिछले 8 सालों में बेरोजगारी दर तीन गुना बढ़ गई। कांग्रेस ने इस मुद्दे को अच्छी तरह से उठाया।
- हरियाणा के जाट और किसान समुदाय भाजपा से काफी नाराज थे। सरकार ने न केवल इनकी अनदेखी की, बल्कि गैर-जाटों को प्राथमिकता देकर जाटों के जख्मों पर नमक भी छिड़का। चुनाव प्रचार के दौरान किसानों पर मुकदमे भी दर्ज किए गए। इसका खामियाजा सिरसा, हिसार और अंबाला में भुगतना पड़ा।
- भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नाम पर भाजपा सरकार ने कई योजनाओं के लिए अलग-अलग पोर्टल शुरू किए। लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी और अन्य समस्याओं के कारण लोग परेशान हो गए। कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा ने इसे "पोर्टल राज" कहा। साथ ही, भाजपा के कुछ विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल से भी लोग नाराज थे।
- भाजपा के मंत्रियों और विधायकों के काम करने के तरीके से भी लोग नाराज थे। इसलिए जब मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नये मुख्यमंत्री बनाए गए, तो ज्यादातर मंत्रियों को भी बदल दिया गया। लेकिन इससे पार्टी को कोई खास फायदा नहीं हुआ।
कांग्रेस की वापसी:
दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपने खराब प्रदर्शन से उबरने में कामयाबी हासिल की। पार्टी ने बेरोजगारी, महंगाई और भाजपा की गलत नीतियों को मुद्दा बनाया। इसके अलावा, पार्टी ने कुछ सीटों पर मजबूत उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिससे वोटरों को आकर्षित करने में मदद मिली।
क्षेत्रीय दलों का पतन:
चुनाव में सबसे बड़ा झटका क्षेत्रीय दलों को लगा। इनेलो और जेजेपी के उम्मीदवारों को अधिकांश सीटों पर जमानत तक नहीं बचा पाए। चौटाला परिवार के सभी सदस्य चुनाव हार गए, जिसमें भाजपा के रणजीत सिंह चौटाला, जेजेपी की नैना चौटाला और इनेलो के अभय सिंह चौटाला और सुनैना चौटाला शामिल हैं।
जातीय समीकरण का असर:
चुनावी नतीजों पर जातीय समीकरणों का भी काफी असर देखने को मिला। भिवानी-महेंद्रगढ़ में जाट-अहीर समीकरण ने भाजपा को जीत दिलाई। वहीं, फरीदाबाद में गुर्जर समुदाय और अहीरवाल में राव इंद्रजीत सिंह का रसूख भाजपा के लिए लाभकारी रहा। कुरुक्षेत्र में नवीन जिंदल का पर्सनल रसूख उनकी जीत का कारण रहा।
इस तरह, हरियाणा के चुनावी नतीजों ने राज्य की राजनीति में नए युग की शुरुआत की है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को अब अपनी रणनीतियां बनानी होंगी ताकि वे अगले विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
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