एक तरफ हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश का माहौल गरमाया हुआ है, वहीं दूसरी ओर राम रहीम की पैरोल याचिका ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है, लेकिन इसी बीच चुनाव आयोग ने न केवल राम रहीम बल्कि राज्य सरकार के सामने भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
दरअसल, हरियाणा के रोहतक जिले के सुनारिया जेल में बंद बलात्कार-हत्या के दोषी गुरमीत राम रहीम ने एक बार फिर 20 दिन की पैरोल की याचिका दायर की है, जबकि वो अभी हाल ही में 21 दिन के लिए फरलो पर बाहर था। अब इसे लेकर चुनाव आयोग ने सवाल खड़े कर दिए। राम रहीम के पैरोल याचिका पर राज्य निर्वाचन आयोग के मुख्य अधिकारी पंकज अग्रवाल ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।
आखिर क्या मज़बूरी या वजह है ?
राम रहीम की पैरोल याचिका पर राज्य निर्वाचन आयोग एक्शन मोड में है और मुख्य अधिकारी पंकज अग्रवाल ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। पंकज अग्रवाल ने राज्य सरकार से सवाल किया है कि राम रहीम के आवेदन को स्वीकार करने के लिए कोई बाध्यकारी परिस्थितियां हैं तो उससे अवगत कराया जाए। वहीं चुनाव आयोग ने राम रहीम ने भी पैरोल याचिका पर सवाल किया है कि आखिर क्या मज़बूरी या वजह है ?
जानिए ये बताई गई है वजह
वैसे तो अक्सर देखते में आता है कि राम रहीम पैरोल पर जेल से बाहर आते ही रहते हैं, लेकिन चुनाव के दौरान उनका बाहर आना काफी कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देता है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। अब राम रहीम की पैरोल वाली याचिका में कहा गया है कि उसे यूपी के बरनावा स्थित डेरा आश्रम में काम देखना है। इस पर अग्रवाल ने कहा, हम प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं।’ रस्तोगी, डीजीपी (जेल) मुहम्मद अकिल और मुख्य सचिव टीवीएसएन प्रसाद प्रशासन की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी के लिए मौजूद नहीं थे। वहीं भाजपा पदाधिकारी भी चुप्पी साधे हुए हैं।
कथित संलिप्तता का संकेत
वहीं इस विषय में कांग्रेस प्रवक्ता केवल ढींगरा ढींगरा ने कहा, “पहले भी उन्हें चुनाव से पहले जेल से रिहा किया गया था, इसलिए, यह चिंता का विषय है। उनकी रिहाई से वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है, क्योंकि उनके बहुत बड़े अनुयायी हैं। अगले 20 दिनों के लिए पैरोल दिए जाने की स्थिति में, राम रहीम चार साल में कुल 275 दिनों के लिए जेल से बाहर रहा है, जिसमें हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में नौ मौकों पर विधानसभा, नगरपालिका, संसदीय और पंचायत चुनाव हुए या होने हैं। उन्होंने कहा हालांकि पैरोल के लिए आवेदन करना कैदी का अधिकार है, लेकिन राम रहीम की याचिका चुनाव के समय में सिरसा स्थित डेरा की कथित संलिप्तता का संकेत देता है।
पैरोल की अर्जी पर रामचंद्र छत्रपति के बेटे प्रतिक्रिया
वहीं पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने रविवार को अपने पिता के दोषी हत्यारे, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के मौके पर 20 दिन की पैरोल की अर्जी पर प्रतिक्रिया दी। अंशुल ने हरियाणा सरकार के एक्शन पर विपक्षी दलों की चुप्पी को लेकर भी हैरानी जताई। अंशुल ने अपने पिता को इंसाफ दिलाने के लिए 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में डेरा प्रमुख को जनवरी 2019 में दोषी ठहराया गया।
अंशुल ने कहा, ‘उन्होंने गंभीर अपराध किए और उन्हें दोषी ठहराया गया, लेकिन अब सार्वजनिक रूप से उनका कोई महत्व नहीं है। मैं कहूंगा कि एक सर्वेक्षण कराएं या पिछले कुछ चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करें, सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा कि डेरा प्रमुख का कोई प्रभाव नहीं था। अंशुल कहा सौभाग्य से, हमें न्याय मिला, लेकिन जब भी वह रिहा होते हैं तो हमें दुख होता है. सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए 2022 में कानून में संशोधन किया कि वह कट्टर की श्रेणी में न आएं. अपराधी रिहा हो जाते हैं और सरकार को ऐसे अपराधियों पर मेहरबानी नहीं करनी चाहिए।
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