देशभर में महाशिवरात्रि की धूम देखने को मिल रही है। हर तरफ बम भोले और शिव महिमा के भक्तिमय गीतों की गूंज से माहौल शिवमय नजर आ रहा है। देश-प्रदेश के हर शिव मंदिर में शिव भक्तों की लम्बी कतारें शिव के प्रति उनके प्रेम और भावना को दर्शा रही हैं। वहीं अंबाला रोड पर जिला यमुनानगर के गांव भटौली स्थित प्राचीन शिव मंदिर भी शिव भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां महाशिवरात्रि पर हर साल हजारों लोग जलाभिषेक करते हैं।
मंदिर का संबंध महाभारत काल से
शिव मंदिर के पुजारी जितेंद्र शास्त्री ने बताया कि ये मंदिर बहुत पुराना है। इसका मंदिर का संबंध महाभारत काल से जुडा है। उन्होने बताया कि कांगड़ा से कुरुक्षेत्र जाते समय पांडव यहां ठहरे थे। मंदिर के अंदर एक शिवलिंग है जिसके बाद यहां भगवान शिव प्रकट हुए थे। उस वक्त से यहां पूजा होती आ रही है। दूर-दूर से लोग यहां शिवजी के दर्शन करने आते हैं और जो मन्नत लोग मांगते हैं वो पूरी भी होती है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां 5 ऋषि मुनियों की समाधि भी है।
महाशिवरात्रि पर्व को लेकर 4 महीने पहले ही मंदिर में शुरू हो जाती है तैयारियां
यहां की आस्था श्रद्धालुओं को खुद ही मंदिर की तरफ खींच लाती है। यही वजह है कि मंदिर से लेकर मुख्य मार्ग तक दो किलोमीटर लंबी लाइन भी शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए लगती है। जी हां, यमुनानगर के गांव भटोली के प्राचीन स्वंभू प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी ने बताया कि शिवरात्रि के मौके पर 4 महीने पहले ही मंदिर में तैयारियां शुरू हो जाती है। मंदिर के एक बड़े हॉल में फूलों को बिछाया गया है। मंदिर में सुरक्षा के लिहाज से सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। नंदी की सफाई की जा रही है, मंदिर के चारों तरफ लाइटिंग की पूरी व्यवस्था की गई है। मंदिर की बाहर से पूरी तरह सजाया गया है। मंदिर का इतिहास करीब 5500 साल पुराना है और कांगडा के कुरुक्षेत्र जाते समय पांडव यहां ठहरे थे, इस मंदिर में ऋषि मुनियों की समाधि भी है।
पांडवों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां पर आए थे
हालांकि मंदिर का इतिहास कितना पुराना है, इसका अनुमान लगाना थोड़ा कठिन है। पर मान्यता है कि अज्ञातवास में पांडवों ने यहां तपस्या की और प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां पर आए थे। तभी से ज्योति स्वरूप से यहां स्वयंभू शिवलिग बना। द्वापर युग के महाभारत काल में मंदिर क्षेत्र सिधुवन था। अज्ञातवास में पांडव हिमाचल के कांगड़ा के बाद आदिबद्री होते हुए यहां आए और पांच कोस दूर जो आज पंचतीर्थी क्षेत्र है, वहां भी रुके। पुराण में दिए प्रमाण मुताबिक सिधुवन में वट वृक्ष के नीचे बैठ पांडवों ने तपस्या की, तब भगवान शिव ने दर्शन दिए। आज मंदिर प्रांगण में मौजूद वटवृक्ष को ही उस घटना का साक्षी बताया जाता है जिसके ठीक सामने स्वयंभू शिवलिंग है।
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