
ताकत कलम की तलवार से भी तेज होती है, नन्हे हाथों को कलम ही दुनिया की राह दिखाती है .. यह ज्ञान से लफ्ज़, लफ्ज़ से विचार देती है...यह जादुई संदेश से दिलों में जानभर देती है... उदास एकाकी मन को मोहब्बत का पैगाम देती है..कलम ही समाज को आईना भी दिखाती है ... जुबान जो ना कह पाए कलम उसे कह देती है ..चेतन मन की कल्पना मैं जो इच्छाएं चलती हैं.. कलम ही चेतना से उन भावों में ताकत भरती हैं.. लाखों कवियों और लेखकों और गीतकारों के लिए कमल की ताकत बहुत मायने रखती है ....
गीतकार कल्पना को हक़ीक़त में फील करके ही पिरोते है शब्दों की माला
कल्पना एक शक्ति है और इसका उपयोग करना आना चाहिए। कल्पना-शक्ति का उपयोग एक कला है। इस कला में पारंगत व्यक्ति ही कल्पना-शक्ति का अच्छे ढंग से प्रयोग कर सकते हैं। खासकर गीतकार और कवि कल्पना को हक़ीक़त में फील करके ही शब्दों की माला को पिरोते है...जैसे गायक बनने के लिए अच्छी आवाज़ का होना मायने रखना है, ठीक ऐसे ही गीतकार बनने के लिए एक कल्पना शक्ति और कलम की ताकत बहुत अधिक मायने रखती है। आज हम आपको हरियाणा के एक ऐसे आर्टिस्ट से रूबरू करवाते हैं जो, जिसके जीवन में न कोई दिक्कत थी, न कोई दर्द और न कोई घटना जो उसके अंदर लिखने का जज्बा पैदा करे, गायकी का शौक जरूर था, स्कूल में आयोजित गतिविधियों में भाग भी लेता था, गीत लिखना ख्वाब में भी नहीं था. लेकिन आज यही आर्टिस्ट अपनी गायकी और लेखनी से हरियाणा म्यूजिक इंडस्ट्री में एक पहचान बनाये हुए है।
'यकीन' से शुरुवात, 'गोली' से हुए फेमस
आर्टिस्ट का नाम है साहिल ढुल, जो एक गायक भी हैं, लेखक और कंपोज़र भी। यकीन, गोली, बदमाश छोरा EP (विस्तारित प्ले (ईपी) एक संगीत रिकॉर्डिंग है जिसमें एकल से अधिक ट्रैक होते हैं लेकिन एल्बम से कम होते हैं), बहम, ड्रीम गर्ल, नंबर प्लेट, ब्लेम, बियॉन्ड, जाट-जाटनी, बदनाम छोरा गानों से प्रसिद्धि पाने वाले साहिल वैसे तो बचपन से गाने के शौक़ीन रहे, लेकिन सही मायनों में 2016 से अपने म्यूसिकल सफर की शुरुआत की और बेहद कम उम्र में युवाओं के बीच अपनी पहचान बनाई।
साहिल ढुल न केवल अच्छा गाते और लिखते हैं, बल्कि वो बोलते भी बहुत अच्छा हैं। बहुत स्पष्टवादी और समाजिक जीवन और उतर चढ़ाव की बहुत गहरी समझ रखते हैं, ये उनसे बात करके महसूस हुआ कि आज की युवा पीढ़ी में और इतनी कम उम्र में इतनी समझ और नेक सोच वाकई काबिले तारीफ है। आज हम उन्हें के शब्दों में जानते है उनके इस सफर के बारे में....
जाने बचपन में पहली बार स्कूल में कौन सा गाना गाया
साहिल ढुल भिवानी के गांव मुंढाल से हैं। साहिल ने 10वीं तक की पढ़ाई गांव मुंढाल से ही की और हांसी से 11वीं-12वीं की। उसके बाद ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रजुऐट पंजाब यूनिवर्सिटी और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से की। साहिल ने छोटे होते स्कूल में जो सबसे पहला गाना गाया वो था वो था जान तेरे नाम फिल्म का गाना 'फर्स्ट टाइम देखा तुम्हें हम खो गया, 2nd टाइम में लव हो गया', साहिल ने बताया कि 7वीं 8 वीं में सोलो परफॉर्म करता था। 6 भाई बहनों में साहिल सबसे छोटा है, चार बहने जो शादी शुदा हैं और एक भाई जो चंडीगढ़ रहते है और एसबीआई में कार्यरत है।
परिवार कतई नहीं चाहता था कि म्यूजिक लाइन में जाए
हालाँकि उनका लक्ष्य वकील बनना था, पर साथ में म्यूजिक भी करना था, लेकिन परिवार को ये पसंद नहीं था। अलबत्ता बाद में फिर धीरे-धीरे घर वालों को आदत बन गई। साहिल के ताऊजी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे और साहिल को म्यूजिक की लाइन में नहीं आने देना चाहते थे। साहिल के घर में उनके पिता किशोर दा, मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर के गाने सुनते थे और रागिनी भी सुना करते थे।
पिताजी के लिए रागिनी की चिप भी भरवा के लाते थे, तो खुद भी रागनिया सुन लिया करते थे। साहिल उनको कहते कि 'थम गाने सुन सको हो तो, क्या मैं बना नहीं सकता' साहिल ने बताया कि ताऊजी का स्वर्गवास होने पहले उन्होंने पहली बार साहिल को कलाकार कहा था, किसी ने पूछा था तो उन्होंने कहा था 'कलाकार है ये' यह कलाकार शब्द उन्होंने पहली और आखिरी बार कहा था।
बेरा भी कोनी था कि गाणे क्यूकर लिखे करैं, पहली कविता लिखी 'ना भुलै'
साहिल ने बताया कि 2015-16 में 12वीं से पास आउट हुए थे, उनके स्कूल में सांस्कृतिक गतिविधियां भी बहुत होती थी, फोल्क और वोकल म्यूजिक पर भी ज़ोर था, इस तरह की गतिविधियों में भाग लेते रहे है, वैसे तो गाने का चस्का शुरू से ही था। फिर 12 वीं के बाद जब कॉलेज की तरफ रुख करना था तो बचपन के मित्र ने कहा 'तू एक गाना काड़ दे' तो साहिल ने कहा बेरा तो कोनी क्यूकर काड़ना, कहीं ते बना बनाया लेना पड़ेगा, दोस्त ने कहा 'तू लिख ले' लेकिन उस टाइम तो लिखण का बेरा भी कोनी था कि गाणे क्यूकर लिखे करै। कुल मिलाकर कोई प्रोफेशनल समझ या अनुभव नहीं था। दोस्त कहते थे 'बढ़िया गावै है तू' तो मैंने 2016 में चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। उस दौरान मैंने दो लाइन की कविता लिखी, फिर सोच -सोच के चार लाइन लिखी फिर ये कविता बनी थी 'ना भुलै' जो आज भी इंस्टा की हाई लाइट्स में पड़ी है। साहिल ने केयू से इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स की।
इतने शब्द ना इक्क्ठे होवै मेरे पै
कविता सभी दोस्तों को पसंद आई, बस वह से थोड़ा आत्मविश्वास बढ़ा, क्योंकि गाने लिखने पर कभी दिन नहीं दिया और ये बड़ा मुश्किल काम लगता था। इतने शब्दों को इकट्ठा करना मेरे लिए तो बिलकुल भी आसान नहीं था मैं दोस्तों को कहता था इतने शब्द ना तो इक्क्ठे होवै मेरे पै, ये तो किती और तै ही लिखे जावै, कोई मशीन होंदी होगी।
फिर असली चस्का तो पंजाब यूनिवर्सिटी से पड़ा, क्योंकि एक वहां ऐसा माहौल मिल गया, जहाँ स्टार नाइट्स, इवेंट्स होना आम बात थी, सिद्दू, करण ओझला, गैरी संधू, ऐसे बहुत से प्रसिद्ध आर्टिस्ट परफॉर्म करते देख लिए फिर तो मन में पक्का हो गया कि भाई करना है तो यो ही करना है, लोग तो पागल होते है इनके पीछे। फिर आया की मैं भी गए सकता हूं। फिर म्यूजिक को सुनना और समझना शुरू किया। हिट गाने सुने फिर समझ आने लगा कि अक्षर और शब्दों को जोड़ना भी कोई चीज़ होती है।
गाना 'यकीन' और 'रूह' लिखने की कहानी
साहिल ने कहा उसका गाना गाने और लिखने का मन तो बन गया, पर ऐसा कोई अनुभव नहीं था जिस पर कुछ लिखा जाए, लिख तो लेंगे, फिर टॉपिक कैसे मिले कोई। जब साहिल से पूछा गया कि उनका गाना 'यकीन' तो ऐसा लगता है जैसे किसी दर्द भरे आशिक का गाना है - फिर जब तक वो दर्द न हो तो लिखा कैसे ? साहिल ने बताया कि मेरा ना कोई दिक्कत थी, ना कोई दर्द, तो कैसे निकलेंगे शब्द, फिर 'धक्के तै दर्द महसूस करण की कोशिश की।
साहिल ने बताया कि 'यकीन' गाना बिलकुल भी इमोशंस में नहीं लिखा गया, यकीन और रूह ये दोनों गाने ऐसे है, जिसमे मैंने 20 परसेंट ही इमोशन डाले हैं, बाकि तो उसमे तुकबंदी है। लेकिन कैसे इस गाने को लिखा, इसके पीछे का किस्सा उन्होंने सुनाया। क्लास12th की कोई मेमेरी थी, जो वन साइडेड लव वाली थी बस वो 2018 में गाना लिखने में काम आ गई। हालाँकि इतना खास कुछ था नहीं, पर उस वन साइडेड वाली मेमोरी को मैंने फिर धक्के से अपनी एक दुनिया बना ली, कि ऐसा हुआ है, फिर वो गाना लिखा कि पहले वो तेरा साथ था, बात करती थी, पसंद भी किया करती थी, प्यार करती भी था, एक तरह उस स्टोरी को मॉडिफाई किया। इसलिए कहते हैं कि 'कलम की ताकत कल्पना में है'
कैसे हुआ 'यकीन' का ट्रैक रिकॉर्ड
अब गाना तो लिख दिया उसे गा भी लेंगे, लेकिन म्यूजिक कौन देगा, उसको लोगों तक कैसे पहुंचाना है। उस टाइम पर तो कई तरह की दिक्कत थी, डाटा लिमिट भी होती थी, इतने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी नहीं थे। म्यूजिक करवाना है, किसपे करवाना है फिर उसका नंबर ढूंढ़ना, बात करना, बात करने पर फिर काम करवाना ये पूरी प्रोसेस कैसे हुई, इस बारे में उन्होंने बताया कि उन दिनों सुमित गोस्वामी के गाना भोले नाथ का म्यूजिक काफी पसंद आया था, हरियाणा में पहला गाना था, जिसमे म्यूजिक प्रोडूसर ने अपना टैग दे रखा था काका।
यंग ब्लड टीम को वो चैनल यूट्यूब था, उसमें उनका नंबर मिल गया, नजबगढ़ के पास स्टूडियो में म्यूजिक के लिए काका भाई से मिलने गया। पहली विजिट में गाना सुनाया। अगली विजिट में 2018 में 'यकीन' का ट्रैक रिकॉर्ड हुआ। रिकॉर्ड किया। 4-5 घंटे में तैयार, अब मेन काम था गाने को रिलीज कराना, जिसके लिए फीस की जररूत थी, घी वालों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था, लेकिन उनकी एक बहन उनको स्पोर्ट करती थी, तो उसने पैसे दिए कर गाना रिलीज कराया। फरवरी में गाने का ऑडियो रिलीज हुआ 3 -4 लाख व्यूज़ आये और फिर अक्टूबर में वीडियो प्लान की, ये वीडियो दीपेश गोयल ने वीडियो की थी।
'फटे नै रफू कर देगी पर, उधेड़े होये नै कोणी सिम सकती टेक्नोलॉजी'
गाना सीखना आज की इंडस्टी में जरुरी है की नहीं क्योंकि आजकल तो तकनीक ऐसी आ गई हैं जो आवाज़ और सुर, ताल, लय सब सेट कर देती है तो क्या सुर, लय, ताल का बेसिक ज्ञान होना ज़रूरी है या मॉडर्न म्यूजिक में इसकी कोई आवश्यकता नहीं, इस सवाल पर साहिल ने कहा कि हमें टेक्निकल एडिट या ऑटो ट्यून की प्रोसेस पर डिपेंड नहीं रहना चाहिए, क्योंकि अपने में काबिलियत है तो लिप्सिंग की जरूरत नहीं वो आत्मविश्वास के साथ कहीं भी गए सकते हैं।
इसलिए पोस्ट प्रोडक्शन पर निर्भर नहीं होना चाहिए। रियाज़ भी बहुत ज़रूरी है। साहिल ने कहा 'उधेड़े होये नै कोणी सिम सकती टेक्नोलॉजी, फट गया तो रफू हो सकता है, पर सिला नई जा सकदा। इसलिए म्यूजिक लाइन में ज्ञान हर तरह का होना चाहिए। गाना गाना एक कला है तो लिखना और कम्पोज़ करना भी एक कला है, उसे म्यूजिक देना भी कला है तो उस कला की समझ जरूर होनी चाहिए।
हरियाणवी इंडस्ट्री में स्कोप उसकी रूट्स में ही है
हरियाणवी इंडस्ट्री आगे बढ़ रही है, लेकिन अपना ब्रैंड बनाना है तो हरियाणा में क्या स्कोप बचा है जो पंजाब या कहीं और की कॉपी न लगे, इस पर साहिल ने कहा स्कोप रूट में, हरियाणा का इतिहास तो मिल जाएगा, लेकिन हरियाणवी कल्चर पर लिटरेचर नहीं मिलता, अगर कुछ थोड़ा बहुत है तो लाइब्रेरियों में उनमे धूल चढ़ी रहती है। हरियाणा के पास, खुद का कल्चर है, किस्से हैं, कहानियां हैं, स्कूलों में भी हरयाणवी लिट्रेचर होना चाहिए तो बहुत स्कोप है। आने वाले 5 -7 साल में लोग खुद ढूंढेंगे।
एक आर्टिस्ट होता है समाज का आइना
बदमशी के गाने, कार्शियल गाने और गन कल्चर पर बोलते हुए साहिल ने कहा कि एक आर्टिस्ट समाज का आइना होता है, अगर वो कुछ ऐसा कर रहा तो उसके पीछे कोई न कोई रीज़न है। या तो वो अपनी आजीविका, घर खर्च चलाने के लिए ऐसा कर रहा है या जब कोई चीज़ आउटपुट नहीं देगी तो आप वो नहीं करोगे, आप वो करोगे जो डिमांड में है। मैंने भी कुछ ऐसे गाने किये, जिसके इतने ज्यादा व्यूज़ नहीं मिले।
जैसे, मेरा घर उन गानों से नहीं चला, तो मैंने 'गोली' गाना लिखा और गाया वो इतना चला कि ढाई मिलियन से भी ज्यादा व्यूज़ आये जबकि मेरे दूसरे गाने बाबू पर कम व्यूज़ आये, जबकि वो गाना बहुत इमोशनल है, तो आर्टिस्ट तो समाज को सब दे रहा है, लेकिन लोग अपने रूचि से देखते-सुनते हैं। गोली, बदमाशी से रिलेटेड गाने लिखे भी हैं गाए भी है, पर मेरा पर्सनल टेस्ट नहीं है, ये करना पसंद करता हूँ पर टेस्ट नहीं है, मैं ऐसा गाने सुनता भी हूँ, बनाता भी हूं, पर कोशिश करता हूँ की मेरे ऐसे ट्रैक न हों।
आपके ऊपर निर्भर करता है कि देखने का आपका नजरिया कैसा है
मैंने भी सिद्दू भाई के गाने सुने, चमकीला के सुने और भी सुने तो मैंने तो कोनी कदे बन्दुक उठाई। वो आपके ऊपर निर्भर करता है कि देखने का आपका नजरिया कैसा है। अगर आप म्यूजिकल हो सिर्फ सुनना है तो आप कुछ नहीं करोगे, लेकिन आप खुद ही खुराफाती हो और दिमाग ही उल्टा चलता है तो फिर तो गानों को बहाना नहीं चाहिए। अक्सर देखते हैं, जब क्राइम रेट बढ़ता है तो सबसे पहले बहाना सरकार पर है कि ये आर्टिस्ट ये गाने क्यों कर रहे हैं ?
यहां एक बात समझने की है सिंगर जैसा गाना गा रहा है इसका ये मतलब नहीं है कि वो बदमाश है या गोली-बंदूक उठाता है। हर तरह के गाने है। हरियाणवी पंसदीदा गायक सोमवीर कथूरवाल, विजय मलिक हैं और रैपर ढांडा, वहीं रागिनी मास्टर सतबीर जी की सुनते हैं। मुझे हर तरह के गाने गाना पसंद है, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना।
ज्यादा उम्मीद रखने की आदत नहीं
गोली वाले गाने आगे बढ़ने के लिए गाए। ऐसा कोई mindset नहीं था, लेकिन खुद को भी एक आत्म विश्वास भी चाहिए था और वो गाना चला भी मुझे था भी की चलेगा। जो मेरी सोच है कि मेरा काम गान गाना उसकी प्रोसेस को पूरा करना है, ज्यादा उम्मीद रखने की आदत नहीं। जब मैं लो फील करता हूँ तो यकीन और रूह दोनों के कमेंट सेक्शन को देख लेता हूँ पढ़ लेता हूँ, तो हिम्मत बढ़ जाती है। दो साल से रियल म्यूजिक से जुड़े हुए है, लेबल हरियाणा से है ओनर भी हरियाणा से ही है। एक आर्टिस्ट की पहचान के रूप में ही मरना है।
जगजीत जी का वो कागज़ की कश्ती और चिठ्टी न कोई सन्देश बहुत पसंद
आपका पंसदीदा काम का क्या है के सवाल पर साहिल ने कहा जो काम अभी बन रहा है या जो बना नहीं है वो पसंद है। पंसदीदा आर्टिस्ट कौन है रागनियों में मास्टर सतबीर, सत्यवान फरमानिया, सुनील दुजानिया, रमेश कुलवड़िया, ध्रुव बाल्यान, एस भरद्वाज, इनको ही सुनता हूँ, इनके साथ ही काम किया है, काका भाई का काम भी बहतु प्यारा है रैप में ढांडा बहुत बढ़िया, अजूबा है, सकिंदर, सिद्दू, ये सब पसंद है ,गजल कव्वाली, शायरी, रागिनी, गाने, पोएट्री, नया-पुराना बॉलीवुड मैं सुनता बहुत हूँ। अलग-लग ट्रैक सुनता हूँ, नुसरत साहब, जगजीत जी, गुलाम अली साहब। जगजीत जी का वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी और चिठ्टी न कोई सन्देश बहुत पसंद है।
गैंग कल्चर को लेकर जानें क्या बोले साहिल ढुल्ल
गैंग या गोली कल्चर पर उन्होंने कहा जहाँ पैसा जरनेट होना शुरू हो जाता है वहां गैंग कल्चर शुरू हो जाता है, यहाँ हरियाणा इंडस्ट्री में अभी पैसा जनरेट नहीं हुआ है, इसलिए अभी ये चीज़े यहाँ नहीं है, लेकिन भविष्य में हो सकती है। किसी भी तरीके से पैसा और पॉवर आ गया तो कहीं न कहीं तो स्वस्भाविक ही ये चीज़ें उसके इर्द गिर्द आने लग जाती है। उन्होंने के उदाहरण देते हुए कहा कि अगर मैं आपको एक बन्दुक दे दूँ और पावर दे दूँ, पैसा दे दूँ तो अपने व्यवहार में बदलवा देखोगे, आप खुद नहीं देख पाओगे, लेकिन कोई और देख पाएगा। गैंग कल्चर आने का और कोई रीज़न नहीं है, बस फेम, पैसा और पॉवर जब ये आता है तो इसके इर्द गिर्द ये चीजे आ जाती है। लोग दबाने की कोशिश करते है।
गानों में में सुल्फा, अफीम, नशे के ज़िक्र पर साहिल की प्रतिक्रिया
गानों में सुल्फा, अफीम, नशे का ज़िक्र ये पंजाब प्रचलन है या क्या है ? क्या इसी वजह से नशा बढ़ रहा है, इस पर साहिल ने कहा ये प्रचलन अब बढ़ रहा है। आज छोटे छोटे बच्चे में नशे के इंजेक्शन लगाते हैं, भुक्खी, चिट्टा खाते है, इसमें पंजाब का नाम इसलिए आता है, क्योंकि वहां से ये आता है, हम बोर्डिंग स्टेट है तो बच भी नहीं सकते।
हालाँकि सुपरविज़न से लगाम लगाई जा सकती है, पता सबको है, लेकिन सब छत के नीचे हो रहा है, यहीं लेने वाले, यहीं खरीदने वाले है। स्टेप लेना काफी बोल्ड चीज़ होती है, कोई खुलकर सामने नहीं आता है। रॉयल नशा है अफीम, जिसको सब एफर्ट नहीं कर सकते। छोटे नशे सब जगह मिल रहे है, गानों का दोष नहीं है, बल्कि आज नशा आसानी से उपलब्ध हो रहा है।
बच्चों की रूटिंग कमजोर, ऐसे में युवा या तो फांसी लगाएगा या विदेश जाएगा
डंकी ट्रेंड पर बोलते हुए साहिल ने कहा की बेरोजगारी और बहार का लाइफ स्टाइल, पहले से गए हुए रिश्तेदारों दोस्तों के फोटो देख-देख कर बाहर जाने की होड़ लगी है। जबकि ऐसे कितने युवा है जिनको वहां पहुँचने के बाद डाउन फील होता है, ऐसा कुछ नहीं है जो देख के यहां आ गये। आज से 8 -10 पहले तो कुछ था, लेकिन अब नहीं है। 40 लाख रूपये तो यहीं ब्याज पर दे दो, महीने में लाखों की कमाई आएगी और कोई अपना काम भी शुरू कर लो।
एक्सपोज़र के चक्कर में युवा ये सोचते है कि ज़िंदगी यहाँ रहते नहीं बन सकती। हरियाणा में नौकरी नहीं हैं, भर्तियां नहीं निकलती, कई-कई साल में निकलती हैं। इसके साथ ही यहां स्कूल की रूटिंग कमजोर है। बच्चों को सक्षम नहीं बनाया जाता। ये व्यवहारिक ज्ञान नहीं दिया जाता की नौकरी नहीं मिली तो अपना क्या काम और कैसा काम शुरू कर सकते है। बच्चों को नहीं सिखाया जाता कि नौकरी नहीं मिलेगी तो आप खुद को कैसे सेटल करेंगे। ऐसे में युवा या तो फांसी लगाएगा या विदेश जाएगा।
युवाओं के लिए सन्देश
एक्सपोज़र में न पड़े। इंटरनेट की लहर में खुराफाती न बनो और ट्रैप में न पड़ों। आज स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है, वो बच्चों का बचपन उनका वर्तमान और भविष्य खा जाता है। अपने सपने देखो, उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करो। एक अच्छा इंसान बनो, किताबें पढ़ो, हरियाणा का लिटरेचर जो स्कूलों में नहीं पढ़ाया, उसे जाने की कोशिश करो। अपने आर्ट, कल्चर के बार में पढ़ो, अपनी स्किल को बढ़ाओ, ट्रैप में बिलकुल न फंसों ये सब खत्म कर देगा।