हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार की दोनों पार्टियों इनेलो और जजपा के बीच अस्तित्व की लड़ाई छिड़ गई है। जजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने इनेलो के चुनाव चिह्न 'चश्मे' पर दावा करने की चेतावनी दी है।
दुष्यंत ने कहा, "चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार 2 लोकसभा इलेक्शन में 6% से ज्यादा वोट शेयर की जरूरत होती है। मगर, इनेलो के 2019 लोकसभा चुनाव में 2 प्रतिशत के लगभग वोट आए थे। इस चुनाव में भी इनेलो के वोट शेयर 2 प्रतिशत तक ही रह सकते हैं। ऐसे में इनेलो का सिंबल छिन सकता है।"
अगर इनेलो का सिंबल चश्मा चुनाव आयोग छीनता है तो जजपा इस पर दावा ठोक सकती है। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, किसी भी पार्टी को लगातार 2 चुनाव (लोकसभा व विधानसभा) में निर्धारित वोट नहीं मिलते हैं तो स्टेट पार्टी का दर्जा छिन जाता है। लोकसभा चुनाव में 6% वोट और एक सीट या 8% वोट की जरूरत होती है। विधानसभा में 6% वोट और 2 सीटें होनी चाहिए।
इनेलो ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 1.89% और विधानसभा चुनाव में 2.44% ही वोट हासिल किए थे। इस बार भी कम से कम 6% वोट और एक सीट या 8% वोट नहीं मिले तो स्टेट पार्टी का दर्जा व चश्मे का चुनाव निशान तक छिन सकता है। इसलिए इनेलो के लिए अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। इनेलो ने 5 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं और अभय चौटाला खुद कुरूक्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
वहीं, जजपा भी मुश्किल में है। लोकसभा चुनाव से पहले ही जजपा से टूटकर आई भाजपा गठबंधन से इसका गठजोड़ टूट गया और पार्टी में बगावत शुरू हो गई। जजपा के 10 विधायकों में से 5 बागी हो गए। जजपा प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है और दुष्यंत की मां नैना चौटाला हिसार से उम्मीदवार हैं।
कभी हरियाणा की राजनीति की दशा-दिशा तय करने वाले चौटाला परिवार की दोनों पार्टियां इनेलो और जजपा अब अस्तित्व के लिए लड़ रही हैं। इनेलो टूटने के बाद बनी जजपा ने पहली बार 2019 में विधानसभा चुनाव लड़ा था और 10 सीटें जीती थीं। लेकिन अब दोनों पार्टियों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं।
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