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सतपाल ब्रह्मचारी - संत से नेता बनने का अनोखा सफर;  सोनीपत सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने शानदार जीत दर्ज की

सतपाल ब्रह्मचारी - संत से नेता बनने का अनोखा सफर; सोनीपत सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने शानदार जीत दर्ज की

उत्तराखंड में दो बार चुनावी हार के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मूल पृष्ठभूमि वाले हरियाणा में लौटकर सोनीपत लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार बनने में कामयाब रहे। उनकी यह जीत न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक नई शुरुआत है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सोनीपत में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत 

हरियाणा की सोनीपत लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल ब्रह्मचारी ने शानदार जीत दर्ज की है। उन्होंने भाजपा के मोहनलाल बड़ौली को 21,816 वोटों के अंतर से पराजित किया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस को 5,48,682 वोट मिले जबकि भाजपा को 5,26,866 वोट प्राप्त हुए। यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। 

एक संत की राजनीतिक यात्रा

सतपाल ब्रह्मचारी का जन्म जींद जिले के गांगोली गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 13 साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने हरिद्वार में ब्रह्मचर्य की दीक्षा ले ली और राधा कृष्ण ब्रह्मचारी के शिष्य बन गए। वे लंबे समय तक उत्तराखंड में रहे और वहां की राजनीति में भी सक्रिय थे। साल 2003 में वे हरिद्वार नगर निगम के मेयर भी बने। 

उत्तराखंड में मिली हार, हरियाणा में मिली जीत

सतपाल ब्रह्मचारी ने 2012 और 2022 में उत्तराखंड की हरिद्वार सीट से विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन दोनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2022 में भाजपा के मदन कौशिक ने 53,147 वोट लेकर जीत हासिल की जबकि सतपाल को 37,910 वोट ही मिले थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मूल पृष्ठभूमि वाले हरियाणा में लौटकर सोनीपत लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार बनने में कामयाब रहे। 

मिली-जुली पृष्ठभूमि का फायदा 

सतपाल ब्रह्मचारी की जीत में उनकी मिली-जुली पृष्ठभूमि का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वे एक ओर तो संत और साधु हैं, दूसरी ओर उनकी राजनीतिक छवि भी है। इसके अलावा वे जींद से आते हैं जो सोनीपत लोकसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है। इस वजह से उन्हें क्षेत्रीय समर्थन भी मिला। साथ ही उनकी नजदीकी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से भी रही है, जिससे उन्हें जाट वोट भी हासिल हुआ होगा। 

ब्रह्मचारी के सामाजिक और धार्मिक कनेक्शन 

सतपाल ब्रह्मचारी का जन्म जींद जिले के सफीदों विधानसभा क्षेत्र के गांगोली गांव में 1964 में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से आते हैं और पांचवीं कक्षा तक गांव में ही पढ़ाई की। 13 साल की उम्र में उन्होंने हरिद्वार में ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली और 1984 में संपूर्णानंद विश्वविद्यालय हरिद्वार से शास्त्री और बी.ए. की डिग्री हासिल की।

वे राधा कृष्ण ब्रह्मचारी के शिष्य हैं और उनका गांगोली गांव में एक डेरा भी है। इसके अलावा सफीदों और पांडू पिंडारा में उनका वक्तानंद आश्रम है। हरिद्वार में भी उनका थानाराम आश्रम है जहां श्रद्धालुओं के रहने और खाने की व्यवस्था रहती है। वे श्री राधा कृष्णा धाम और श्री दंडी स्वामी जय नारायण धर्मार्थ ट्रस्ट की शाखाओं का भी संचालन करते हैं। हरिद्वार में उनकी एक थानाराम गौशाला भी है।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

राजनीति में आने से पहले सतपाल ब्रह्मचारी काफी समय तक संत और धर्मगुरु के तौर पर सक्रिय रहे। उनका राजनीतिक सफर 2012 से शुरू हुआ जब उन्होंने पहली बार हरिद्वार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 2022 में भी उन्होंने यहीं से एक बार फिर चुनाव लड़ा लेकिन नतीजा नहीं बदला।

हालांकि, इन हारों ने उनका हौसला नहीं टूटने दिया और वे अपने गृहप्रदेश हरियाणा लौटे। 2023 में कांग्रेस ने उन्हें सोनीपत लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और वे यहां से जीत हासिल करने में कामयाब रहे। उनकी इस जीत से साफ झलकता है कि आस्था, लगन और संघर्ष के बल पर कितनी बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं।

नई राजनीतिक शुरुआत की उम्मीद 

सतपाल ब्रह्मचारी की यह जीत उनके राजनीतिक करियर की एक नई शुरुआत है। अब उनसे बहुत उम्मीदें हैं कि वे सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के विकास के लिए काम करेंगे। साथ ही उनकी जीत से हरियाणा की राजनीति में नए समीकरण भी बनेंगे। एक गैर-जाट ब्राह्मण के रूप में उनके सामने यह चुनौती होगी कि वे सभी वर्गों को साथ लेकर चलें। उनके पास अपने गहरे धार्मिक और सामाजिक संपर्क हैं जिनका उन्हें फायदा मिलेगा। लेकिन साथ ही उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वे संप्रदायवाद से दूर रहें और एक सेकुलर मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करें। अगर वे सही से काम करते हैं तो निश्चित रूप से उनके सामने और बड़ी उपलब्धियां हासिल करने का रास्ता खुलेगा।

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