छठी जीत, बची साख
दक्षिणी हरियाणा में अहीरवाल समाज की सियासत को आगे बढ़ाने वाले राव इंद्रजीत सिंह ने गुरुग्राम लोकसभा सीट से लगातार छठी बार जीत दर्ज की है। लेकिन इस बार उनकी जीत बहुत ही कम अंतर से रही। वे सिर्फ 75,079 वोटों से जीत सके। उनके कड़े प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के राज बब्बर को 8 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। इस तरह की सपाट जीत ने राव इंद्रजीत सिंह की साख पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
पैतृक गढ़ों में खिसकी पकड़
राव इंद्रजीत सिंह की इस बार की जीत और भी चिंताजनक इसलिए रही क्योंकि उनके पैतृक गढ़ों में उनकी पकड़ कमजोर दिखी। रेवाड़ी, बावल और पटौदी जैसी सीटों पर उन्हें उम्मीद के मुताबिक वोट नहीं मिले। यहां तक कि उनके ही परिवार के गढ़ कोसली से भी बीजेपी हार गई। पिछली बार यहां से बीजेपी को 75 हजार वोटों की बढ़त मिली थी। लेकिन इस बार कांग्रेस ने 2 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।
गुरुग्राम और बादशाहपुर बचाव में आए
अगर गुरुग्राम और बादशाहपुर से राव इंद्रजीत सिंह को अच्छी वोट बैंक नहीं मिलती तो उनकी जीत संभव नहीं हो पाती। खुद राव इंद्रजीत सिंह ने भी इस बात को स्वीकार किया है। दोनों सीटों पर उन्हें 1-1 लाख वोटों की बढ़त मिली जिससे वे जीत गए।
अहीरवाल साम्राज्य का बंट पतन
राव इंद्रजीत सिंह की इस जीत के पीछे एक लंबी राजनीतिक कहानी है। वे उस अहीरवाल परिवार से आते हैं जिसने दक्षिणी हरियाणा में दशकों तक सियासत पर अपना दबदबा बनाए रखा। उनके पूर्वजों के पास एक समय विधानसभा की 14 सीटें थीं। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह साम्राज्य बंटने लगा है।
अंदरूनी गुटबाजी की भेंट चढ़ा
राव इंद्रजीत सिंह की इस लड़खड़ाती जीत के पीछे उनके ही पार्टी के भीतर की गुटबाजी का बड़ा हाथ रहा। उनके बहुत से विरोधी इस बार उनके लिए प्रचार करने भी नहीं गए। सुधा यादव, भूपेंद्र यादव, राव नरबीर सिंह जैसे कई दिग्गज नेताओं ने दूरी बनाई रखी। यही वजह रही कि उन्हें अपने ही इलाके में कांटे का मुकाबला करना पड़ा।
अहीरवाल परिवार से उठान
राव इंद्रजीत सिंह अहीरवाल समाज के उस गौरवशाली परिवार से आते हैं जिसने दशकों तक दक्षिणी हरियाणा की सियासत पर राज किया। उनके पूर्वजों के पास एक समय विधानसभा की 14 सीटें थीं। राव इंद्रजीत सिंह का जन्म इसी परिवार में 1951 में हुआ था।
राजनीति में कदम रखने से पहले
राजनीति में आने से पहले राव इंद्रजीत सिंह एक सेना अधिकारी थे। उन्होंने भारतीय सेना में 8 साल की सेवा दी। इसके बाद उन्होंने सियासत में कदम रखा।
कांग्रेस से बीजेपी तक का सफर
राव इंद्रजीत सिंह ने 1998 में पहली बार कांग्रेस पार्टी से फिरोजपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। इसके बाद 2004 में गुरुग्राम से संसद पहुंचे। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। तभी से वे लगातार गुरुग्राम से जीत दर्ज करते आ रहे हैं।
कहानी कैसे बदलेगी आगे?
राव इंद्रजीत सिंह के अच्छे दिनों का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। लेकिन अब यह संकट में दिख रहा है। कहीं अहीरवाल सियासत की कहानी बदलने की घड़ियां नहीं बज रही हैं? यही देखना होगा कि राव इंद्रजीत अपना दबदबा कैसे बरकरार रखेंगे।=
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