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बिश्नोई परिवार की राजनीतिक यात्रा: उतार-चढ़ाव से भरा सफर

बिश्नोई परिवार की राजनीतिक यात्रा: उतार-चढ़ाव से भरा सफर

आदमपुर में 56 साल के शासन के बाद लोकसभा चुनाव में हार, अब विधानसभा चुनाव में किला बचाने की चुनौती; गांव-गांव जाकर खोए जनाधार को वापस पाने की कोशिश में जुटे भव्य बिश्नोई

प्रतीकात्मक तस्वीर

आदमपुर का बदलता राजनीतिक परिदृश्य 

हरियाणा के आदमपुर में राजनीति का रंग बदल रहा है। जहां एक समय बिश्नोई परिवार का दबदबा था, वहां अब उनकी पकड़ ढीली पड़ती दिख रही है। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को यहां हार का सामना करना पड़ा, जिससे बिश्नोई परिवार के लिए चिंता बढ़ गई है। इस हार के बाद, परिवार के युवा नेता भव्य बिश्नोई ने कमान संभाली है और वे अब गांव-गांव जाकर खोया हुआ जनाधार वापस पाने की कोशिश में जुटे हैं।

जन-संपर्क अभियान: घर-घर दस्तक

भव्य बिश्नोई इन दिनों आदमपुर के हर कोने में नजर आ रहे हैं। वे न सिर्फ लोगों से मिल रहे हैं, बल्कि उनके साथ बैठकर भोजन भी कर रहे हैं। इस दौरान वे लोगों की समस्याएं सुन रहे हैं और उनके समाधान का आश्वासन दे रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने और उनके पिता कुलदीप बिश्नोई ने मुख्यमंत्री कार्यालय का दौरा किया और आदमपुर की समस्याओं की एक लंबी सूची सौंपी। इसी कड़ी में, जर्जर बस स्टैंड की मरम्मत के लिए 35 लाख 63 हजार रुपये की मंजूरी मिली है, जिसके लिए भव्य बिश्नोई ने मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया है।

बिश्नोई परिवार का राजनीतिक इतिहास: उतार-चढ़ाव भरा सफर

आदमपुर में बिश्नोई परिवार का राज 56 साल पुराना है। 1968 में भजनलाल के विधायक बनने से शुरू हुआ यह सिलसिला अब तक चला आ रहा था। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में परिवार को झटके लगे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भव्य बिश्नोई को हार का सामना करना पड़ा था, और अब 2024 में भी इतिहास दोहराया गया है। हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में भव्य जीते थे, लेकिन जीत का अंतर कम था।

आगे की राह: चुनौतियां और संभावनाएं 

बिश्नोई परिवार के सामने अब बड़ी चुनौती है। आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें अपना 56 साल पुराना किला बचाना है। इसके लिए उन्हें न सिर्फ अपने समर्थकों को एकजुट करना होगा, बल्कि नए वोटरों को भी अपने पक्ष में करना होगा। कुलदीप बिश्नोई को भी अब ज्यादा समय आदमपुर में बिताना होगा, क्योंकि उनकी अनुपस्थिति परिवार की राजनीति पर भारी पड़ रही है। 

बार-बार पार्टी बदलने का असर भी बिश्नोई परिवार की छवि पर पड़ा है। कांग्रेस से निकलकर हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाना, फिर भाजपा से गठबंधन, उसके बाद कांग्रेस में वापसी और अंत में भाजपा में शामिल होना - यह सब मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करता है। 

अंत में, यह कहा जा सकता है कि बिश्नोई परिवार एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। आने वाले समय में उनकी रणनीति और जनता से जुड़ाव ही तय करेगा कि वे अपने इस ऐतिहासिक गढ़ को बचा पाएंगे या फिर नई राजनीतिक हवाओं के आगे झुक जाएंगे। भव्य बिश्नोई की मेहनत रंग लाएगी या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा।

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