
कर्म चन्द केसर एक प्रतिष्ठित हिंदी और हरियाणवी कवि हैं। उनका जन्म 18 अगस्त 1969 को हरियाणा के कैथल जिले के गांव कसौर में हुआ था। उन्होंने एम.ए. और बी.एड. की उपाधि प्राप्त की है और वर्तमान में एक राजकीय विद्यालय में हिंदी प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। केसर जी मुख्य रूप से हिंदी और हरियाणवी बोली में गज़ल और कविता लेखन में माहिर हैं। उनकी दो प्रकाशित पुस्तकें हैं - 'कुणक' और 'गुल्लर के फूल', जो हरियाणवी गज़ल संग्रह हैं। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।
थ्हारी कचैह्ड़ी म्हं पेश याह् हरियाणवी ग़ज़ल
सुपन्याँ म्हं बी याद उसे की आवै सै।
मे॒रे गाँम की की माटी मनैं बुलावै सै।
जिसके गुण मैं गांदा-गांदा थकदा नी,
वाह़्ये यार खाम्मी मे॒री गिण्यावै सै।
जद बी सोळे दिन आवैं सैं माणस के,
च्यार खूँट तै माया भाज्जी आवै सै।
अऩ्नपाणी चै हवा जहर सब चीजां म्हं,
हर माणस की सेहत बिगड़दी जावै सै।
बाप रौब तै झिड़कै था, धमकावै था,
उसे की तरियाँ बीर मनैं बुलावै सै।
बाल कणक की बतळावैं थी आपस म्हं,
बोवण आळा क्यूँ घाटे म्हं जावै सै।
च्योड़ी छात्ती करकै चाल्लै खुस होकै,
बाब्बू कै जद बेटा गैल कमावै सै।
तेरै खात्तर मनैं जमाऩ्ना छोड़ दिया,
दिल की खोल सुणा,तूँ और के चाह़्वै सै।
उसके दर पै सदा चाँदणा रह 'केसर',
आँधी म्हं जो डटकै दीप जळावै सै।
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