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The Haryana Story | सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद किसान संगठन फिर से दिल्ली कूच की तैयारी में

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद किसान संगठन फिर से दिल्ली कूच की तैयारी में

हरियाणा सरकार दुविधा में; किसान संगठन रणनीति बनाने में जुटे; चुनावी साल में राजनीतिक तनाव बढ़ने की आशंका

प्रतीकात्मक तस्वीर

सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी और शंभू बॉर्डर पर लगे बैरिकेड हटाने के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश ने एक बार फिर किसान आंदोलन को गर्मा दिया है। किसान संगठन इस फैसले को अपनी जीत मान रहे हैं और दिल्ली कूच की नई रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं, हरियाणा सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई भी राज्य सरकार हाइवे कैसे बंद कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि बॉर्डर को तुरंत खोलना चाहिए और कानून व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसान भी इसी देश के नागरिक हैं और सरकार का काम है कि उन्हें भोजन और अच्छी चिकित्सा सुविधा मुहैया कराए। 

किसान संगठनों की नई रणनीति

किसान संगठनों ने शंभू बॉर्डर खोलने के आदेश के बाद अलग-अलग दिनों में बैठकें बुलाई हैं। एमएसपी खरीद गारंटी कानून मोर्चा के हरियाणा संयोजक जगबीर घसोला ने बताया कि 14 जुलाई को शंभू व खनौरी बॉर्डर के किसानों के साथ मीटिंग होगी। इसमें एमएसपी सहित कई मांगों को लेकर दिल्ली कूच करने का निर्णय लिया जा सकता है। वहीं, किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने 16 जुलाई को दोनों किसान संगठनों की बैठक बुलाई है। किसानों ने गांवों में संदेश भेजना शुरू कर दिया है कि वे दिल्ली कूच के लिए तैयार रहें। उन्हें ट्रैक्टर-ट्रॉलियां और राशन लेकर बॉर्डर पर आने को कहा जा रहा है। 

हरियाणा सरकार की दुविधा

हरियाणा में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति और टकराव से बचना चाहती है। सरकार के पास कई विकल्प हैं:

  1. पंजाब सरकार से बातचीत कर किसानों को समझाने का प्रयास करना।
  2. किसानों को बस, कार या ट्रेन से दिल्ली जाने के लिए राजी करना। 
  3. हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना। 

हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा है कि सरकार सभी पहलुओं पर विचार कर उचित फैसला लेगी।

आम जनता पर प्रभाव

शंभू बॉर्डर पिछले 6 महीनों से बंद है, जिससे आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अंबाला के व्यापार पर भी इसका असर पड़ा है। कई व्यापारिक संगठन और राजनीतिक दल बॉर्डर खोलने की मांग कर चुके हैं। 

चुनावी साल में बढ़ता राजनीतिक तनाव

इस पूरे घटनाक्रम ने चुनावी साल में राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है। किसान आंदोलन एक बार फिर से राज्य की राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया है। विपक्षी दल इस मुद्दे को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि सत्ताधारी दल को कानून व्यवस्था और जनता की सुविधा के बीच संतुलन बनाना होगा। 

शंभू बॉर्डर विवाद एक जटिल मुद्दा बन गया है, जिसमें किसानों के अधिकार, कानून व्यवस्था, और आम जनता की सुविधा का सवाल शामिल है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इस मुद्दे को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। हरियाणा सरकार को एक ऐसा समाधान ढूंढना होगा जो सभी पक्षों को स्वीकार्य हो। वहीं, किसान संगठनों को भी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रखनी होंगी। यह स्थिति आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकती है, खासकर चुनावी साल में। सरकार, किसान संगठन और न्यायपालिका के बीच तालमेल इस समस्या के समाधान के लिए महत्वपूर्ण होगा।

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