हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मची, जब पृथला से निर्दलीय विधायक नयनपाल रावत ने सरकार से नाराजगी जताई। रावत ने अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे बड़ा कदम उठा सकते हैं। इससे भाजपा सरकार की चिंता बढ़ गई, क्योंकि जननायक जनता पार्टी (JJP) से गठबंधन टूटने के बाद सरकार निर्दलीय विधायकों के समर्थन पर टिकी हुई है।
हालांकि, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए रावत से मुलाकात की। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने भी इस मुलाकात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी रावत से फोन पर बात की। इन प्रयासों के बाद रावत ने कहा कि उनकी शिकायतें दूर हो गई हैं और वे सरकार के साथ रहेंगे।
यह घटनाक्रम हरियाणा की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है। 90 सदस्यीय विधानसभा में अब केवल 87 विधायक बचे हैं। इससे बहुमत का आंकड़ा 44 हो गया है। भाजपा के पास अभी 41 विधायक हैं, जिसमें स्पीकर भी शामिल हैं। हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा और निर्दलीय नयनपाल रावत के समर्थन से यह संख्या 43 हो जाती है।
दूसरी ओर, विपक्ष के पास 44 विधायक हैं, जिनमें कांग्रेस के 29, JJP के 10, इनेलो का 1 और 4 निर्दलीय विधायक शामिल हैं। हालांकि, JJP के दो विधायकों पर भाजपा का समर्थन करने का आरोप है, जिस पर कार्रवाई की मांग की गई है।
सरकार के लिए चिंता का विषय यह है कि पिछले कुछ समय में कई निर्दलीय विधायकों ने भाजपा का साथ छोड़ा है। महम से विधायक बलराज कुंडू ने किसान आंदोलन के दौरान समर्थन वापस ले लिया था। इसके अलावा, तीन अन्य निर्दलीय विधायकों - धर्मपाल गोंदर, रणधीर गोलन और सोमवीर सांगवान ने भी भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस को समर्थन दे दिया है।
फिलहाल, सरकार को गिरने का तत्काल खतरा नहीं है। लेकिन यह स्थिति बहुत नाजुक है। अगर सभी विपक्षी विधायक एकजुट होकर वोट डालते हैं, तो भाजपा सरकार मुश्किल में पड़ सकती है। इसलिए सरकार के लिए हर एक विधायक का समर्थन महत्वपूर्ण है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपने बचे हुए समर्थकों को कैसे संभालती है और क्या वह नए समर्थक जुटा पाती है। साथ ही, विपक्ष की रणनीति भी महत्वपूर्ण होगी। क्या वे इस स्थिति का लाभ उठाकर सरकार को अस्थिर कर पाएंगे, या फिर भाजपा इस संकट से भी बाहर निकल जाएगी, यह आने वाले समय में ही पता चलेगा।
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