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दीपेंद्र हुड्डा ने संसद में उठाई अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग

दीपेंद्र हुड्डा ने संसद में उठाई अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग

कांग्रेस सांसद ने दिया नोटिस, अहीर समाज के ऐतिहासिक सैन्य योगदान को किया याद

प्रतीकात्मक तस्वीर

18वीं लोकसभा के दूसरे सत्र की शुरुआत के साथ ही एक महत्वपूर्ण मांग सामने आई है। हरियाणा से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भारतीय सेना में 'अहीर रेजिमेंट' बनाने की मांग को लेकर संसद में नोटिस दिया है। हुड्डा ने अपने नोटिस में लिखा है कि वे 22 जुलाई को सभा के 'शून्य काल' के दौरान यह मुद्दा उठाना चाहते हैं। उन्होंने इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण और जनहित का मामला बताया है। 

अपने नोटिस में हुड्डा ने अहीर समाज के ऐतिहासिक योगदान को विस्तार से बताया है। उन्होंने कहा कि अहीर समाज का शौर्य इतिहास किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सदियों से, देश की रक्षा के लिए अहीर समाज ने अपना साहस, वीरता और बलिदान दिखाया है। 

हुड्डा ने कई ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया जहां अहीर समाज ने अपनी वीरता दिखाई। उन्होंने तैमूर और नादिर शाह के आक्रमण, 1857 की क्रांति, दोनों विश्व युद्धों, 1948 के युद्ध, चीन के खिलाफ रेजांग ला की लड़ाई और कारगिल युद्ध का उल्लेख किया। हुड्डा ने कहा कि हर बार जब देश की सुरक्षा पर खतरा आया, अहीर समाज ने "जय यादव, जय माधव" के नारे के साथ देश की रक्षा की। 

सांसद ने अपने नोटिस में रक्षा मंत्री से मांग की है कि अब समय आ गया है कि अहीर समाज के राष्ट्र के प्रति समर्पण और बलिदान को देखते हुए, उनकी सेवा को मान्यता दी जाए। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में बिना देरी किए अहीर रेजिमेंट का गठन किया जाना चाहिए। हुड्डा का यह कदम राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हरियाणा में अहीर समुदाय की एक बड़ी आबादी है और यह मांग उनके बीच लंबे समय से चल रही है। ऐसे में, यह मुद्दा आने वाले चुनावों में भी अहम भूमिका निभा सकता है। 

यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मांग पर कैसी प्रतिक्रिया देती है। अगर यह मांग मान ली जाती है, तो यह न केवल अहीर समुदाय के लिए, बल्कि भारतीय सेना के लिए भी एक ऐतिहासिक कदम होगा। इससे न केवल अहीर समुदाय को मान्यता मिलेगी, बल्कि भारतीय सेना को भी एक नई शक्ति मिलेगी।

अब सभी की नजरें संसद पर टिकी हैं, जहां इस मुद्दे पर चर्चा होने की उम्मीद है। यह देखना होगा कि सरकार और विपक्ष इस मांग पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या इस ऐतिहासिक मांग को मंजूरी मिलती है।

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