loader
Toronto Diary राम : नमामी, नमामी,नमामी

Toronto Diary राम : नमामी, नमामी,नमामी

सतीश आर्य

प्रतीकात्मक तस्वीर

अगस्त का महीना है, मौसम बहुत सुहावना है। न गरमी, न सर्दी। साँझ के वक़्त कुछ गुलाबी गुलाबी ठंड हो जाती है, सो घूमने जाते समय हल्का सा स्वेटर पहनने की ज़रूरत तो महसूस होने लगी है। टरांटो में छुट्टियाँ बिताने के कुछ अलग ही मज़ा है। बच्चों के साथ हँसने खेलने का अद्भुत आनंद! फिर रोज़मर्रा की जद्दोजहद से हट कर कुछ सोचने समझने के लिए भरा पूरा वक़्त। फिर एक बोनस और। यहाँ पर्याप्त समय मिल जाता है कुछ नया पढ़ने के लिए , विश्लेषण, चिंतन और मनन के लिए। पिछली बार यहाँ आया था तो महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण तथा टोलस्टोय की अन्ना करेनिना पढ़ी थी। इस बार सोचा कि गोस्वामी तुलसीदास रचित महाकाव्य रामचरितमानस का रसास्वादन किया जाए। 

श्रीरामचरितमानस की गिनती विश्व के महानतम महाकाव्यों में होती है।भारत के तीन महाकाव्यों- महाभारत, रामायण, तथा महाकवि कालिदास रचित रघुवंशम के अतिरिक्त तुलसीदास रचित रामचरितमानस का नाम विश्व के आनर्ज़ बोर्ड पर पूरी दमक के साथ दर्ज है। इसके अतिरिक्त,होमर का ' इलीयड ' ,ऐनीड, ' ऑडिसी', बेयोवोल्फ, गिल्गमेश आदि विश्व के महान महाकाव्यों में गिने जाते हैं।

आज से हज़ारों वर्ष पूर्व लिखे गए ये महाकाव्य एक तरह से उस काल और समाज विशेष जिसमें वे लिखे गए थे की संरचना, उसकी इच्छाएँ, भय, स्वप्न, को दर्शाते हैं।यही नहीं, जानी- अनजानी प्राकृतिक शक्तियों , मनोवैज्ञानिक गुत्थियों को समझने- सुलझाने के मानवीय प्रयास को भी इंगित करते हैं। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ये सब महाकाव्य तत्कालीन समाज तथा भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ आदर्श स्थापित करने का सुंदर प्रयास भी हैं। और इसके लिए कविता से सुंदर माध्यम और क्या हो सकता है? असीम मानव की असीम, निर्बाध कल्पना इन सब में परिलक्षित होती है!

महाकाव्य किसी भी और काव्य माध्यम से कुछ भिन्न होते है।इनके हीरो साधारण नहीं बल्कि महामानव होते हैं और उनकी वीरता और साहस अतुलनीय होते हैं। उनका विरोधी भी उतना ही बलशाली तथा वीर होता है। उनकी वीरता का वर्णन उतनी ही उद्दात भाषा में किया जाता है । महाकाव्य की भाषा को ग्रैण्ड स्टाइल कहा जाता है । इसकी संरचना बहुत विशाल और जटिल होती है और कहानियों के अन्दर कहानियों का जाल बन जाता है। हीरो साहसिक यात्राएँ करता है, अच्छे बुरे को समझने का प्रयास करता है। इस प्रकार यह यात्रा सिर्फ़ स्थूल ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा में बदल जाती है। नैरटिव या कथा शैली में लिखे गए ये महाकाव्य किसी आदर्श की स्थापना करते हैं। उदाहरण के तौर पर,अच्छाई की बुराई पर विजय इन महाकवियों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है । महाकाव्यों में देवीय शक्तियाँ भी अपना रोल अदा करती हैं और अपने अपने वीरों की मदद को सामने आती हैं । ऐसे काव्य में कवि सार्वभौमिक होता है और उसकी उपस्थिति हर स्थान पर महसूस की जा सकती है। 

तो, राम का नाम ले कर मानस का पठन आरम्भ हुआ। हर महाकाव्य की तरह मानस का शुभारम्भ भी देवताओं के आवाहन तथा मंगलाचरण से हुआ। वर्ष 1576 पूर्ण हुई इस पुस्तक में सात कांड हैं। अनेकानेक कथाओं- उपकथाओं से मंडित बाल कांड राम चंद्र जी की बाल लीलाओं का तो अद्भुत वर्णन करता ही है , साथ ही में वह प्राचीन भारत की समर्द्ध आर्थिक तथा सांस्कृतिक तस्वीर सामने लाता है। उच्च पारिवारिक मूल्य, सामाजिक समरसता, राजा - प्रजा का सोहार्द, गुरु- शिष्य परम्परा के ऊँचे आदर्श, विनम्रता और विनयशीलता आदि प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक मूल्य मानस के पन्नों में स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। अवतारवाद की अवधारणा, वरदान तथा श्राप के माध्यम से मानव जगत में दैवीय हस्तक्षेप हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण पक्ष है। किस प्रकार देवी सरस्वती देवताओं के अनुरोध पर मंथरा के दिमाग़ में राम के राजतिलक की बजाय वनवास का विचार भरती है , इसी बात का प्रमाण है। 

मानस के सम्पूर्ण कथानक का ब्योरा देने का यह औचित्य नहीं है: उसे तो सभी जानते ही हैं।इस ग्रंथ का महत्व इस बात को समझने में है कि यह प्राचीन भारत के उच्च सामाजिक,राजनीतिक एवं दार्शनिक मूल्यों एवं मानकों का निर्धारण करता नज़र आता है। यद्यपि कई आलोचक इसे जाति वादी और स्त्री- विरोधी भी क़रार देते है,मेरे विचार में यह समन्वयवाद तथा नारी की अस्मिता की बात ज़्यादा करता है। 

वास्तव में यह ग्रंथ भक्ति-- सगुण भक्ति-- की दार्शनिक धारा का प्रमुख उद्घोषक है। अवतारवाद की अवधारणा भी सगुण भक्ति से ही जुड़ी हुई है। देखा जाए तो इस सारे महाकाव्य में , और विशेष तौर से उत्तर कांड में इसी सगुण भक्ति के दार्शनिक पक्ष को अलग अलग ढंग से जाँचा परखा गया है । काक भुशंडी- गरुड़ संवाद केवल धर्म क्या है , नीति क्या है , भक्ति क्या है आदि मूल प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करता है। 

हर महाकाव्य की तरह मानस का मुख्य विषय अच्छाई और बुराई का द्वन्द तथा अंत में बुराई का अंत ही है। राम और रावण इन दो विरोधी पक्षों के प्रतीक भर हैं। पर यदि विश्व के अन्य महा काव्यों से इसकी तुलना की जाए तो इसका दार्शनिक तथा आदर्श पक्ष उन सब के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा सशक्त दिखायी देता है। अन्य महानायक बहादुरी में राम के बराबर खड़े हो सकते हैं, किंतु करुणा, धर्म, नीति,प्रेम जैसे गुणों की बात करें तो वे सब अपनी मानवीय कमज़ोरियों की वजह से रामचंद्र के पासंग में भी नहीं ठहरते।

यदि काव्य शैली की बात की जाए तो महाकाव्यों की परम्परा के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास ने भी ग्रैण्ड स्टाइल का प्रयोग किया है । अद्भुत कल्पना शक्ति के स्वामी तुलसीदास ने उपमा, अलंकार के इतने रत्नों का ख़ज़ाना भर दिया है मानस में कि आप उलीचते रहिये पर यह सरोवर कभी ख़ाली नहीं होगा। चौपाइयों, छंदो , सोरठों, यहाँ तक कि संस्कृत के श्लोकों का प्रयोग काव्य शैली में विविधता के अनूठे रंग भर देता है।अनुप्रास अलंकार का प्रयोग तो इस महा काव्य में अनुपम लयात्मकता भर देता है, चमत्कृत कर देता है।

बस एक बात याद रखने की है : यदि आप तर्कशील हैं तो रामचरितमानस आपके लिए नहीं है। इस ग्रंथ को पढ़ने, समझने, और इसमें डूब कर (भवसागर के) पार जाने के लिए बस श्रद्धा,भक्ति और विश्वास चाहिए ।पूर्ण समर्पण भी।और कुछ भी नहीं । मानस का मूल मंत्र है :

कलियुग केवल नाम आधारा। 

बस नाम , सिर्फ़ नाम ।

और कुछ भी तो नहीं ।

Join The Conversation Opens in a new tab
×