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The Haryana Story | हरियाणा के 'इतिहास' में दर्ज हुई 'साल 2024 की राजनितिक उठा-पटक'..हुए कईं बड़े 'सियासी उलट फेर'

हरियाणा के 'इतिहास' में दर्ज हुई 'साल 2024 की राजनितिक उठा-पटक'..हुए कईं बड़े 'सियासी उलट फेर'

हरियाणा में राजनीतिक उठापठक की शुरूआत लोकसभा चुनाव से पहले मार्च माह के दूसरे सप्ताह में हो गई थी

प्रतीकात्मक तस्वीर

साल 2024 को हरियाणा की राजनीति में एक बड़े सियासी उलट फेर के रूप में जाना जाएगा। इस साल एक तरफ जहां उम्मीद के विपरीत किसी को बैठे-बैठे प्रदेश के मुखिया की कुर्सी हाथ लगी तो किसी को देश के प्रधानमंत्री से मिली प्रशंसा के एक दिन बाद अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके अलावा सत्ता की चाह और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कुछ बड़े दिग्गजों ने पार्टियां बदली तो कुछ ऐसे दिग्गज भी रहे जो तीसरी बार या पहली बार हरियाणा के सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठ पाए। 

मनोहर लाल का इस्तीफ़ा, नायब सैनी की लॉटरी लगी और विज रूठे

हरियाणा में राजनीतिक उठापठक की शुरूआत मार्च माह के दूसरे सप्ताह में शुरू हो गई। दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले वर्तमान केंद्रीय मंत्री और तत्कालीन सीएम मनोहर लाल ने पूरी कैबिनेट के साथ 12 मार्च को इस्तीफा दिया। इस राजनीतिक हलचल ने सभी को चौंका दिया था। उनके इस्तीफा देने के मामले में सबसे अहम पहलू यह रहा कि उनके इस्तीफा से ठीक एक दिन पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली के दौरान गुरुग्राम में उनकी तारीफ में कसीदे पड़े थे और यह सब की समझ से परे था कि पूरी कैबिनेट के समेत मनोहर लाल को इस्तीफा क्यों देना पड़ा।

इसके बाद तत्कालीन कुरुक्षेत्र सांसद और प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की रिकमेंडेशन खुद मनोहर लाल की तरफ से की गई और उनकी लॉटरी लग गई। अगले दिन पार्टी विधायक दल और दो पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में जब नायब सिंह सैनी का नाम सीएम पद के लिए रखा गया तो तत्कालीन होम मिनिस्टर अनिल विज को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने पद के लिए अपनी सीनियरिटी का हवाला देते हुए मीटिंग बीच में ही छोड़ दी और बाहर चले गए। हालांकि बाद में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद मनोहर लाल को केंद्रीय मंत्री बनाया गया तो उम्मीदों के विपरीत हरियाणा में तीसरी बात सरकार आने के बाद नायब सिंह सैनी लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और अनिल विज को कैबिनेट में जगह मिली।

कांग्रेस पर अपनी खामियां पड़ी भारी

साल 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव नजदीक आए और राजनीतिक परिदृश्य, एग्जिट पोल और भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को देखते हुए यह करीब करीब तय माना जा रहा था कि कांग्रेस अबकी बार सरकार बनाने में सफल होगी। लेकिन तमाम उम्मीदों के विपरीत पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच जारी आपसी फूट और संगठन का न खड़ा हुआ पाना और गलत टिकट वितरण के चलते पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर हो गई। इसके अलावा पिछली गलतियों से सबक न लेते हुए पार्टी के सीनियर नेताओं में आपसी फूट और कलह अब भी जारी है। लोकसभा चुनाव में पांच सीट जीतने के बाद उत्साहित कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के सबसे तगड़े दावेदार भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए विधानसभा चुनाव किसी बड़े झटके से कम साबित नहीं हुआ, क्योंकि दहलीज पर खड़ी सत्ता उनसे छिटक गई।

जेजेपी की सत्ता से रवानगी, आप का खाता नहीं खुला, इनेलो अस्तित्व बचाने में रही सफल

नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने के बाद  भाजपा ने जननायक जनता पार्टी से अपनी राहें जुदा कर ली। साल 2019 में हरियाणा में बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी के 10 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। राजनीतिक उलटफेर के बाद जब मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा दिया और नायब सैनी सरकार बनी तो जननायक जनता पार्टी का बीजेपी ने साथ छोड़ दिया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया था कि अब लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेजेपी दोनों अलग-अलग राह पर चलने के लिए तैयार हो गई है और इसके बाद लोकसभा व विधानसभा चुनाव भी दोनों ने अलग-अलग लड़ा। दोनों ही चुनाव जेजेपी के लिए दुस्वप्न से कम साबित नहीं हुए क्योंकि पार्टी कोई भी सीट जीतना तो दूर ज्यादातर सीटों पर जमानत भी नहीं बचा पाई।

वहीं इसके अलावा हरियाणा की राजनीति मैं पैर जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से हरियाणा में निराशा हाथ लगी। इंडी गठबंधन के तहत कांग्रेस के साथ मिलकर लड़े लोकसभा चुनाव में कुरुक्षेत्र सीट पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा तो विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने वाली आम आदमी पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत पाई। हालांकि विधानसभा चुनाव कुछ हद तक इंडियन नेशनल लोकदल के लिए पहले की तुलना में ठीक ठाक रहे क्योंकि पिछली बार महज एक सीट जीतने वाली उनकी अबकी बार विधानसभा चुनाव में दो सीट जीतकर अपना अस्तित्व किसी तरह से बचाने में सफल रही।

सत्ता और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की चाह में दल बदलने का दौर रहा जारी

गत लोकसभा और विधानसभा चुनाव में देखने को मिला कि सत्ता और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की चाह में सभी राजनीतिक दलों के कई दिग्गज नेताओं ने खेमा बदलने में गुरेज नहीं किया। 10 मार्च को बीजेपी के हिसार से सांसद बृजेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए। उनको 2024 में लोकसभा का हिसार से टिकट मिलने की बीजेपी से उम्मीद नहीं थी और इसी को देखते हुए वे कांग्रेस के साथ हो लिए। बेटे के बाद 9 अप्रैल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बृजेंद्र सिंह के पिता और बीजेपी नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह भी 10 साल के बाद वापस कांग्रेस में शामिल हो गए।

लोकसभा चुनाव में 19 जून 2024 को विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले कांग्रेस की दिग्गज नेता किरण चौधरी और उनकी बेटी पूर्व सांसद श्रुति चौधरी बीजेपी में शामिल हुईं। इसके बाद दीपेंद्र हुड्डा के लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर किरण चौधरी 27 अगस्त को निर्विरोध चुनी गईं। इनके अलावा हरियाणा की सियासत में आया राम-गया राम की सियासत 2024 के विधानसभा चुनाव में फिर उस वक्त देखने को मिली, जब बीजेपी नेता अशोक तंवर ने फिर से पलटी मारते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए 

ओपी चौटाला समेत कई दिग्गजों ने दुनिया को कहा अलविदा 

भारत के छठे उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के बेटे, सात बार विधायक, एक बार राज्यसभा सांसद और पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री ओपी चौटाला ने 20 दिसंबर को में आखिरी सांस ली। 25 मई को गुरुग्राम के बादशाहपुर से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद (43) की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। इनेलो अध्यक्ष रहे नफे सिंह राठी की बहादुरगढ़ में गोली मार कर हत्या कर दी गई।

चौटाला परिवार के ये दिग्गज हारे

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में इनेलो और बीएसपी, जेजेपी ने आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया। चौधरी देवीलाल के परिवार से कई सदस्य मैदान में उतरे। इनमें अधिकांश चौटाला चुनाव हार गए। ऐलनाबाद से अभय चौटाला, उचाना कलां से दुष्यंत चौटाला, रानियां से चौधरी रणजीत सिंह चौटाला, डबवाली से दिग्विजय सिंह चौटाला, फतेहाबाद से सुनैना चौटाला चुनाव हार गए 

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