
हरियाणा विधानसभा में कुल 88 विधायक हैं। तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद भाजपा के पास अब 43 विधायकों का समर्थन बचा है, जबकि बहुमत के लिए 45 विधायकों की आवश्यकता है। इस तरह से भाजपा की सरकार अल्पमत में आ गई है। विपक्षी दलों के नेताओं ने सीएम सैनी से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने या विधानसभा में बहुमत साबित करने की मांग की है।
विपक्ष सरकार गिराने की कोशिश में जुटा
विपक्ष में अब कुल 45 विधायक हो गए हैं, जिसमें कांग्रेस के 30, जजपा के 10, इनेलो के एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू और तीन निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं। विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि वे सरकार गिराने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश कर रहे हैं। पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाए, वह उसका समर्थन करेंगे।
भाजपा की सरकार बचाने की कोशिश
दूसरी ओर, भाजपा अपनी सरकार को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। सीएम सैनी और पूर्व सीएम खट्टर का कहना है कि सरकार पर कोई खतरा नहीं है। खट्टर ने कहा कि कौन किधर आता-जाता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने दावा किया है कि बहुत से विधायक उनके संपर्क में हैं। वहीं, सैनी ने कहा कि कांग्रेस की इच्छा सरकार बनाने की है, लेकिन लोग इसे पूरा नहीं करने देंगे।
निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी की वजहें
निर्दलीय विधायकों द्वारा भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने की कई वजहें बताई जा रही हैं। इनमें से एक है कि उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया। दूसरी वजह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवारों का विरोध हो रहा है और ऐसे में विधानसभा चुनाव में उनकी जीत मुश्किल हो सकती है। तीसरी वजह है कि भाजपा ने इन विधायकों को पार्टी स्तर पर तरजीह नहीं दी और चौथी वजह है कि भाजपा से इन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट मिलना मुश्किल था।
निर्दलीय विधायकों की कांग्रेस को समर्थन देने की योजना
सूत्रों के मुताबिक, निर्दलीय विधायकों द्वारा कांग्रेस को समर्थन देने की योजना पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के दिल्ली स्थित निवास पर बनी थी। तीनों विधायक एक हफ्ते से हुड्डा के संपर्क में थे। 30 अप्रैल को इनसे गुरुग्राम में संपर्क किया गया, जिसके बाद इनकी हुड्डा, प्रदेश अध्यक्ष उदयभान और हरियाणा प्रभारी दीपक बाबरिया से मुलाकात हुई। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया।
विशेषज्ञों का विश्लेषण और अनुमान
हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव राम नारायण यादव ने कहा कि स्थिति असाधारण है, लेकिन इससे सरकार के लिए खतरा नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि पहले भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनका मामला सदन के बाहर सुलझाया गया था। यादव के मुताबिक, अगर विपक्ष ने सीएम से विश्वास प्रस्ताव मांगा है तो यह सरकार, विपक्ष और राज्यपाल के बीच की स्थिति बनती है।
उन्होंने बताया कि अभी सदन में 88 विधायक बचे हैं और जिस भी राजनीतिक दल के पास 45 विधायकों की संख्या होगी, उसे ही बहुमत में माना जाएगा। यादव ने कहा कि अगर विपक्ष राज्यपाल के सामने बहुमत का दावा करता है तो राज्यपाल सरकार से विश्वास मत हासिल करने के लिए कह सकते हैं। इस पूरे मामले में राज्यपाल ही अपने विवेक से फैसला ले सकते हैं।
वर्तमान परिदृश्य पर विशेषज्ञों का मत
विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान स्थिति में सरकार अल्पमत में आ गई है, लेकिन इसके बावजूद इसे कोई खतरा नहीं है। इसकी वजह है कि सैनी सरकार ने मार्च में ही फ्लोर टेस्ट पास किया था और दो फ्लोर टेस्ट के बीच 6 महीने का गैप होना जरूरी है। इस तरह विपक्ष सितंबर 2024 तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकता है। हरियाणा में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान स्थिति में भाजपा अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रह सकती है। लेकिन अगर राज्यपाल के पास बहुमत साबित करने को कहा जाता है और भाजपा फ्लोर टेस्ट में विफल रहती है तो स्थिति बदल सकती है। इसलिए अब सब कुछ राज्यपाल के फैसले पर निर्भर करता है।
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