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सिरसा में कुमारी सैलजा की धमाकेदार जीत; कुमारी सैलजा की आकांक्षाओं पर विजय - एक सामाजिक संदेश

सिरसा में कुमारी सैलजा की धमाकेदार जीत; कुमारी सैलजा की आकांक्षाओं पर विजय - एक सामाजिक संदेश

सामाजिक समानता और न्याय की लड़ाई लड़ती रही कुमारी सैलजा ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से सिरसा लोकसभा सीट पर जीत हासिल की है। यह जीत सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सिरसा में कुमारी सैलजा की धमाकेदार जीत

हरियाणा की सिरसा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी सैलजा ने बड़ी जीत हासिल की है। उन्होंने भाजपा के अशोक तंवर को 2 लाख 68 हजार 497 वोटों के विशाल अंतर से हराया है। चुनाव आयोग के अनुसार, सैलजा को 7 लाख 33 हजार 823 वोट मिले जबकि तंवर को सिर्फ 4 लाख 65 हजार 326 वोट ही मिल सके। 

संघर्षों से लदी एक राजनेता की कहानी 

कुमारी सैलजा का राजनीतिक सफर 1988 में उप-चुनाव से शुरू हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय चौधरी दलबीर सिंह पहले सिरसा से सांसद रह चुके थे। हालांकि शुरुआत में उन्हें हार मिली लेकिन 1991 और 1996 में वे सिरसा से जीतीं। 1991-96 तक वे केंद्र में शिक्षा और संस्कृति राज्य मंत्री भी रहीं।

चुनौतियों से लड़ना सीखा 

सैलजा के सामने कई बार चुनौतियां आईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 1998 और 1999 में सिरसा से हारने के बाद उन्होंने अंबाला से अपना आधार बनाया। 2004 और 2009 में वे अंबाला से जीतीं। 2009-14 तक वे मनमोहन सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहीं।

दलित और महिला वर्ग की आवाज 

कांग्रेस में दलित और महिला वर्ग की प्रमुख आवाज के रूप में सैलजा की जीत का विशेष महत्व है। उनके समर्थक उन्हें आगामी हरियाणा विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के रूप में भी देख रहे हैं। 

जो जीवन से सीखा, वही संदेश दिया 

अपने संघर्षों से उबरकर सैलजा की यह जीत सिर्फ एक चुनावी विजय नहीं बल्कि समाज के हर वंचित वर्ग के लिए एक संदेश है। उनका जीवन सिखाता है कि दृढ़ता और लगन से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उनकी इस जीत ने प्रतिनिधित्व की लड़ाई को नई ऊर्जा प्रदान की है।

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