हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। इस बार कांग्रेस पार्टी के अंदर ही बगावत की आग भड़क उठी है। पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने टिकट वितरण में गड़बड़ी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों की उपेक्षा, और पार्टी की खराब रणनीति पर सवाल उठाए हैं।
टिकट वितरण में गड़बड़ी का आरोप
कैप्टन अजय यादव ने आरोप लगाया कि टिकट वितरण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। उन्होंने कहा, "भूपेंद्र सिंह हुड्डा के इशारों पर टिकट का वितरण किया गया। अगर कांग्रेस ने सर्वे के आधार पर टिकट का वितरण किया होता तो आज 10 की 10 सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराता।" उन्होंने यह भी कहा कि 2019 के विधानसभा चुनावों में भी टिकट सही से नहीं बांटी गई थी।
ओबीसी मोर्चे की चेयरमैनी पर सवाल
अजय यादव ने अपनी ओबीसी मोर्चे की राष्ट्रीय चेयरमैनी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "मुझे कांग्रेस में ओबीसी मोर्चे के राष्ट्रीय चेयरमैन जरूर बनाया, लेकिन ऐसी चेयरमैनी किस काम की, जो अपनी टिकट ही नहीं बचा पाया। मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की टिकट काट दी गई, पार्टी में क्या मैसेज गया, सबको पता है।"
अल्पसंख्यक समुदायों की उपेक्षा
पूर्व मंत्री ने कांग्रेस पर अल्पसंख्यक समुदायों की उपेक्षा का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "जिस ओबीसी माइनरिटी की बात की जा रही थी, उसको कितना टिकट दिया गया, उसका आंकड़ा भी सबके सामने है। कांग्रेस इनकी वोट तो लेना चाहती है, लेकिन जो हिस्सेदारी बनती है वो नहीं देना चाहती।"
कांग्रेस की खराब रणनीति पर सवाल
अजय यादव ने कांग्रेस की राष्ट्रीय रणनीति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "यूपी, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान व तेलंगाना में कांग्रेस के क्या हालात रहे, इस पर चिंतन मंथन करने की जरूरत है।" उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा में कांग्रेस को केवल 5 सीट ही मिलीं, जबकि उम्मीद 100 सीटों की थी।
कैप्टन अजय यादव ने कांग्रेस आलाकमान से टिकट वितरण में हुई कथित गड़बड़ी की जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उदयभान और प्रभारी दीपक बाबरिया, तीनों ने मिलकर जो टिकट वितरण किया, उसकी कमेटी बनाकर जांच की जानी चाहिए।
यह विवाद कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा इस तरह के आरोप लगाए जाना पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। कांग्रेस नेतृत्व को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा और पार्टी के भीतर की इन असंतोषों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इन आरोपों पर कैसे प्रतिक्रिया देती है और क्या वह अपने भीतर की इस उथल-पुथल को शांत कर पाती है। हरियाणा की राजनीति में यह नया मोड़ निश्चित रूप से सभी दलों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।
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