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हरियाणा सरकार को बड़ा झटका: सुप्रीम कोर्ट ने 5 बोनस अंक योजना को किया रद्द

हरियाणा सरकार को बड़ा झटका: सुप्रीम कोर्ट ने 5 बोनस अंक योजना को किया रद्द

23,000 नौकरियां खतरे में, सरकारी भर्तियों में सामाजिक-आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले 5 अंक बोनस को सुप्रीम कोर्ट ने बताया असंवैधानिक; चुनावी साल में BJP सरकार के लिए बड़ी चुनौती।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा सरकार को सोमवार को एक बड़ा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की विवादास्पद बोनस अंक योजना को असंवैधानिक करार दिया। यह योजना, जिसे 2023 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने लागू किया था, सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में 5 अतिरिक्त अंक प्रदान करती थी। इस फैसले से न केवल 23,000 नवनियुक्त कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं, बल्कि राज्य सरकार के लिए भी यह एक बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौती बन गई है। 

बोनस अंक योजना: एक विवादास्पद पहल 

हरियाणा सरकार ने 2023 में यह योजना शुरू की थी, जिसके तहत 1.80 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों के सदस्यों को ग्रुप C और D की नौकरियों के लिए कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (CET) में 5 बोनस अंक दिए जाते थे। इस योजना का लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिलता था जिनके पास परिवार पहचान पत्र (PPP) था। सरकार का तर्क था कि यह कदम सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मदद करेगा। हालांकि, इस योजना की आलोचना भी हुई क्योंकि इसे एक तरह का छिपा हुआ आरक्षण माना गया। 

न्यायिक प्रक्रिया: हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक 

इस योजना के खिलाफ कई युवाओं ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कीं। उनका तर्क था कि यह योजना अनुचित है और योग्य उम्मीदवारों को नौकरी पाने से वंचित कर रही है। हाईकोर्ट ने लगभग एक साल की सुनवाई के बाद इस योजना को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि यह योजना संविधान के खिलाफ है और इसके लिए न तो कोई उचित डेटा एकत्र किया गया और न ही कोई आयोग बनाया गया। 

हाईकोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए बोनस अंक योजना को असंवैधानिक करार दिया। 

प्रभावित नौकरियां और भविष्य की चुनौतियां 

इस फैसले का सबसे बड़ा प्रभाव उन 23,000 युवाओं पर पड़ेगा जिन्हें इस योजना के तहत नौकरियां मिली थीं। अब उन्हें दोबारा परीक्षा देनी पड़ सकती है, और अगर वे पास नहीं होते हैं तो उनकी नौकरी जा सकती है। इसके अलावा, जो उम्मीदवार बोनस अंकों की वजह से पहले चयन से चूक गए थे, उनके लिए यह एक नया मौका हो सकता है। 

सरकार के सामने अब कई चुनौतियां हैं:

  1. नई भर्ती प्रक्रिया: क्या पूरी भर्ती प्रक्रिया नए सिरे से शुरू की जाएगी या केवल बोनस अंक पाने वालों को ही दोबारा परीक्षा देनी होगी?
  2. वेतन वापसी का मुद्दा: अगर कोई कर्मचारी नई परीक्षा में फेल होता है, तो क्या उसे पिछले डेढ़ साल का वेतन लौटाना होगा? 
  3. कानूनी चुनौतियां: चाहे जो भी निर्णय लिया जाए, किसी न किसी पक्ष से कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। 
  4. राजनीतिक प्रभाव: अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा BJP सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। 

आगे का रास्ता

हरियाणा सरकार के पास अब कुछ विकल्प हैं। वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है, लेकिन इसकी सफलता की संभावना कम है। दूसरा विकल्प है कि वह नए सिरे से पूरी भर्ती प्रक्रिया शुरू करे, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होगी।

इस पूरे प्रकरण ने हरियाणा में सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता और न्यायसंगतता के मुद्दे को फिर से उठा दिया है। यह फैसला बताता है कि सामाजिक-आर्थिक आधार पर लाभ देने के लिए सरकारों को ठोस आधार और वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता होती है। 

अंत में, यह मामला राज्य सरकारों के लिए एक सबक है कि वे ऐसी योजनाएं लागू करने से पहले उनके कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर गहराई से विचार करें। साथ ही, यह युवाओं के लिए भी एक संदेश है कि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं और न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा रखें।

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