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''पानी की प्यास'' ने कैसे बना दिया ''संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान''

''पानी की प्यास'' ने कैसे बना दिया ''संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान''

प्राचीन समय में बच्चों को शिक्षा के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था, उस दौर में गुरुकुल में एक बहुत कमज़ोर, मंद बुद्धि बच्चा, जिसका रोज़ सबके बीच उपहास होता, अचानक एक पानी की प्यास ने ऐसा क्या सबक दिया, कि ज़िंदगी बदल गई ?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर ही पढ़ा करते थे। बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था। बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम की देखभाल किया करते थे और अध्ययन भी किया करते थे। 

वरदराज को भी सभी की तरह गुरुकुल भेज दिया गया। वहां आश्रम में अपने साथियों के साथ घुलने मिलने लगा। लेकिन वह पढ़ने में बहुत ही कमजोर था। गुरुजी की कोई भी बात उसके बहुत कम समझ में आती थी। इस कारण सभी के बीच वह उपहास का कारण बनता है। 

गुरु ने कहा अपना समय बर्बाद नहीं करो, घर जाओ 

उसके सारे साथी अगली कक्षा में चले गए लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाया। गुरुजी जी ने भी आखिर हार मानकर उसे बोला, “बेटा वरदराज! मैंने सारे प्रयास करके देख लिए है। अब यही उचित होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो। अपने घर चले जाओ और घरवालों की काम में मदद करो।”

शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं

वरदराज ने भी सोचा कि शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं हैं। वह भारी मन से दुखी होकर वहां से जाने लगा, रास्ते में वो सोचने लगा कि घर जा कर पिताजी के सामने क्या मुंह दिखाऊंगा कैसे कहूंगा की गुरुजी ने मुझे निकाल दिया है। दोपहर का समय था। रास्ते में उसे प्यास लगने लगी। इधर उधर देखने पर उसने पाया कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कुएं से पानी भर रही थी। वह कुएं के पास गया।

जब एक कोमल से रस्सी ने दे दिया जिंदगी का सबक़ 

वहां पत्थरों पर रस्सी के आने जाने से निशान बने हुए थे,तो उसने महिलाओं से पूछा, “यह निशान आपने कैसे बनाएं।” तो एक महिला ने जवाब दिया, “बेटे यह निशान हमने नहीं बनाएं। यह तो पानी खींचते समय इस कोमल रस्सी के बार-बार आने जाने से ठोस पत्थर पर भी ऐसे निशान बन गए हैं।” वरदराज सोच में पड़ गया। उसने विचार किया कि जब एक कोमल से रस्सी के बार-बार आने जाने से एक ठोस पत्थर पर गहरे निशान बन सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से में विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकता।

अब आत्मविश्वास से भरपूर थे

वरदराज वरदराज वहां से घर नहीं गया बल्कि ढेर सारे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल आया। उसे वापस आते देख गुरूजी ने पूछा क्या बात है , वरदराज घर क्यों नहीं गए ?  वरदराज ने कहा गुरूजी मुझे और एक अवसर दीजिए इस बार में बहुत मेहनत करूंगा। इस बार आपको निराश नहीं करूंगा और अथक कड़ी मेहनत की भी। गुरुजी उसके आत्मविश्वास को देखकर बहुत खुश हुए और उसे फिर से पढ़ाना शुरु किया।

और बन गए संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान, लिखी महत्वपूर्ण रचनाएं

वरदराज इस बार पूरे मन लगाकर पढ़ने लगा वो गुरुजी के बातों को ध्यान से सुनता और गुरु द्वारा दिए गए सवाल को पहले हल करके दिखा देता। वो अब अपने कक्षा में सबसे  तेज शिष्य बन गया था। गुरुजी  उसका अब प्रशंसा करने लगे थे। कुछ ही सालों बाद यही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना, इन्होंने बहुत सारे रचनाएं लिखी, जिसमें लघुसिद्धान्तकौमुदी, मध्यसिद्धान्तकौमुदी, सारसिद्धान्‍तकौमुदी, गीर्वाण पदमंजरी प्रमुख हैं।

बिना अभ्यास के आप सफल नहीं हो सकते 

इनके जीवन पर एक आधारित दोहा है, करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरि आवत जात ते, सील पर परत निशान। अभ्यास की शक्ति का तो कहना ही क्या हैं। यह आपके हर सपने को पूरा करेगी। अभ्यास बहुत जरूरी है चाहे वो खेल मे हो या पढ़ाई में या किसी ओर चीज़ में। बिना अभ्यास के आप सफल नहीं हो सकते हो। अगर आप बिना अभ्यास के केवल किस्मत के भरोसे बैठे रहोगे, तो आखिर मैं आपको पछतावे के सिवा और कुछ हाथ नहीं लगेगा। इसलिए अभ्यास के साथ धैर्य, परिश्रम और लगन रखकर आप अपनी मंजिल को पाने के लिए जुट जाए।

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