प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई है और आगामी 3-4 के भीतर विस चुनाव होने तय है। लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत कम होने और पांच सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा आगे के लिए फूंक -फूंक कर कदम रख रही है। भाजपा हर वर्ग के वोट बैंक लुभाने के लिए जहां रोज़ नई -नई घोषणाओं का ऐलान कर रही है, वहीं कुछ महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी भी सोच-समझकर सौपने का प्रयास कर रही है, लोकसभा चुनाव के पूर्व जहां सीएम का चेहरा बदल एससी-ओबीसी वोट बैंक को प्रभावित करने की कोशिश की और वही कोशिश अब विधान सभा चुनाव में में रहेगी। ठीक ऐसे ही अब भाजपा ने ब्राह्मण वोट बैंक प्रभावित करने के लिए ब्राह्मण चेहरे को तवज्जो देते हुए प्रदेशाध्यक्ष चुना है।
रामबिलास शर्मा को दरकिनार कर बड़ौली को तरज़ीह क्यों
जी हां, सोनीपत जिले की राई विधानसभा से विधायक मोहन लाल बड़ौली को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है। सूत्रों की मानें तो बड़ौली की ताजपोशी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की पसंद से ही हुई है। यहाँ विचारणीय बात है कि पार्टी ने दिग्गज ब्राह्मण चेहरा रामबिलास शर्मा को दरकिनार कर बड़ौली को तरज़ीह क्यों दी ? बता दें कि अभी तक प्रदेशाध्यक्ष का पद मुख्यमंत्री नायब सैनी के पास था। कई दिनों से प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर सीनियर नेताओं द्वारा लॉबिंग की जा रही थी, लेकिन आखिर में शीर्ष नेतृत्व ने मोहन लाल बड़ौली के नाम पर मोहर लगा दी।
ब्राह्मण वोट, मनोहर की पसंद और आरएसएस बैकग्राउंड
राजनितिक विशेषज्ञों के मुताबिक़ मोहन लाल बड़ौली के प्रदेशाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने के तीन बड़े कारण हो सकते है। पहला सूबे में बीजेपी के कौर वोटर्स के रूप में जाने वाला 7.5% ब्राह्मण वोट बैंक और दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की पसंद, बड़ौली को सीएम नायब सैनी का काफी भी भरोसेमंद माना जाता है और वहीं तीसरा कारण माना जा रहा है कि बड़ौली का शुरू से आरएसएस से जुड़ा होना, चूंकि लोकसभा चुनाव से पहले आरएसएस की नाराजगी उजागर होने के बाद बीजेपी संगठन में अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैकग्राउंड वाले नेताओं को तरज़ीह दे रही है और इसी के चलते बुड़ौली को संगठन में अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है। इतना ही नहीं बड़ौली को पूर्व सीएम खट्टर की सिफारिश पर ही सोनीपत लोकसभा सीट से टिकट मिली थी, हालांकि बड़ौली कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी से ये सीट हार गए थे।
मंडल अध्यक्ष से बीजेपी अध्यक्ष तक का सफर
बड़ौली सबसे पहले 1995 में मुरथल के मंडल अध्यक्ष बने थे। 29 साल बाद अब वे हरियाणा में बीजेपी के अध्यक्ष का काम संभालेंगे। अलबत्ता सोनीपत जिले की राई विधानसभा सीट के गांव बड़ौली में जन्मे मोहन लाल 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए और बाद में भाजपा में शामिल हो गए। इनेलो की सरकार के समय में वे मुरथल से जिला परिषद का चुनाव जीतने वाले वह पहले भाजपा उम्मीदवार थे।
इसके बाद मोहन लाल को 2019 में बीजेपी ने सोनीपत की राई विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा और बड़ौली पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरे और चुनाव जीता। 2020 में बड़ौली को सोनीपत भाजपा का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसके अलावा 2021 में उन्हें प्रदेश महामंत्री के पद के साथ हरियाणा भाजपा की कोर टीम में शामिल किया गया। बड़ौली केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के करीबी हैं। इसी के चलते उन्हें हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में सोनीपत सीट से कैंडिडेट बनाया गया, लेकिन बड़ौली इस बार चुनाव हार गए।
जाट बाहुल्य राज्य में भाजपा की गैर जाट पॉलिटिक्स
बड़ौली को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने एक बार फिर हरियाणा में गैर जाट पॉलिटिक्स पर मोहर लगा दी है। 2014 में पहली बार सूबे में अपने दम पर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली बीजेपी ने जाट बाहुल्य इस राज्य में शुरू से ही गैर जाट की पॉलिटिक्स की और मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि बीजेपी ने अपने पहले कार्यकाल में जाट चेहरे के तौर पर सुभाष बराला को और दूसरे कार्यकाल में ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेशाध्यक्ष बनाया, लेकिन इसके बाद भी जाटों का साथ नहीं मिला तो ओबीसी चेहरे नायब सैनी को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई।
2024 में लोकसभा चुनाव से एन वक्त पहले 12 मार्च को बीजेपी-जेजेपी का गठबंधन टूटा और सीएम मनोहर लाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सीएम मनोहर लाल के सबसे भरोसेमंद नायब सैनी को संगठन के साथ-साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया। नायब सैनी के सीएम बनने के बाद चर्चा चली की पार्टी अब फिर से किसी जाट नेता को प्रदेशाध्यक्ष बना सकती है। इसमें पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का नाम सबसे टॉप पर रहा।
पिछले तीन दिनों से दिल्ली में डटे हुए थे रामबिलास शर्मा
हरियाणा में बीजेपी के दूसरे सबसे मजबूत किले दक्षिणी हरियाणा से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा सीनियॉरिटी के हिसाब से पार्टी के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। रामबिलास शर्मा दो बार प्रदेशाध्यक्ष रहने के साथ ही प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। 2014 में उन्हीं की अगुआई में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस वक्त वे सीएम पद की दौड़ में भी शामिल थे, लेकिन उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर उनसे प्रदेशाध्यक्ष पद वापस ले लिया गया। नायब सैनी के सीएम बनने के बाद अब एक बार फिर रामबिलास शर्मा के प्रदेशाध्यक्ष बनने की प्रबल संभावनाएं थी।
रामबिलास शर्मा पिछले तीन दिनों से दिल्ली में डटे हुए थे। रामबिलास केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा अन्य मंत्रियों से मुलाकात कर चुके थे, लेकिन पार्टी ने उन पर भरोसा जताने की बजाए बड़ौली को कमान सौंपी। रामबिलास शर्मा का प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए पिछड़ने का सबसे अहम कारण उनकी केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह से नजदीकियां भी रही। रामबिलास शर्मा खुलकर राव इंद्रजीत सिंह की तारीफ करते आए हैं, लेकिन बीजेपी का एक बड़ा धड़ा अंदरखाने राव इंद्रजीत सिंह की मुखालफत करता आया है। इसी की वजह से रामबिलास शर्मा पिछड़ गए।
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