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भाजपा में हारे हुए दिग्गजों को तवज्जो क्यों ? बडौली, रणजीत सिंह, डॉ पूनिया समेत कइयों को दी अहम जिम्मेदारी

भाजपा में हारे हुए दिग्गजों को तवज्जो क्यों ? बडौली, रणजीत सिंह, डॉ पूनिया समेत कइयों को दी अहम जिम्मेदारी

भाजपा ने हाल ही में लोकसभा चुनाव हारने वाले मोहनलाल बडौली को दी बड़ी जिम्मेदारी, तो रणजीत सिंह लोकसभा चुनाव हारने के बाद और बिना विधायकी मंत्री बरकरार, वहीं राजस्थान के पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया विधानसभा चुनाव हारने के बाद हरियाणा के इंचार्ज बनाए गए

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा में गत दिनों लोकसभा चुनाव में पांच सीटें हारने के बाद भाजपा विधानसभा चुनाव में इसे दोहराना नहीं चाहती, इसलिए हार के बाद हुए विश्लेषण से सबक लेते हुए नई रणनीति के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी, जिसकी तैयारी हो चुकी है। भाजपा किसी भी कीमत पर पूर्ण बहुमत हासिल करना चाहती है, जिसके लिए पार्टी उन चेहरों को भी आगे रखने की कोशिश में है जो भले, लोकसभा चुनाव हार गए हों लेकिन उनके पल्ले कुछ तो ऐसा है, जिसको भांपते हुए पार्टी आलाकमान उन पर मेहरबान है। 

ज्ञात रहे कि हरियाणा में अक्टूबर माह में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष बदलने की चर्चा पहले से जा रही थी और अंततः भाजपा ने पार्टी का प्रदेश मुखिया बदल दिया। ब्राह्मण चेहरे मोहन लाल बडौली को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। बेशक मोहन लाल लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी ने उन पर विश्वास जताया है कुछ ऐसी ही स्थिति हरियाणा के इंचार्ज बनाए गए राजस्थान से आने वाले डॉ सतीश पूनिया और लोकसभा चुनाव हारने वाले रणजीत सिंह को लेकर है। पार्टी लगातार उनको तवज्जो दे रही है। 

लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद भी बडौली क्यों बने प्रदेश अध्यक्ष

गत लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद भी मोहन लाल बडौली को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष जैसे बड़े पद की जिम्मेदारी दी। बेशक वह कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी से चुनाव हार गए लेकिन उन्होंने कांटे के मुकाबले में ब्रह्मचारी को कड़ी टक्कर दी और हार जीत का अंतर महज 21816 वोट रहा। पार्टी में अन्य भी कई बड़े ब्राह्मण चेहरे थे जो पद के दावेदार थे लेकिन तवज्जो बडौली को दी गई।

लेकिन बडौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे कई कारण हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के करीबी होने का उनका फायदा मिला। लोकसभा चुनाव में सोनीपत से टिकट मिलने के पीछे मनोहर लाल का बड़ा हाथ रहा, ऐसे में लाजमी रहा होगा कि उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से पहले मनोहर लाल से रायशुमारी की गई। उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे उनका ब्राह्मण समुदाय और सोनीपत से होना भी प्रमुख कारण रहा। 

बडौली की ताजपोशी : हुड्डा के गढ़ में भाजपा सेंध 

चूंकि सोनीपत, रोहतक और झज्जर जिलों में राजनीतिक आबो हवा करीब एक जैसी ही  है और इन क्षेत्रों को कांग्रेस दिग्गज भूपेंद्र सिंह हुड्डा गढ़ कहा जाता है। बडौली की ताजपोशी के जरिए भाजपा की कोशिश है कि हुड्डा के गढ़ में भाजपा सेंध लगा पाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा सीट जीतकर तीसरी बार सत्ता में आने का रास्ता सुनिश्चित कर सके। इसके अलावा बडौली का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लंबे समय से जुड़े रहना भी उनके पक्ष में गया। वह 1989 से आरएसएस के सदस्य हैं। 

वह पूर्व में सोनीपत बीजेपी के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं जबकि वर्तमान में प्रदेश महामंत्री हैं। 1995 में बीजेपी ने उन्हें मुरथल मंडल का अध्यक्ष बनाया था। 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कांग्रेस के गढ़ सोनीपत की राई सीट से टिकट दिया था और पार्टी की उम्मीद पर खरा उतरते हुए वो चुनाव जीतने में सफल रहे। 2020 में बीजेपी ने उन्हें सोनीपत का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया था। 2021 में उन्हें प्रदेश महामंत्री बनाया गया और 2024 में दोबारा इस पद के लिए चुनाव गया। बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रदेश चुनाव समिति में भी शामिल किया था। 

लोस चुनाव हारे डॉ. पूनिया को बना दिया हरियाणा प्रभारी 

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके डॉ. सतीश पूनिया को पार्टी हाईकमान ने 5 जुलाई को बड़ी जिम्मेदारी दी है। डॉ. पूनिया को हरियाणा भाजपा का प्रभारी नियुक्त किया गया । इसी साल अक्टूबर तक हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले पार्टी ने हरियाणा की कमान डॉ सतीश पूनिया के हाथों सौंपी है। यहां यह बात बताना सबसे अहम है कि डॉ सतीश पूनिया साल 2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हार चुके हैं इससे पहले 2013 में वह मैच 329 वोटो से चुनाव हारे। 

मोदी, नड्डा और शाह के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक

डॉ पूनिया  चूंकि डॉ. पूनिया पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ केंद्रीय मंत्री अमित शाह के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक हैं, तो ऐसे माना जा रहा है कि अक्टूबर में हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव में उन पर पार्टी हाईकमान ने भरोसा जताया है। ये भी बता दें कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने डॉ सतीश पूनिया की ड्यूटी हरियाणा में लगाई थी।

उन्हें हरियाणा का चुनाव प्रभारी बनाकर भेजा था। राजस्थान से होने के बावजूद वे यहां सक्रिय नहीं रहे और पूरा फोकस हरियाणा पर रखा। पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्रियों के लिए हुई बड़ी बड़ी चुनावी रैलियों का प्रबंधन डॉ. पूनिया ने सफल तरीके से किया। पूनिया के कामकाज से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व काफी खुश हुआ। हालांकि पार्टी क्लीन स्वीप नहीं कर पाई। हरियाणा में 5 सीटों पर कांग्रेस और 5 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। 

रणजीत सिंह :  मिनिस्टर विदाउट बीइंग एमएलए 

भाजपा ने गत लोकसभा चुनाव में हिसार सीट से ऊर्जा मंत्री रणजीत सिंह  को मैदान में उतारा था, लेकिन उनको उम्मीद के विपरीत हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के जयप्रकाश ने उन्हें ठीक-ठाक वोटो के अंतर से हराया। चूंकि लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले उनका विधायकी से इस्तीफा देना पड़ा था और अब जब वो लोकसभा चुनाव हार गए तो ना वह विधायक रहे ना लोकसभा सांसद बन पाए ,लेकिन बावजूद इसके वो "मिनिस्टर विदाउट बीइंग एमएलए हैं"।

भाजपा उठाना चाहती है चौटाला परिवार के प्रभाव का फायदा

भाजपा द्वारा उनको मंत्री बनाए रखने के पीछे मुख्य रूप से दो कारण हैं, पहला हरियाणा में चौटाला परिवार में अभय चौटाला की इनेलो और अजय चौटाला की जजपा पार्टी के प्रभाव वाले इलाकों में भाजपा को मजबूत करना रहा और दूसरा है बेशक रणजीत सिंह की अपनी अलग राजनीति है लेकिन जिन सीटों पर खुद रणजीत सिंह का व्यक्तिगत प्रभाव है वहां पर भी आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत सुनिश्चित करना चाहती है। बेशक चौटाला परिवार अब सत्ता में नहीं है लेकिन फिर भी परिवार का प्रदेश की राजनीति में ठीक ठाक प्रभाव है।

अशोक तंवर समेत कई हारे हुए अन्य दिग्गजों पर भी है भाजपा का रहम-ओ-करम 

लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी छोड़कर भाजपा ज्वाइन करने वाले अशोक तंवर बेशक बड़े अंतर से सिरसा से इलेक्शन हार गए लेकिन पार्टी अभी उनको बराबर और निरंतर तवज्जो दे रही है। वो पार्टी हाईकमान और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के संपर्क में हैं। वही पिछली बार विधानसभा चुनाव हारने वाले और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को पार्टी ने राज्यसभा भेजा। हारे हुए पार्टी नेताओं को महत्व देने के पीछे मुख्य कारण ये है कि इनके प्रभाव वाली सीट और क्षेत्रों पर पार्टी को मजबूत कर ज्यादा से ज्यादा सीट जीत का तीसरी दफा भाजपा की सरकार बनाई जाए।

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