हरियाणा सरकार और न्यायपालिका के बीच शंभू बॉर्डर को लेकर तनाव बढ़ गया है। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने 10 जुलाई को सरकार को एक हफ्ते में बॉर्डर खोलने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ हरियाणा सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
हाई कोर्ट का आदेश और सरकार की प्रतिक्रिया
हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शंभू बॉर्डर पर लगे बैरिकेड हटाने का निर्देश दिया था। यह आदेश स्थानीय व्यापारियों की शिकायत पर आया था, जिन्होंने बॉर्डर बंद होने से होने वाली परेशानियों का जिक्र किया था। हरियाणा सरकार इस आदेश से सहमत नहीं है और इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और सवाल
इससे पहले, 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी की थी। कोर्ट ने पूछा था कि कोई सरकार राजमार्ग पर यातायात कैसे रोक सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का काम यातायात को नियंत्रित करना है, न कि उसे पूरी तरह से रोकना। कोर्ट ने यह भी कहा कि बॉर्डर खुला रहना चाहिए, लेकिन उसे नियंत्रित भी किया जाना चाहिए।
किसान आंदोलन और सुरक्षा चिंताएं
शंभू बॉर्डर पिछले छह महीनों से किसान आंदोलन के कारण बंद है। किसान दिल्ली कूच की तैयारी में यहां डटे हुए हैं। हरियाणा सरकार का कहना है कि सुरक्षा कारणों से बॉर्डर को बंद रखना जरूरी है। लेकिन इससे स्थानीय लोगों और व्यापारियों को परेशानी हो रही है।
आगे की राह
अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। माना जा रहा है कि हरियाणा सरकार सोमवार को अपनी याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग कर सकती है। कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट होगा कि शंभू बॉर्डर की स्थिति क्या होगी और किसान आंदोलन तथा यातायात नियंत्रण के बीच संतुलन कैसे बनाया जाएगा।
यह मामला सिर्फ एक सड़क या बॉर्डर का नहीं है। यह किसानों के अधिकारों, आम लोगों की सुविधा, सरकार की जिम्मेदारियों और न्यायपालिका की भूमिका से जुड़ा हुआ है। इसका समाधान ऐसा होना चाहिए जो सभी पक्षों के हितों का ध्यान रखे और कानून-व्यवस्था भी बनाए रखे।
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