" यंग ऑफ़िसर, गिलास उठाओ और पी जाओ। यही आर्मी का कस्टम है।" " पर, सर, मैं शराब नहीं पीता।"
"क्या ? शराब नहीं पीते! फिर क्या कर रहे हो फौज़ में तुम? शराब नहीं तो क्या दूध पियोगे यहाँ? उठाओ गिलास और गटक जाओ। ओबे द कमांड," बड़ा ऑफ़िसर गुर्राया। "पर, सर..."
" पर क्या?"आँखे लाल कर के बड़ा ऑफ़िसर जवान ऑफ़िसर को घूरने लगा।... हम सब दिल थाम कर बैठे थे। हम यानि कि भानु, उसकी माँ और मैं। हमारा कुत्ता डिलन भी। श्रीमती सिवाच भी थी वहाँ। पर उनकी आँखों में बोरियत झलक रही थी: उन्होंने शायद यह क़िस्सा पहले भी कई बार सुन रक्खा था। सुना रहे थे कर्नल सिवाच। कुछ ही वर्ष पहले रिटायर हुए पर थे एक दम फ़िट। चुस्त और दुरुस्त। एक दम हीरो जैसे।
बात कुछ ऐसी थी कि भानु का जिगरी दोस्त राजकमल फ़्लोरिडा से अपने परिवार के साथ हमसे मिलने टरांटो आया था। राजकमल, उसकी पत्नी डॉक्टर प्रिया,दो प्यारी बेटियाँ, और प्रिया का भाई साहिल -- सबने मिल कर घर में रौनक़ लगा रखी थी। पर रौनक़ के सेंटर में थे कर्नल सिवाच। थिएटर की भाषा में बोलें तो सेंटर स्टेज पर कर्नल सिवाच ही थे!
" फिर क्या हुआ?", मैंने बड़ी बेसब्री से पूछा।
" ऑफ़िसर ने गिलास उठाया और मेरे हाथ में थमा दिया। और कमांड दी: पी जाओ इसे।"
"फिर क्या हुआ? पी ली आपने?"
" नहीं",मैंने कहा: सर मुझे मेडिकल प्रॉब्लम है। शराब से मुझे रीऐक्शन होता है। मुझे वॉमिटिंग होती है। मैं फौज़ में नया नया था। पहली पोस्टिंग थी मेरी।" " फिर, पी ली आपने?"भानु ने पूछा। कर्नल साहिब चुप हो गए। कुछ बोले नहीं। हम सब इंतज़ार कर रहे थे।
फिर उन्होंने कहना शुरू किया:
मैं ठहरा हरियाणा का आदमी। दूध दही पीने वाला। घर में पक्के आर्यसमाजी बाप- दादा। बचपन में तो चोटी भी रखी हुई थी।शराब पीना हराम था, मीट भी। हाँ, दूध बहुत पिया। शौक़ से पिया। हक़ीक़त तो यह है कि सारी ज़िन्दगी दूध ही पिया। श्रीमती सिवाच ने बात का सिरा पकड़ा: और आपने किया ही क्या है ? सिर्फ़ दूध ही तो पिया है। फौज़ की पार्टियों में भी -- जहाँ जाम छलकते थे -- आप या तो ग़ायब होते थे, या फिर नैप्किन से गिलास छिपा कर दूध ही पीते थे। और आज भी। रात को रोटी के साथ दूध न मिले तो नींद नहीं आती आपको!
मैंने बात का सिरा दोबारा पकड़ते हुए कहा : " तो फिर आगे क्या हुआ? " कर्नल साहिब की आँखें छत पर टिक गयीं। अतीत की परछाइयाँ झिलमिला रही थी उन आँखों में।" बचपन में गुरुकुल में पढ़ाई की थी। वहाँ योगाभ्यास के दौरान नेति क्रिया भी सीखी थी। वही काम आयी।मैंने कहा सर पी लेता हूँ । पर उलटी आएगी। वाश रूम भागना पड़ेगा। यह कर मैंने गिलास उठाया। बड़ा सा घूँट भरा, पर शराब को गले से नीचे नहीं जाने दिया। फिर ऊबकाई लेते हुए वाश रूम की तरफ़ भागा और बेसिन में उलटी निकाल दी सारी शराब। यह सारा ड्रामा कई लोगों के सामने हुआ। यूनिट में तो शराब पीने से छुट्टी मिल गयी, पर ऑफ़िसर, जो हरियाणा से ही था , नाराज़ ही रहा, और इस हद तक नाराज़ रहा कि मेरी ए॰सी॰आर॰ ही ख़राब कर गया। लेकिन मेरी दूध पीने वाली बात दूर दूर तक मशहूर हो गयी!"
श्रीमती सिवाच ने उन्हें कश्मीर की बकरियों वाला क़िस्सा याद दिलाया। क्या चमक आयी कर्नल साहिब की आँखों में! बोले वह: दूध पिए बग़ैर मैं रह नहीं सकता था, और कई बार लेह लद्दाख़ की तरफ जाना पड़ता था। चारों तरफ़ बर्फ़। वहाँ शराब के बिना गुज़ारा नामुमकिन था, पर अपने को शराब नहीं दूध चाहिए। तो दो बकरियाँ मंगवायी गई । अड़वांस पार्टी के रूप में वे आगे चलती और हम उनके पीछे। दिन में दो बार झाग वाला दूध डकारते और शराबी साथियों के साथ मौज मनाते।
तभी राजकमल ने कहा : पापा , वह श्री लंका वाला क़िस्सा भी तो सुनाओ । कर्नल साहिब की आँखों में चमक कौंधी। "अर्रे वह तो बड़ा मज़ेदार तजुरबा था। लिट्टे के उग्रवादियों के ख़िलाफ़ हम श्री लंका में पोस्टेड थे। वहाँ दूध कहाँ से मिलता? मैं ख़ुद वहाँ कमांड कर रहा था। मैंने अपने नीचे सिपाहियों को कहा कि दूध का कोई इंतज़ाम देखो। वे एक लोकल को पकड़ कर ले आए और उसे कहा कि या तो रोज़ दो किलो दूध दे , या फिर जान दे। बेचारा मरता क्या न करता । रोज़ दूध ले कर आता। कई दिन यही सिलसिला चला।फिर एक दिन देखा कि वह एक भैंस ले कर आ रहा है । बोला, साहिब, ये भैंस ही रख लो। पूछने पर पता चला कि उग्रवादियों ने उसे मना किया है और मारने की धमकी दी है ।" " फिर आपने क्या किया?",मैंने पूछा। कर्नल साहिब मुस्कुराए, बोले, मैंने कहा,"मरना तो तूने है ही। वे नहीं मारेंगे तो हम मारेंगे। अब तू फ़ैसला कर कि किस के हाथों मरना चाहता है। फिर दूध की सप्लाई शुरू हो गयी ! यह बात अलग है कि कुछ दिन बाद उग्रवादियों ने उसे यह कह कर मार डाला कि वह हमारी मुखबिरी करता था।
गपशप करते करते बरार जा कर डिनर का प्रोग्राम बन गया। बरार बड़ा रेस्तराँ है।हर प्रकार का भारतीय खाना मिलता है यहाँ। बफ़े सिस्टम के तहत कुछ भी खा सकते हैं वहाँ: गोल गप्पे से लेकर रसमलाई, आलू छोले से ले कर इडली दोसा,खीर से लेकर सोहन हलवा भी। सब कुछ जी को ललचाने के लिए, मुँह में पानी लाने के लिए काफ़ी था । सबने अपनी पसंद की चीज़ें लीं। जा कर टेबल पर बैठे।
अचानक कर्नल साहिब ने अपनी पत्नी से कहा:अरे, आप मेरा दूध लायीं कि नहीं? मैडम ने मुस्कुरा कर उनकी तरफ़ देखा। फिर पर्स में हाथ डाला। पर्स में से निकाली दूध की बोतल। रख दी उनके सामने , और कहा : दूध कैसे भूल सकती थी मैं! चलते वक़्त सबसे पहले दूध ही तो डाला था बॉटल में! हम सब ठहाका मार कर हँसने लगे। कर्नल साहिब थोड़ा शर्माए , फिर बॉटल उठाई और बोले: दूध तो पियूँगा ही मैं!
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