नौ महीने गर्भ में रखकर एक बच्चे के शरीर की संरचना के निमित्त बनने वाली माँ के लिए बच्चा क्या मायने रखता है, ये उससे बेहतर कोई नहीं जानता। "माँ'' केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि एक दुनिया है, जिसमें अनेकों भाव और उतार -चढ़ाव और न जाने क्या -क्या समाया होता है।
बच्चों की खातिर मां हर जोखिम उठाने को तैयार रहती है। संतान की खातिर वह कुछ भी कर सकती है फिर चाहे स्वयं की जान जोखिम में डालने की बात ही क्यों ना हो। कहते भी हैं ना पूत कपूत सुने, ना सुनी माता कुमाता...जी हां, इन्हीं वाक्यों को चरितार्थ करते हुए एक मां ने अपने "जिगर के टुकड़े'' को किडनी दे जान बचाने का कार्य किया है।
डायलिसिस के लिए भागदौड़ और अपनी बीमारी से वह काफी परेशान था आशीष
जानकारी मुताबिक़ 26 वर्षीय आशीष एक निजी कंपनी में कार्यरत है और पिछले लगभग एक साल वे किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। प्राइवेट नौकरी करते हुए बार-बार डायलिसिस के लिए भागदौड़ से और अपनी बीमारी से वह काफी परेशान था। आशीष की युवा अवस्था होने के कारण परिजनों को किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई, जिस पर वह राजी हो गए।
ग्रेटर फरीदाबाद स्थित एकॉर्ड अस्पताल में किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे बेटे को मां ने अपनी किडनी देकर नया जीवन दिया है। ट्रांसप्लांट के बाद मां और बेटा दोनों स्वस्थ हैं। इस सफल ट्रांसप्लांट को नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. जितेंद्र कुमार ने नेतृत्व में यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी, डॉ. वरुण कटियार की टीम ने अंजाम दिया।
किडनी ट्रांसप्लांट कुछ चुनौतियां भी आती हैं सामने
वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र कुमार ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट, किडनी फेलियर का बेहतर विकल्प है, लेकिन इसमें समस्या ये आती है कि डोनर हमेशा कमी रही है। पहले ब्लड ग्रुप का मैच होना जरूरी होता था और बहुत बार परिवार के सदस्यों का ट्रांसप्लांट संभव नहीं होता था, क्योंकि ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता था। इस कारण मरीज ट्रांसप्लांट से वंचित रह जाते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ब्लड ग्रुप बदलने की तकनीक भारत में तेजी से फैल रही है। एकॉर्ड अस्पताल की टीम जो ट्रांसप्लांट के मामले में हमेशा अग्रणी रही है।
नवरात्र के दिनों ''माँ'' ने दिया बेटे को पुनर्जन्म
लेकिन इस नवरात्र खास ये हुआ कि बेटे का मां से ब्लड ग्रुप तो नहीं मिलता था, लेकिन मां की इच्छा प्रबल थी कि वह किडनी दान दे, जबकि बेटे के शरीर में मां के ब्लड ग्रुप खिलाफ एंटीबॉडी अत्यधिक था। नई तकनीक एडवांस विट्रोसर्ब सेकोरिम कोलम से ब्लड ग्रुप को बदल कर ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया गया।
नवरात्रि में एक मां के द्वारा दिया गया यह दान विशेष मायने रखता है, क्योंकि मां को हम दया के रूप में भी जानते और शक्ति और प्रेम के रूप में भी जानते हैं। इस तरीके का दान एक उत्कृष्ट नमूना है मां के अपने बच्चों के प्रति प्रेम का। इस दौरान 51 मां ममता ने बेटे आशीष को अपनी एक किडनी दान की। ट्रांसप्लांट के बाद अब दोनों स्वस्थ है। उन्हें अस्पताल के छुट्टी दे दी गई है।
जानिए एबीओ तकनीक के बारे में
यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी, डॉ. वरुण कटियार ने बताया कि एबीओ इनकम्पैटिबल विधि में ए-बी-ओ का मतलब ब्लड ग्रुप से है। इस तकनीक से मरीज और डोनर के अलग-अलग ब्लड ग्रुप के होने पर भी किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकती है। खास बात यह है कि किडनी ट्रांसप्लांट से पहले मरीज व डोनर के एंटीबॉडीज का लेवल मानक के अनुरूप होना चाहिए। इसे डोनर के अनुरूप करने में दस दिन का समय लगता है। प्रतिदिन मरीज की बॉडी में प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से एंटीबॉडीज की मात्रा घटाई जाती है।
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