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The Haryana Story | अशिक्षित 'कमला' की 'कलम' जगा रही शिक्षा की अलख, इस लेख में जानें कौन हैं कमला आर्य

अशिक्षित 'कमला' की 'कलम' जगा रही शिक्षा की अलख, इस लेख में जानें कौन हैं कमला आर्य

कमला एक ऐसी महिला हैं जिसने जीवन में हारना कभी सीखा ही नहीं। उनके जीवन की सबसे उम्दा बात ये है कि वो अशिक्षित हैं, बावजूद इसके शिक्षा की अलख जगा रही हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर

महिला दिवस विशेष.........✒️

पानीपत। 'टूटने लगे हौसला तो ये याद रखना, बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते ढूंढ़ लेते हैं अंधेरों में मंजिल अपनी, क्योंकि जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते'....कहते हैं हौसला हो बुलंद और दिल में हो कुछ खास करने का जज्बा तो फिर कोई काम नहीं मुश्किल..जब किया वायदा पक्का की कहावत के अनुरूप कुछ शख्स लीक से हटकर एक अलग पहचान कायम करते हैं। आज हम जिस हस्ती के बारे में आपको बताना चाहते हैं वो एक ऐसी महिला हैं जिसने जीवन में हारना कभी सीखा ही नहीं। उनके जीवन की सबसे उम्दा बात ये है कि वो अशिक्षित हैं, बावजूद इसके शिक्षा की अलख जगा रही हैं। वो हैं देश में करीब 106 चेतना स्कूल और सिलाई-कढ़ाई-बुनाई सेंटर के ज़रिए गरीब बच्चों और महिलाओं के जीवन में नई रोशनी लेन वाली कमला आर्य।

कभी स्कूल नहीं गई, किताबें नहीं पढ़ी.. फिर भी खुद पर लिख दी किताब

हैरतअंगेज पहलू यह भी है कि जिस 'कमला' ने बचपन में कभी स्कूल ही नहीं देखा, हाथ में कभी 'कलम' पकड़ना तो दूर की बात है। आज वही अशिक्षित महिला हजारों विद्यार्थियों का जीवन संवार रही हैं। जी हां कमला नाम की इस महिला के जीवन की उपलब्धियां आपको अचंभित कर देंगी। एक अशिक्षित महिला होने के बावजूद कमला ने शिक्षा की अलख जगाई है। अशिक्षा के अंधेरे में एक जुगनू की तरह कमला देवी ने अपनी मंजिल को खुद के बलबूते पर हासिल किया है। आज 76 साल की कमला आर्य, जो कलम पकड़ना भी नहीं जानती थी, उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पर 'गांव से चेतना तक का रोमांचक सफर' किताब खुद लिखी है, जिसमें उन्होंने अपने जन्म स्थान मेरठ के गांव से शुरू हुए सफर से लेकर आज तक के अनुभव को साझा किया है।

बिना चंदे व फंड के अपने बलबूते पर खोले स्कूल

कमला के इस फलसफे की शुरुआत वर्ष 2002 से कुछ यूं शुरू हुई कि जब कमला आर्य ने साफ-सफाई करके कूड़ा घर के बाहर रख दिया। कमला अपने घर के आंगन में बैठी थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि 8-10 बच्चों की टोली उस कूड़े में से चीजें छांट रही थी। उनके कपड़े फटे थे, हाथ-मुंह मैले। नंगे पैर वे बच्चे टूटी-फूटी चीजें उठाकर अपने झोले में भर रहे थे। उनकी हालत देखकर कमला से रहा नहीं गया और उन्होंने पूछ लिया- बेटे इनका क्या करोगे? एक बड़े बच्चे ने सहमते हुए बताया- 'अम्मा, इसे बेचकर घर का खर्च चलाएंगे।' कमला ने पूछा- तुम स्कूल क्यों नहीं जाते या फिर तुम्हारा मन ही स्कूल जाने को नहीं करता? बच्चे बोले- मन तो बहुत करता है, लेकिन पिताजी स्कूल भेजने के बजाय कूड़ा बीनने के लिए भेज देते हैं।

अभाव ग्रस्त बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ करने की ठानी

मासूम बच्चों की इस बात से कमला का दिल पसीज गया और उन्होंने ऐसे अभाव ग्रस्त बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ करने की ठानी। कमला ने सोच लिया कि ऐसे बच्चों का पढ़ाना है और मात्र चार-पांच बच्चों को घर में बैठाकर शुरू कर दिया अभियान। इसके लिए पड़ोस की लड़की भी नियुक्त कर ली। पांच बच्चों का पढ़ाना शुरू किया और चल पड़ा कारवां मंजिल की ओर...शुरुआती दौर में स्कूल का कोई नामकरण नहीं किया गया। बाद में गरीब, असहाय बच्चों में शिक्षा की चेतना जगाने वाले इस स्कूल का नाम रखा गया 'चेतना' स्कूल। कमला ने जहां असहाय बच्चों को शिक्षित करने की बात मन में ठानी वहीं अपने आप भी पढ़ना शुरू कर दिया।

और आखिरकार ऐसे हुई शुरुआत

4 जनवरी 2003 को 'चेतना परिवार' के नाम से पानीपत में जीटी रोड पर बंद पड़ी फैक्ट्री में स्कूल खोला गया और 10 बच्चों से इसकी शुरुआत हुई। जल्द ही इनकी संख्या बढ़ती गई। कमला आर्य और उनके प्रधानाचार्य पति दीपचंद निर्मोही की कोशिशों से चेतना परिवार का विस्तार होता चला गया। कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए पानीपत में निर्धन लोगों की बस्तियों में एक के बाद एक चेतना स्कूल खुलते चले गए। इस समय पानीपत में करीब 60 चेतना स्कूल सेवारत हैं, जिनमें जरूरतमंद परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। अब इस अभियान में कई आईएएस, आईपीएस और उद्योगपति भी जुड़ गए हैं। कमला आर्य ने बताया की चेतना स्कूलों एवं सेंटरों में महिलाओं व बेटिओं की सुरक्षा का खास ध्यान रखा जाता है।

प्रयास लाया रंग : देश भर में चल रहे हैं 106 स्कूल

समस्याओं का सामना करते, दिक्कतों से जूझते 'कमला' की 'कलम' के प्रयास से इस वक्त देशभर में 106 चेतना स्कूल चल रहे हैं। इस स्कूल की सबसे खास बात है कि यह निःशुल्क है, वह स्कूल चेतना ट्रस्ट के रूप में काम कर रहे हैं। स्कूल के लिए सरकार से कोई फंड व पैसा नहीं लिया जाता। वहीं कमला के पति प्रसिद्ध साहित्यकार चेतना ट्रस्ट के न्यासी दीपचंद निर्मोही ने चेतना परिवार बनाकर देश भर में अशिक्षा के खिलाफ जागरूकता अभियान में अपनी पत्नी का भरपूर साथ दिया। चेतना स्कूल में शिक्षा के साथ बच्चों को खासकर लड़कियों को घरेलू कार्यों में निपुण करने के साथ-साथ कढ़ाई-बुनाई और सिलाई आदि भी सिखाई जाती है। करीब 26 सिलाई-कढ़ाई, बुनाई, कंप्यूटर सेंटर चल रहे हैं। एक छोटे से स्कूल ने आज देश भर में इतना विस्तार कर लिया है कि यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखंड, पंजाब सहित कई राज्यों में बच्चे निशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। 

इरादों के सामने आई बाधाएं भी

कमला देवी के प्रयासों और सफलता से क्या लगता है कि इतना बड़ा मुकाम हासिल करने के लिए उन्हें दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा होगा? इस बारे में जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि जब ये स्कूल शुरू किया तो पढ़ने आने वाले बच्चों के मां-बाप आकर कहते हैं कि ये पढ़ेंगे तो पैसे कौन कमाएगा? इनके स्कूल जाने से रोजाना हमारा 50-100 रुपए की दिहाड़ी का नुकसान हो रहा है। कई बार बच्चों को जो किताबें दी जाती वो उसे रद्दी में बेच देते हैं। इन समस्यों से कमला देवी कतई भी झल्लाई नहीं और न ही कभी बच्चों को डांटा बहुत प्यार व विनम्रता से बच्चों को शिक्षा का महत्व बताती और उन्हें पढ़ाई के लिए मना लेती। 

शिक्षा के महत्व को बखूबी समझा

अशिक्षित होते हुए भी कमला देवी ने शिक्षा के महत्व को बखूबी समझा है। उन्होंने तीन साल पहले एक और सराहनीय कदम उठाया है, जिसका जिक्र करना भी वाजिब है। कमला देवी ने वर्ष 2013 में महिलाओं के लिए एक प्रौढ़ स्कूल का शुभारंभ भी किया, इस प्रौढ़ केंद्र की कामकाजी गरीब महिलाएं व बुजुर्ग शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। जब पांच बच्चों से शुरू किए स्कूल को नेशनल लेवल पर पहुंचा दिया तो वाकई कमला जी का ये प्रयास भी सफल ही रहेगा। 

अन्यथा तालीम की रोशनी से महरूम रह जाते बच्चे

'चेतना परिवार' के सहयोग से हरियाणा के पानीपत-करनाल के अलावा बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और यूपी में ये स्कूल खुले हैं, जहां हजारों ऐसे बच्चे पढ़ रहे हैं जो अन्यथा तालीम की रोशनी से महरूम रह जाते। इन सभी स्कूलों का संचालन चेतना परिवार जन सहयोग से कर रहा है। 106 स्कूलों में कूड़ा बीनने वाले बच्चों को निशुल्क ही शिक्षित किया जाता है। जबकि 26 स्कूलों में गरीब परिवारों की बेटियां फ्री में सिलाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। इतना ही नहीं, छह स्कूलों में तो मजदूर महिलाओं को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है। कुल मिलाकर शून्य से शुरू हुआ चेतना परिवार का सफर आज आठ राज्यों में हाशिए पर खड़े बच्चों-महिलाओं को निशुल्क शिक्षा देने तक पहुंच चुका है। 

सामाजिक सहयोग और परस्पर मित्रता 

कमला बताती हैं इस अभियान की सफलता के बाद धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ते चले गए। चेतना परिवार ने जरूरत वाले इलाकों में स्कूल की शाखाएं खोलकर निशुल्क शिक्षा, पाठ्य सामग्री, कपड़े आदि मुहैया कराना शुरू कर दिया है। इस काम में सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद भी ली जाती है। हरियाणा से बाहर बिहार और झारखंड में इन स्कूलों की संख्या काफी है। स्कूल में चौथी क्लास तक शिक्षा दी जाती है, इसके बाद प्रमाण पत्र देकर सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया जाता है। चेतना परिवार के स्कूलों में पढ़ाई के अलावा एक और चीज है जिसे पढ़ाया जाता है और वह है- सामाजिक सहयोग और परस्पर मित्रता। 

अ से 'अनार' नहीं, अ से 'अमन'

चेतना परिवार के स्कूलों में बच्चों को अक्षर ज्ञान के साथ बेहतर विचार व सुसंस्कार भी दिए जाते हैं। इनके कैदे में आम कैदों वाली हिंदी वर्ण माला के अ से अनार, भ से भालू नहीं बल्कि अ से अमन और भ से भक्त सिंह पढ़ाया जाता है। एक कविता के रूप में वर्ण-अक्षर का ज्ञान अपने की एक अनूठे तरीके से दिया जा रहा है। इन स्कूलों में बच्चों को अ से अनार और ए से एड़ी के स्थान पर अ से अमन करेंगे हम, जग को चमन करेंगे हम, और ए से एक बनेंगे हम, बच्चे नेक बनेंगे हम... पढ़ाया जाता है। इन स्कूलों में इस समय देश का भविष्य तैयार हो रहा है। पानीपत के महिला स्कूलों में 80 वर्ष तक आयु की महिलाएं भी शिक्षित हो रही हैं। जबकि कक्षा चार से आगे पढ़ने वाली बेटियों को 500 रुपए प्रतिमाह गृहलक्ष्मी छात्रवृत्ति भी दी जाती है। कमला जी के हौसलों को देखते हुए लगता है कि बुलन्दियों को पाने में वो मेहनत और हौसला कमला देवी के रोम-रोम में आज भी बसा हुआ है।

दीपचन्द्र निर्मोही के प्रसिद्ध लेखक और साहित्यकार

दीपचन्द्र निर्मोही जी... ये वो शख्शियत है, जिहोंने अपनी पत्नी कमला के इस फैसले पर भरपूर साथ और समर्थन दिया, आज कमला बिना स्कूल जाए और बिना कोई शैक्षणिक डिग्री लिए भी शिक्षा जगत की महत्वपूर्ण और प्रेरणा दायक 'शिक्षिका' है। कमला आर्य के पति दीपचन्द्र निर्मोही के प्रसिद्ध लेखक और साहित्यकार हैं। उनकी शिक्षा गाँव की प्राथमिक पाठशाला में। दसवीं से लेकर मेरठ विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय तक शिक्षा का अनियमित सिलसिला। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त है।
 
दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित– उपन्यास, कहानी, कविता जीवनवृत्त और ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़ी, कुछ सम्पादित। बच्चों और युवाओं के लिये विशेष।  हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘बाल साहित्य सम्मान’। ‘इतिहास के झरोखे से’ एवं ‘सूरज का सफर’ हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत। राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक महासंघ, विश्व शांति संगठन, अखिल भारत रचनात्मक समाज और भारत सोवियत सांस्कृतिक समिति से जुड़े रहे। हिन्दी के लिये दो बार जेल गए। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन। शिक्षा-प्रणाली से बाहर पड़े बच्चों के लिये सौ से अधिक नि:शुल्क चेतना स्कूलों के निर्माण में सक्रियता। 
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