
हिन्दू धर्म में कई देवी-देवता हैं जो किसी न किसी खास विशेषता के लिए पूजे जाते हैं, जिसमें माता शीतला का नाम भी शामिल है। हम सभी जानते हैं कि माता शीतला चेचक की देवी, आरोग्य की देवी एवं अन्य संक्रामक बीमारियों की देवी के तौर पर पूजी जाती हैं। शीतला माता को हिन्दू धर्म में रोग-निवारण की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे मुख्य रूप से चेचक, खसरा, बुखार और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा करने वाली माता मानी जाती हैं। भारत में उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात, बंगाल और मध्य भारत में इनकी ज्यादातर पूजा होती है। शीतला माता का स्वरूप शीतला माता को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।
शीतला माता को देवी पार्वती का अवतार भी माना जाता
चेचक और अन्य संक्रामक रोगों की देवी के साथ-साथ शीतला माता को देवी पार्वती का अवतार भी माना जाता है। शीतला माता का अर्थ है 'ठंडी' या 'शीतल', और उन्हें बुखार और जलन से राहत देने वाली देवी माना जाता है। शीतला माता की पूजा मंगलवार सप्तमी और अष्टमी (हिंदू महीने का सातवाँ और आठवाँ दिन) को की जाती है, खासकर चैत्र महीने में होली के बाद। शीतला माता अक्सर गधे पर सवार दिखाई जाती हैं, और उनके हाथ में झाड़ू, कलश (जल से भरा), सूप और नीम की पत्तियां होती हैं। शीतला माता को चेचक रोग की देवी भी कहते हैं।
शीतला माता से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा
शीतला माता कैसे आरोग्य की देवी बनी ये के रोचक कहानी है। शीतला माता से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, ज्वर असुर जिसे बुखार का मानव रूप माना गया है, वो माता शीतला का पति और कभी-कभी उसका अनुचर भी होता है। वह भगवान शिव के पसीने से पैदा हुआ था। वहीं पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने माता शीतला की रचना की। माता शीतला, भगवान शिव के पसीने से उत्पन्न एक ज्वर नामक राक्षस के साथ धरती पर आईं।
जब माता शीतला और ज्वर असुर रहने के लिए जगह की तलाश में धरती पर उतरे, तो वे भगवान शिव के एक भक्त राजा विराट के दरबार में पहुंचे। राजा ने उन्हें अपने राज्य में रखने से इनकार कर दिया। राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई। शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए। लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ। तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।
जो भक्त उनकी सच्चे मन से आराधना करेगा, वह रोगों से मुक्त रहेगा
तो कुल मिलाकर स्कंद पुराण के अनुसार, शीतला माता का जन्म ब्रह्मा जी के तेज से हुआ था। जब पृथ्वी पर संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ा, तब ब्रह्मा जी ने शीतला माता को उत्पन्न किया और उन्हें यह वरदान दिया कि जो भक्त उनकी सच्चे मन से आराधना करेगा, वह रोगों से मुक्त रहेगा। वहीं पौराणिक कथा के अनुसार, देवी शीतला भगवान शिव के पसीने से उत्पन्न ज्वरासुर नामक राक्षस के साथ धरती पर आईं।
शीतला माता को स्वच्छता की देवी भी माना जाता
बता दें कि शीतला माता को स्वच्छता की देवी भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने हाथों में मार्जनी (झाड़ू) और कलश लेकर स्वच्छता और शीतलता प्रदान करने का संदेश दिया है। शीतला माता को बासी भोग चढ़ाने की प्रथा है, जो शीतलता और स्वच्छता का प्रतीक है। बासी भोजन को शीतला माता को अर्पित किया जाता है, क्योंकि वे शीतलता प्रदान करने वाली देवी हैं।
वहीं शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन लोग बासी भोजन का भोग लगाते हैं और देवी को शीतलता और आरोग्य की देवी मानते हैं। सार रूप में कहें तो शीतला माता को आरोग्य और स्वच्छता की देवी माना जाता है। वे चेचक, घाव, फुंसियों और अन्य बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। उनकी पूजा से स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
माता रूठ जाए तो घर में फैल सकती है बीमारी
शीतला का अर्थ है ठंडी या शांत करने वाली, जो बुखार और जलन जैसे रोगों से राहत देती हैं। शीतला माता अक्सर गधे पर सवार दिखाई जाती हैं। उनके हाथ में झाड़ू, कलश (जल से भरा), सूप और नीम की पत्तियां होती हैं। ये सभी रोग निवारण के प्रतीक हैं। उनका शरीर लाल चकत्तों से युक्त दर्शाया जाता है, जो यह बताता है कि वे बीमारी लाने और हटाने दोनों में सक्षम हैं। होली के बाद की सप्तमी या अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी कहा जाता है।
इस दिन माता को ठंडा भोजन (बासी खाना) अर्पित किया जाता है। इसलिए इसे बसौड़ा भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन पकाया गया खाना खाने से बीमारियां नहीं होतीं। शीतला माता की पूजा बच्चों को चेचक, खसरा और त्वचा रोगों से बचाने के लिए एवं परिवार में स्वास्थ्य, शांति और रोगमुक्ति के लिए की जाती है। मान्यता है कि माता रूठ जाएं तो घर में बीमारी फैल सकती है।
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