जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी तरह इंटरनेट और डिजिटल होती दुनिया के भी दो अलग-अलग पहलू हैं। एक तरफ इंटरनेट और डिजिटल तकनीक लोगों की जिंदगी आसान कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ समाज और दुनिया पर इसका बुरा असर भी तेजी से पड़ रहा है और सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ रहा है बच्चों पर।
डिजीटल युग ने बच्चों का बचपन छीन लिया, दादी-नानी की कहानी तो मां की लोरियों को छीन लिया। खुले आसमान में चांद तारों, बादलों को निहारना, कहानी किस्से सुनना, पारंपरिक खेल खेलना ये तो जैसे गुज़रे ज़माने की बातें हो गई। आज बच्चों को छोटी उम्र से ही पेरेंट्स मोबाइल फोन की लत लगा देते हैं, जो बाद में चलकर उनके लिए कई समस्याओं का कारण बन जाता है। इससे बच्चे मानसिक रूप से कमजोर होने लगते हैं, जिसे वर्चुअल ऑटिज्म कहते हैं। आज इसमें कोई दो राय नहीं है मोबाइल फोन, टीवी, टैबलेट, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म का शिकार बना रहे हैं।
मां-बाप पीछा छुड़ाने के लिए बच्चों को थमा देते हैं मोबाइल
मां बाप रोते बच्चों को चुप करने के लिए, पीछा छुड़ाने के लिए या फिर बच्चों की जिद पूरी करने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते है, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सबसे बच्चों में ऑटिज्म की बीमारी बढ़ रही है। ऑटिज्म तीन चीजों को प्रभावित करता है - सोशल स्किल्स, कम्यूनिकेशन स्किल्स और बिहेवियर स्किल्स।
बच्चे जब रोते हैं या किसी चीज के लिए जिद करते हैं तो अक्सर मां-बाप पीछा छुड़ाने के लिए बच्चों को मोबाइल या कोई और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट थमा देते हैं। यह ट्रेंड आजकल काफी आम हो गया है। इससे बच्चा शांत तो हो जाता है लेकिन इससे उसे कई घंटे स्क्रीन के सामने बिताने की लत लग जाती है और ये लत बच्चों को 'वर्चुअल ऑटिज्म' का शिकार बना रही है।
जानें क्या है वर्चुअल ऑटिज्म
वर्चुअल ऑटिज्म दरअसल ऐसी स्थिति है, जिसमें मोबाइल और स्मार्टफोन, टीवी या कंप्यूटर पर ज्यादातर वक्त बिताने वाला बच्चा दूसरों से बातचीत करने में दिक्कत महसूस करने लगता है। ये स्थिति सवा साल से छह साल तक बच्चों में ज्यादा देखी जा रही है। चूंकि बच्चे ज्यादातर वक्त मोबाइल या टीवी के सामने बिताते हैं तो वो बोलने, बात करने या बात को समझने में दिक्कत महसूस करने लगते हैं।
ऐसे बच्चों का स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पाता। वो दूसरों के सामने या दूसरों से बातचीत करने में सहज नहीं हो पाते और उनका सामाजिक दायरा कमजोर होने लगता है। सारा दिन जब बच्चा टीवी या मोबाइल के आगे बैठता है तो उसका दिमाग उसी तरह व्यवहार करने लगता है। वो बाकी लोगों से आंखें मिलाने में कतराता है, बातचीत में दिक्कत होने के साथ साथ बच्चे का इंटेलिजेंस लेवल भी कमजोर होने लगता है। ऐसी स्थिति को ही वर्चुअल ऑटिज्म कहा गया है।
बच्चों में कब दिखते हैं लक्षण
वैसे अगर आप नवजात बच्चे के सामने फ़ोन, टीवी कुछ भी देखते हैं तो वो भी उनकी तरफ आकर्षित होने लगता है। अक्सर जब बच्चे टीवी या मोबाइल पर चल रहे साउंड, सांग, पोयम आदि सुनते हैं तो चुप हो जाते हैं और बंद होते ही रोने लगते है और माता पिता बच्चे की इस एक्टिविटी को देख खुश होते हैं, बस यहीं से बढ़ावा मिलना शुरू होता है और बच्चे को वो सब दिखाना, सुनाना शुरू कर देते है।
अब 7-8 महीने का बच्चा इन सब चीजों का आदी होने लगता है, दूध भी फ़ोन देखते हुए पिएगा और जब बच्चा अपने हाथ से चीज़े पकड़ना सीखता है तो हर खिलौना छोड़ उसको आपका मोबाइल फ़ोन चाहिए, आप भी नासमझी में वही करने लगते हैं जो बच्चा चाहता है। यहीं से बच्चा ऑटिज़्म का शिकार होना शुरू हो जाता है। देखने में आता है अक्सर दो या तीन साल की उम्र से बच्चों में ऑटिज्म के संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं और जब ये संकेत मिलते है तो आप समझ नहीं पाते और सामान्य समझ कर छोड़ देते हैं, लेकिन उम्र के साथ ये लक्षण बच्चो में बढ़ते जाते हैं।
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में लक्षण
- बोलना देरी से सीखना किसी शब्द या वाक्य को दोहराना
- सवालों के गलत जवाब देना
- दूसरों की बात को दोहराना
- पसंद की चीजों को प्वाइंट ना करना
- गुड बाय कहना या हाथ हिलाने जैसी कोई प्रतिक्रिया ना देना
- मजाक ना समझ पाना
- दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने से बचना
- अकेले रहना
- खेलकूद में हिस्सा ना लेना या रुचि ना दिखाना
- किसी एक जगह पर घंटों अकेले या चुपचाप बैठना
- किसी एक ही वस्तु पर ध्यान देना या कोई एक ही काम को बार-बार करना
- दूसरों से सम्पर्क ना करना
- सनकी व्यवहार करना
- किसी भी एक काम या सामान के साथ पूरी तरह व्यस्त रहना
- खुद को चोट लगाना या नुकसान पहुंचाने के प्रयास करना
- गुस्सैल, बदहवास, बेचैन, अशांत और तोड़-फोड़ मचाने जैसा व्यवहार करना
- किसी काम को लगातार करते रहना जैसे, झूमना या ताली बजाना
- एक ही वाक्य लगातार दोहराते रहना
- दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को ना समझ पाना
- दूसरों की पसंद-नापसंद को ना समझ पाना
- किसी विशेष प्रकार की आवाज़, स्वाद और गंध के प्रति अजीब प्रतिक्रिया देना
- पुरानी स्किल्स को भूल जाना
माता-पिता को सावधान और चौकन्ना रहना चाहिए
विशेषज्ञों का मानना है कि कम उम्र में बच्चों को फोन थमाने से उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल, गैजेट्स और ज्यादा टीवी देखने की लत बच्चों का भविष्य खराब कर रही है। इससे उनमें वर्चुअल आटिज्म का खतरा बढ़ रहा है। बच्चों के लिए फ़ोन पर निजी जानकारी देना या अनुचित सामग्री देखना बहुत आसान है। इसलिए, यह सुझाव दिया जाता है कि जब बच्चे मोबाइल फ़ोन का उपयोग करें तो माता-पिता को सावधान और चौकन्ना रहना चाहिए।
खेलों के जरिए बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म से बचाना संभव
अगर बच्चों का शेड्यूल सही से बनाया जाए तो उन्हें वर्चुअल ऑटिज्म की चपेट से बचाया जा सकता है। इसके लिए बच्चों को आउटडोर एक्टिविटी, फिजिकल एक्टिविटी, खेल और दूसरी एक्टिविटीज में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे बच्चा गैजेट पर कम निर्भर होगा और उसका सामाजिक दायरा भी बढ़ेगा। बच्चे का स्क्रीन टाइम खत्म करने के लिए उसका शेड्यूल इस तरह बनाएं कि वो पूरा दिन बिजी रहे।
दोपहर तक बच्चा स्कूल से आने के बाद लंच और आराम करे। इसके बाद उसकी आउटडोर एक्टिविटीज पर फोकस करें। वो पार्क या दूसरी जगहों पर जाकर खेले और दोस्तों से बातचीत करें। इसके साथ साथ उसका स्लीप पैटर्न भी दुरस्त करना चाहिए, ताकि बच्चा एक सही वक्त पर सो जाए और मोबाइल देखने में समय खराब ना करें। बच्चों के साथ उनके मां बाप को भी स्पोर्ट्स और फन एक्टिविटी में भाग लेना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चा उत्साहित होगा और उसे मोबाइल की कमी नहीं खलेगी।
बच्चों से पहले अपने में बदलाव लाना ज़रूरी
- ऐसा करने के लिए मां-बाप को पहले खुद में सुधार करना होगा
- बच्चों के सामने खुद भी फोन से दूरी बनानी होगी और स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में हिस्सा लेना चाहिए
- प्रकृति और पशु पक्षियों के बारे में उनसे बात करें
- घर में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के बारे में जानकारी दें और बच्चों से बातचीत करें
- बच्चों को फलों और फलो के बारे में जानकारी दें
- उनको कोई न कोई ऐसी एक्टिविटी दें जिसमे वो दिमाग भी लगाएं कर बोले भी
- आजकल ऐसे बहुत सारे खिलौने बाजार में उपलब्ध हैं, जिनसे बच्चा फ़ोन या टीवी की बजाय बहुत कुछ सीख सकता है, जैसे एनिमल्स टॉय, फ्रूट्स, किचन सेट, डॉक्टर सेट आदि
- शाम को खेलने के लिए पार्क ले जाएं, वहां नए दोस्त बनाने में उसकी मदद करें
- घर पर आप उसके साथ चेस, या कोई बोर्ड गेम खेल सकते हैं, इससे बच्चों के सोशल और मानसिक डेवलपमेंट में मदद मिलती है। कुछ भी हो आप अपने बच्चे को स्क्रीन से दूर रखने की कोशिश करें।
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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