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हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मच गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार अल्पमत में आने के बाद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इस खेल में विधायकों को आकर्षित करने के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया जा रहा है। यह खबर राज्य की राजनीति में नए समीकरणों की ओर इशारा करती है।
भाजपा की रणनीति: टिकट का चारा
भाजपा ने अपनी सरकार बचाने के लिए एक नई रणनीति अपनाई है। पार्टी ने कुछ निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया है। इस सूची में हलोपा के निर्दलीय विधायक गोपाल कांडा, फरीदाबाद की पृथला से निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से नरवाना के विधायक राम निवास सुरजाखेड़ा और बरवाला के विधायक जोगी राम सिहाग शामिल हैं। ये सभी विधायक पहले से ही भाजपा सरकार का खुला समर्थन कर रहे हैं।
जेजेपी और कांग्रेस में दरार
जेजेपी में पहले से ही उथल-पुथल चल रही है। कुछ विधायकों ने लोकसभा चुनाव में ही पाला बदल लिया था। टोहाना के विधायक देवेंद्र सिंह बबली ने कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन किया था, जबकि गुहला विधायक ईश्वर सिंह के बेटे और शाहबाद विधायक राम करण काला के दो बेटे कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसी तरह, कांग्रेस के कुछ विधायक भी भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री का दावा और किरण चौधरी का प्रभाव
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने दावा किया है कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि खतरा अगर किसी को है तो वह कांग्रेस है, जिसके अपने विधायक उसके साथ नहीं हैं। इस बयान से साफ है कि जेजेपी और कांग्रेस के कुछ विधायक भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हाल ही में कांग्रेस की तोशाम विधायक किरण चौधरी के भाजपा में शामिल होने से यह संकेत और मजबूत हुआ है।
विधानसभा का गणित
हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं, जिनमें से वर्तमान में 3 खाली हैं। बहुमत का आंकड़ा 44 है। भाजपा के पास इस समय 43 विधायक हैं, जिनमें 41 अपने विधायक और 2 समर्थक शामिल हैं। विपक्ष के पास भी 43 विधायक हैं। हालांकि, सदन में अब कुल 87 विधायक हैं, जिसमें भाजपा के 39 विधायकों को ही वोटिंग का अधिकार है।
इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि हरियाणा की राजनीति में अभी और उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। भाजपा अपनी सरकार बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, जबकि विपक्षी दल अपने विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती का सामना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस राजनीतिक संग्राम का परिणाम क्या होता है और किस दल के पास सत्ता की चाबी रहती है।