दिल्ली की जल समस्या अब एक गंभीर मुद्दा बन गई है, जिसने राजधानी के लाखों निवासियों के दैनिक जीवन को प्रभावित किया है। इस समस्या के समाधान के लिए, दिल्ली सरकार के चार प्रमुख मंत्रियों ने अब सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी है। यह कदम दिल्ली और हरियाणा के बीच चल रहे जल विवाद को एक नया मोड़ देता है।
मंत्रियों की चिट्ठी: एक आखिरी उम्मीद
दिल्ली के मंत्री गोपाल राय, सौरभ भारद्वाज, कैलाश गहलोत और इमरान हुसैन ने संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने दिल्ली के जल संकट की गंभीरता को रेखांकित किया है और हरियाणा से दिल्ली को मिलने वाले पानी में आई 100 एमजीडी की कमी को दूर करने में मदद मांगी है। मंत्रियों ने बताया कि यह कमी लगभग 28 लाख दिल्लीवासियों को प्रभावित कर रही है।
जल संकट की विकट स्थिति
मंत्रियों ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि दिल्ली में इस वर्ष असाधारण गर्मी के कारण पानी की मांग बहुत अधिक बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में ऐसी तीव्र गर्मी नहीं देखी गई थी। दिल्ली की कुल जल आपूर्ति 1005 एमजीडी है, जिसमें से 613 एमजीडी हरियाणा से आता है। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से हरियाणा से आने वाले पानी में लगातार कमी आ रही है, जिससे शहर में जल संकट और गहरा गया है।
समाधान के प्रयास और बाधाएं
दिल्ली सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए कई प्रयास किए हैं। मंत्रियों ने बताया कि उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, केंद्रीय जल मंत्री से मिलने की कोशिश की, और यहां तक कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी अतिरिक्त पानी की मांग की। हालांकि, हिमाचल प्रदेश अतिरिक्त पानी देने को तैयार था, लेकिन हरियाणा ने यमुना नदी के माध्यम से इस पानी को दिल्ली तक पहुंचाने से इनकार कर दिया।
दिल्ली सरकार ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया, जहां कोर्ट ने दिल्ली में जल संकट की गंभीरता को स्वीकार किया। फिर भी, हरियाणा सरकार ने दिल्ली को अतिरिक्त पानी देने से इनकार कर दिया।
आगे का रास्ता
अब जबकि दिल्ली सरकार ने प्रधानमंत्री से मदद मांगी है, यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर कैसे प्रतिक्रिया देती है। यह स्थिति न केवल दो राज्यों के बीच जल बंटवारे का मुद्दा है, बल्कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लाखों नागरिकों के दैनिक जीवन से जुड़ा एक गंभीर मानवीय मुद्दा भी है।
दिल्ली के मंत्रियों की यह अपील प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक चुनौती भी है। उनके हस्तक्षेप से न केवल तत्काल जल संकट का समाधान हो सकता है, बल्कि यह दो पड़ोसी राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे जल विवाद को सुलझाने का एक अवसर भी हो सकता है। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस गंभीर स्थिति पर कैसे प्रतिक्रिया देता है और क्या वे इस जटिल समस्या का कोई स्थायी समाधान निकाल पाते हैं।
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