पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा से लोकसभा सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार प्राइवेट बसों के परमिट जारी कर हरियाणा रोडवेज को निजी हाथों में सौंपना चाहती है। निजी हाथों में देते ही सरकारी महकमे परिवहन विभाग को राज्य सरकार बंद कर देगी। सार्वजनिक परिवहन सेवा की हरियाणा रोडवेज को भाजपा सरकार जिंदा रखना चाहती है तो फिर उसे स्टेट कैरिज बसों के परमिट जारी करने की बजाए सरकारी बसों की खरीद कर रोडवेज के बेड़े को बढ़ाना चाहिए।
एक दिन रोडवेज का पूरी तरह निजीकरण करने का फरमान सुना दिया जाएगा
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि राज्य सरकार के आदेश पर परिवहन विभाग ने स्टेट कैरिज बसों के परमिट को लेकर नई अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे व मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड पर पड़ने वाले 362 रूटों के लिए परमिट जारी किए जाएंगे। यही नहीं, किसी भी रूट पर स्टेट कैरिज बसों के परमिट 50 प्रतिशत तक करने का ऐलान किया है।
यानी, आधे रूटों पर निजी क्षेत्र की बसें संचालित होंगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह रोडवेज का निजीकरण दिशा में शुरुआती कदम है। धीरे-धीरे परमिट वाली बसों की संख्या को बढ़ाकर 50 प्रतिशत से अधिक कर दिया जाएगा और फिर एक दिन रोडवेज को बंद करने या पूरी तरह निजीकरण करने का फरमान सुना दिया जाएगा। रोडवेज के निजीकरण का शुरू से कर्मचारी संगठन विरोध कर रहे हैं, लेकिन उनकी किसी तरह की सुनवाई प्रदेश सरकार नहीं कर रही।
पीएसी द्वारा सवाल खड़े किए के बावजूद सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई
कुमारी सैलजा ने कहा कि पीएसी (Public Accounts Committee, लोक लेखा समिति) की रिपोर्ट में खुलासा हो चुका है कि सरकारी लापरवाही व दिलचस्पी न लेने के कारण हरियाणा रोडवेज घाटे में है। नई बसें न होने व लचर प्रबंधन के कारण ही रोडवेज की बसें अपने लक्ष्य से कम दौड़ रही हैं। साल 2015-16 में प्रति किलोमीटर घाटा 10.61 रुपये था, जो 05 साल में बढ़कर 23.62 रुपये हो चुका है। जबकि, डीजल खर्च भी अनुमान के मुकाबले 39.86 लाख लीटर अधिक रहा।
निजी बसों को परमिट देने की बजाय खुद की बसें खरीदनी चाहिए
इसी तरह ब्रेकडाउन भी बार-बार होता रहा, जिससे बसें लक्ष्य के मुकाबले 07 करोड़ किलोमीटर कम दौड़ सकी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा सरकार का ध्यान रोडवेज के बेडे में नई बसें शामिल करने की ओर न होकर निजी परमिट जारी करने में है। इसलिए ही पुरानी हो चुकी बसों को चलाने से ब्रेकडाउन के मामले बढ़ रहे हैं, जबकि मेंटेनेंस का खर्च भी बढ़ रहा है। इन्हीं सब पॉइंट पर पीएसी द्वारा सवाल खड़े किए के बावजूद गंभीरता नहीं दिखाई गई। प्रदेश सरकार को निजी बसों को परमिट देने की बजाय खुद की बसें खरीदनी चाहिए। इससे प्रदेश के युवाओं को ड्राइवर, कंडक्टर के रूप में स्थाई रोजगार भी मिलेगा।
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