प्रदेश की सियासत में रोज नए कयास सामने आ रहे है, अब वो कयास और अंदाज़े वास्तविकता के धरातल पर कितने सही साबित होंगे ये तो वक्त ही बताएगा, चूंकि ये राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां साम -दाम -दंड -भेद के इस्तेमाल से कभी भी कुछ भी बदलता रहता है। ऐसे में कई बार कयास और अंदाज़े भी धरे के धरे रह जाते हैं, यूं कहें की फेल हो जाते हैं। फ़िलहाल तोशाम सीट पर सबकी नज़रे हैं और सबके अपने-अपने कयास भी, हो भी क्यों न ? क्योंकि तोशाम में पहली बार यह कयास लगाए जा रहे हैं बंसीलाल परिवार आमने सामने होगा।
यहां पर कांग्रेस का झंड़ा किरण चौधरी ने बुलंद रखा था
उल्लेखनीय है कि तोशाम विधानसभा सीट को स्व. बंसीलाल व उनके परिवार का मजबूत किला माना जाता है। 1957 से लेकर अब तक, कांग्रेस ने इस सीट पर 11 बार जीत हासिल की है और अधिकतर समय बंसीलाल परिवार से ही उम्मीदवार रहे हैं। पहले चौ. बंसीलाल उसके बाद उनके बेटे चौ. सुरेंद्र सिंह व उनके बाद किरण चौधरी।
जब बंसीलाल ने कांग्रेस छोड़ हविपा बनाई तो यह सीट हविपा के खाते में भी गई, लेकिन 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ने हविपा के सुरेंद्र सिंह को मात दे दी थी। वर्ष 2014 व 2019 में जब पूरे प्रदेश में मोदी लहर के कारण भाजपा हावी थी तो भी यहां पर कांग्रेस का झंड़ा किरण चौधरी ने बुलंद रखा था।
हल्के में पहली बार सब कुछ बदला-बदला सा
लेकिन इस हल्के में पहली बार सब कुछ बदला-बदला है। बंसीलाल का पुश्तैनी वोटर असमंजस में है कि किधर जाएं। लोग इस बार अंदाजा लगा रहा हैं कि इस बार आखिर हवा किधर बहेगी। तोशाम में पहली बार यह कयास लगाए जा रहे हैं कि बंसीलाल परिवार आमने सामने होगा। जिसमें श्रुति चौधरी भाजपा से व अनिरुद्ध कांग्रेस से।
हालांकि यह तो टिकटों के बंटवारे के बाद ही पता चलेगा। मगर इस समय इस हल्के में जो घमासान मचा है वह जबरदस्त है। दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की जीत का जो सबसे बड़ा फैक्टर रहेगा व होगा सांसद धर्मबीर सिंह। उनके समर्थकों की तोशाम में लंबी चौड़ी फौज है जो हार जीत तय करने में निर्णायक रहेगा।
किरण के कांग्रेस छोड़ने के बाद 18 प्रत्याशी सामने आए
किरण चौधरी के कांग्रेस छोड़ने के बाद हल्के के इतिहास में पहली बार है जब कांग्रेस के 18 प्रत्याशी सामने आएं हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम अनिरुद्ध चौधरी का है। बंसीलाल के पौत्र अनिरुद्ध ने हालांकि तीन साल पहले ही ऐलान कर दिया था कि वे इस बार तोशाम से ही चुनाव लड़ेंगे। किरण के भाजपा में जाने के बाद उनकी राह आसान तो हुई है मगर अभी भी जिस तरह से लंबी फेहरिस्त टिकटों को लेकर बनी है वह उनके लिए एक तरह से चुनौती भी है।
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