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"गुटबाजी, ढीली रणनीति और बयानों'' ने दिलाई शिकस्त

"गुटबाजी, ढीली रणनीति और बयानों'' ने दिलाई शिकस्त

कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि इस बार सत्ता में बड़ा उलटफेर होगा, परिणाम उनकी उम्मीदों के बिलकुल विपरीत आए

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा बड़ा झटका लगा है, चूंकि उनकी उम्मीद और एग्जिट पोल ये इशारा कर रहे थे 10 साल बाद कांग्रेस की वापसी की संभावनाएं हैं, लेकिन चुनावी नतीजों ने ना केवल एग्जिट पोल की सभी भविष्यवाणियों को धता बता दिया, बल्कि कांग्रेस को सत्ता की दौड़ से बाहर भी कर दिया।

कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि इस बार सत्ता में बड़ा उलटफेर होगा और कांग्रेस फिर से सत्ता में आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, परिणाम उनकी उम्मीदों के बिलकुल विपरीत आए। कांग्रेस की हार का विश्लेषण करें तो उनकी आंतरिक कलह, ढीला प्रचार और विवादास्पद बयानबाजी ने पार्टी की संभावनाओं पर पानी फेर दिया।

कांग्रेस के नेता दिल्ली में बैठकर टिकट बंटवारे की खींचतान में उलझे रहे

भाजपा ने जहां चुनाव की घोषणा के पहले ही तैयारियां शुरू कर दी थी और भाजपा का माहौल बनाने के लिए कार्यकर्ता ज़मीनी तौर पर पार्टी द्वारा मिली जिम्मेदारियों को निभाने में जुट गए थे। उसके बाद टिकट वितरण के तुरंद बाद प्रधानमंत्री मोदी सहित केंद्रीय नेताओं की नॉनस्टॉप रैलियां की। जबकि कांग्रेस के प्रचार अभियान की शुरुआत काफी देर से हुई।

या यूं कहें कि मतदान से मात्र 10 दिन पहले ही प्रचार ने तेजी पकड़ी। जहां भाजपा ने चुनाव की घोषणा से पहले ही पूरे हरियाणा में मोर्चा संभाल लिया था, कांग्रेस के नेता दिल्ली में बैठकर टिकट बंटवारे की खींचतान में उलझे रहे। प्रचार में देरी और ढीले नेतृत्व की वजह से कांग्रेस का चुनावी अभियान आधारहीन साबित हुआ, जबकि भाजपा पहले से ही चुनावी मोड में थी। 

सैलजा और रणदीप ने चुनावी प्रचार में सीमित भूमिका निभाई

पार्टी हाईकमान द्वारा भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्री हैंड देने की रणनीति ने कांग्रेस के भीतर और ज्यादा असंतोष बढ़ाया। कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे वरिष्ठ नेताओं ने इस फैसले से असहमति जताई और चुनावी प्रचार में सीमित भूमिका निभाई। इस गुटबाजी का असर कांग्रेस की एकजुटता और चुनावी प्रदर्शन पर साफ तौर पर दिखाई दिया।

गुटबाजी ने दी कांग्रेस को मात कांग्रेस के भीतर गुटबाजी ने पार्टी की हार में बड़ी भूमिका निभाई। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी चुनाव के दौरान भी जारी रही। हुड्डा समर्थक की एक विवादास्पद टिप्पणी से सैलजा ने खुद को चुनावी प्रचार से दूर कर लिया। राहुल गांधी ने दोनों नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश की, लेकिन गुटबाजी की खाई चुनावी नतीजों तक भरी नहीं जा सकी। 

विवादित बयानों ने बिगाड़ा माहौल

चुनाव के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवारों की बयानबाजी भी पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हुई। असंध से कांग्रेस उम्मीदवार शमशेर गोगी का बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस जीतती है तो पहले अपना घर भरेंगे, भाजपा के लिए हथियार बन गया। इस बयान को भाजपा ने भ्रष्टाचार से जोड़कर कांग्रेस पर तीखा हमला किया, और कांग्रेस का प्रयास इसे संभालने में नाकाफी रहा। 

मुद्दे भुनाने में भी नाकाम रही कांग्रेस

भाजपा ने ‘पर्ची खर्ची’ जैसे मुद्दों पर कांग्रेस को घेरते हुए खुद को मैरिट आधारित व्यवस्था का समर्थक बताया, जबकि कांग्रेस इसका कोई ठोस जवाब नहीं दे पाई। किसानों, पहलवानों और युवाओं के मुद्दों पर भी कांग्रेस कोई प्रभावी रणनीति नहीं बना सकी। पार्टी के नेताओं के कोटे से नौकरी मिलने के बयानों ने जनता के बीच गलत संदेश दिया, जिसे भाजपा ने खूब भुनाया।

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