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बीरेंद्र सिंह के परिवार को पांच साल का दर्द दे गई "32 वोट''

बीरेंद्र सिंह के परिवार को पांच साल का दर्द दे गई "32 वोट''

पहली बार दीपेंद्र व भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी लगाया था जोर, हर सीट पर निर्दलीय रहे हावी, कांग्रेस का ही किया सबसे ज्यादा नुकसान

प्रतीकात्मक तस्वीर

चुनावों में हार-जीत तो लगी रहती है, लेकिन जब जीत के बहुत करीब आकर हार जाएं तो वो टीस रह रहकर उठती रहती है। ऐसा ही कुछ हुआ है उचाना विधानसभा से पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह के साथ हुए। सबसे कम 32 वोटों से मिली हार की टीस अब आगामी पांच साल तक रहने वाली है। उल्लेखनीय है कि यहां से खुद बीरेंद्र सिंह पांच बार विधायक चुने गए हैं। इसके अलावा उनकी पत्नी भी यहां से विधायक रह चुकी हैं। इस बार बेटे बृजेंद्र सिंह का नंबर था, लेकिन वह मात्र 32 वोटों से चुनाव हार गए। 

हुड्डा ने अपना भतीजा मानकर मांगे थे बृजेंद्र के लिए वोट

 यह 32 वोटों का दर्द अगले विधानसभा चुनाव तक कम नहीं होगा। वैसे पहली बार बृजेंद्र सिंह के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा ने भी वोट मांगे थे, लेकिन इसके बावजूद बृजेंद्र सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा। यह पहली बार था जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीरेंद्र सिंह को अपना भाई बोलते हुए कहा था कि बृजेंद्र हमारा प्रिय भतीजा है, इसलिए वोट इसको ही देना। उचाना कलां से निर्दलीय चुनाव लड़े वीरेंद्र घोघड़िया 31456 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे।

अपने ही गढ़ में मात्र 32 वोटों से हार भुलाए नहीं भूलेगी

इसके अलावा निर्दलीय विकास 13456 तथा दिलबाग संडील 7373 वोट लेकर बृजेंद्र सिंह का बड़ा नुकसान कर गए। इन चारों में जाट वोट बंट गया और गैर जाट वोटों से देवेंद्र अत्री जीत गए। अब यह हार ऐसी है जो अगले पांच साल तक याद रहेगी। तब तक यह हार भुलाए नहीं भूलेगी। यह दर्द बीरेंद्र सिंह परिवार को पांच साल तक चुभता रहेगा।

वैसे बृजेंद्र सिंह की हार का सबसे बड़ा कारण निर्दलीय प्रत्याशी बने। यदि सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता तो बृजेंद्र सिंह बड़े मतों से जीत दर्ज करते। जिले में वैसे भी भाजपा की जीत के सबसे बड़े कारण निर्दलीय प्रत्याशी ही बने हैं। उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र बीरेंद्र सिंह का गढ़ है।

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