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The Haryana Story | संत शिरोमणि गुरु रविदास जयंती पर जानें 'उनका इतिहास'

संत शिरोमणि गुरु रविदास जयंती पर जानें 'उनका इतिहास'

वह एक संत ही नहीं अपितु महाज्ञानी और योगी भी थे। एक भारतीय कवि, संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु

प्रतीकात्मक तस्वीर

संत गुरु रविदास जी हिन्दू समाज के महान स्तम्भ थे। वह एक संत ही नहीं अपितु महाज्ञानी और योगी भी थे। एक भारतीय कवि, संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वाराणसी जिले में हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार, संत रविदास का जन्म 1377 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के किसी गांव में हुआ था। हालांकि, कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म वर्ष 1377 नहीं बल्कि 1399 था। चँवर पुराण के अनुसार चँवर वंश, सूर्यवंशी क्षत्रिय राजवंश था जिसकी स्थापना महाराज चँवर सेन ने की थी, जिसमें सूर्य सेन एवं चामुण्डा राय बड़े शक्तिशाली राजा हुए थे।

संत रविदास को “संत शिरोमणि” की उपाधि दी गई

संत शिरोमणि रविदास संत कैसे बने, इस पर कई कथाएं प्रचलित हैं। इतिहासकारों के अनुसार, एक बार जब संत रविदास को उनके पिता ने घर से निकाल दिया, तो वे एक कुटिया बनाकर रहने लगे और साधु-संतों की सेवा करने लगे। वे जूते-चप्पल बनाने का कार्य करते थे और भक्ति आंदोलन का हिस्सा बन गए। उनके उच्च विचारों से अन्य संत भी प्रभावित हुए, और धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई।

हर वर्ष माघ पूर्णिमा को हिंदू पंचांग के अनुसार संत रविदास जयंती मनाई जाती है। बता दें कि संत रविदास को “संत शिरोमणि” की उपाधि भी दी गई थी। इसके बाद, संत रविदास शिरोमणि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इस वर्ष संत गुरु रविदास की 648वीं जन्म वर्षगांठ मनाई जा रही है। ”मन चंगा तो कठौती में गंगा” ये कहावत संत रविदास की काव्य और दोहो की रचनाओं में से ही एक प्रसिद्ध कहावत है। 

संत रविदास जी को बुलाया और उन्हें मुसलमान बनने को कहा

वहीं इतिहास यह भी बताता है कि धर्मान्ध मुस्लिम शासक सिकन्दर शाह लोधी द्वारा उन्हें ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार को चमार बना दिया गया। राज आज्ञा के कारण कोई भी उनको सहायता देने में अक्षम हो गया। यह घटना ऐसी घटी कि संत रविदास जी मुसलमानों को हिन्दू बनाने का काम कर रहे थे। परम पूज्य संत रामानंद जी, रविदास जी के गुरु थे।

जब संत रविदास जी ने सदना कसाई को हिन्दू समाज में प्रवेश दिलाकर रामदास बनाया तब सिकन्दर शाह लोधी बहुत क्रोधित हुआ और उसने संत रविदास जी को बुलाया और उन्हें मुसलमान बनने को कहा। रविदास जी ने साफ़ मना कर दिया तो उसने उन्हें पाँच जागीर देने का प्रलोभन दिया। सिकन्दर ने रविदास जी को मुसलमान बनाने के लिए अनेक प्रयास किये, लेकिन वो सफल नहीं हो पाया।

हिन्दू धर्म का त्याग कर के मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किया

तब सिकन्दर ने रविदास को जेल में डाल दिया,जेल में भगवान श्री कृष्ण ने इन्हें साक्षात दर्शन दिये। दूसरी ओर सिकन्दर बहुत बेचैन था। उसने रविदास जी को जेल से रिहा तो कर दिया, लेकिन साथ में यह आज्ञा दी कि उनका पूरा कुनबा और उनकी शिष्य मण्डली वाराणसी के आस-पास मरे हुए पशुओं को उठाओ। संत रविदास जी एवं उनके शिष्यों ने मरे हुए पशुओं को उठाना स्वीकार किया, लेकिन अपना हिन्दू धर्म का त्याग कर के मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किया। इसके पश्चात् ही उन्हें चमार की संज्ञा प्राप्त हुई। इस प्रकार इस पुनीत एवं उच्च कुलीन वंश को चमार बनना पड़ा। अपने प्रारंभिक जीवन और बाद के जीवन में महान अन्तर पर स्वयं संत रविदास जी अपने एक भजन में कहते हैं। 

जाके कुटुम्ब सब ढोर ढोवत आज बनारसी आसा पासा,                  

आचार सहित विप्र करहिं दण्डवत तिन, तनै रैदास दासानुदासा

अर्थात् :- जिसके कुटुम्बी आज वाराणसी के आस-पास मरे पशु उठाते हैं ? ये वो लोग हैं जिनके पूर्वजों को ब्राह्मण लोग आदर सहित दण्डवत प्रणाम किया करते थे, उन्हीं महान् लोगों का पुत्र दासों का दास मैं रविदास हूँ।

इन शब्दों में कितनी बेबसी झलकती है। यह तथ्य इतिहास के इस उल्लेख से और सिद्ध हो जाता है कि राजस्थान की रानी गुरु-दीक्षा लेने रविदास जी के आश्रम में गई। वहां का उच्च कुलीन सौंदर्य और शालीनता पूर्ण व्यवहार देख कर गुरु रविदास जी से दीक्षा लेने को तैयार हो गई। इस घटना से भी यह तथ्य उजागर होता है कि रविदास जी का वंश और शिष्य परम्परा उच्च कुलीन थी। भारत भ्रमण के समय चित्तौड़ की रानी मीराबाई ने भी उन्हें अपना गुरु बनाया।

जूते बनाते समय इतने मग्न हो जाते थे जैसे स्वयं भगवान के लिए बना रहे हों

संत रविदास जूते बनाने का काम करते थे। वे जूते बनाते समय इतने मग्न हो जाते थे जैसे स्वयं भगवान के लिए बना रहे हों। वे भगवान की भक्ति में समर्पित होने के साथ अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों का भी बखूबी निर्वहन किया. इन्होंने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी, और इसी प्रकार से वे भक्ति मार्ग पर चलकर संत रविदास कहलाए। उनके द्वारा दी गई शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' उनका यह प्रसंग बहुत लोकप्रिय है। इसका अर्थ है कि यदि मन पवित्र है और जो अपना कार्य करते हुए, ईश्वर की भक्ति में तल्लीन रहते हैं उनके लिए उससे बढ़कर कोई तीर्थ स्नान नहीं है।   

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच.    

नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच.                  

इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं होता बल्कि अपने कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं।              

संत रविदास जी कहते हैं कि कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न लेने दें।एक छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को उठा सकती है लेकिन एक हाथी इतना विशालकाय और शक्तिशाली होने के पश्चात् भी ऐसा नहीं कर सकता।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस,

कर्म मानुष का धर्म है, संत भाखै रविदास. 

अर्थात् :- कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य. इसलिए हमें सदैव कर्म करते रहना चाहिए और कर्म से मिलने वाले फल की आशा नहीं छोड़नी चाहिए. वे सभी को एक समान भाव से रहने की शिक्षा देते थे। 

संत शिरोमणि गुरु रविदास जी के श्री-चरणों में हमारा शत्-शत् नमन

उनके उपदेश सार्वदेशिक, सर्वकालिक, और सार्वभौमिक हैं। उनके अनुयायी देश-विदेश में फैले हुए हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में उन्हें रोहिदास कहा जाता है, बंगाल में रुई दास कहते हैं। पांडुलिपियों में रामदास, रैदास, रेमदास, और रौदास के नाम से भी वे लोकप्रिय हैं। रविदास जयंती पर पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व होता है। अकथनीय कष्टों को झेलते हुए भी हिन्दू धर्म की पताका उठाये रखने और सनातन धर्म को हर प्रकार से सशक्त प्रदान करने वाले ऐसे संत शिरोमणि गुरु रविदास जी के श्री-चरणों में हमारा शत्-शत् नमन......

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