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मीठी तो कर दे री अम्मा कोथली, सामण री आया गूंजता...कहीं भूल तो नहीं रहे परम्पराओं को ?

मीठी तो कर दे री अम्मा कोथली, सामण री आया गूंजता...कहीं भूल तो नहीं रहे परम्पराओं को ?

कुर्ता-दामण..16 श्रृंगार, हाथों में मेहंदी व झूले का आनंद, हरियाणा में तीज का त्यौहार मनाने का एक अपना की अलग अंदाज़, हालांकि परंपरा पर आधुनिकता हावी होती ज़रूर दिख रही है, जिसके चलते, अब न पेड़ दिखते-ना झूले और ना ही पारंपरिक वेशभूषा...हां, कोथली-सिंधारे, व्रत और श्रृंगार की परंपरा आज भी निभाई जा रही है

प्रतीकात्मक तस्वीर

सनातन धर्म में हरियाली तीज का विशेष महत्व बताया गया है। बता दें कि हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की विधि- विधान तरीके से पूजा अर्चना करती है। वहीं अविवाहित कन्याएं भी सुयोग्य वर पाने के लिए तीज का व्रत रखती है। आज के इस आर्टिकल में आपको बताएंगे कि अबकी बार तीज का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा।

किस दिन है हरियाली तीज?

पौराणिक कथाओं के अनुसार हरियाली तीज का व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि कठोर तपस्या के बाद इसी दिन मां पार्वती का विवाह भगवान शंकर से हुआ था। मां पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मां पार्वती से विवाह किया। इसी वजह से हरियाली तीज का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। सुहागन महिलाओं की तरफ से भी अपने खुशहाल जीवन के लिए इस दिन व्रत रखा जाता है।

सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 6 अगस्त को शाम 7:42 मिनट पर शुरू हो रही है, जो 7 अगस्त 2024 को रात 10:00 बजे समाप्त होगी. ऐसे में हरियाली तीज का पावन पर्व 7 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त सुबह 5:40 मिनट से शुरू होकर 9:06 मिनट तक रहने वाला है। 

कुर्ता-दामण..16 श्रृंगार, हाथों में मेहंदी व झूले का आनंद

वैसे तो हरियाली तीज का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, पर मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा-पंजाब व दिल्ली में मनाया जाता है और बात अगर हरियाणा की हो तो यहां हरियाली तीज का खास महत्व है। तीज का पर्व आते ही पूरा हरियाणा हरियाली तीज में सराबोर हो जाता था। हरियाणा की महिलाएं भी पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए निर्जला व्रत करती हैं।16 श्रृंगार करती हैं।

महिलाएं हरे रंग के कपड़े और चूड़ियां पहनती हैं साथ ही मेहंदी लगाती हैं और सहेलियों के साथ झूला झूलती हैं, हंसी-ठिठोली करती हैं। हर वर्ष हरियाणा के विभिन्न जिलों में हरियाली तीज का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान महिलाएं तीज से जुड़े लोकगीत भी गाती हैं। हालांकि अब समय के साथ थोड़ा बदलव आया है। 

तीज की कोथली देने की है परंपरा

हरियाणा में खास तरीके से तीज का त्यौहार मनाया जाता है। वहां पर तीज की कोथली देने की परंपरा निभाई जाती है। इस दौरान किसी भी विवाहित स्त्री के मायके की तरफ से सावन के महीने में उसकी कोथली भेजी जाती है। इस कोथली में महिला के साथ साथ उसके ससुराल के लोगों के लिए कपड़े तथा फल तथा कुछ विशेष तरह के मिठाई भेजी जाती है। कोथली की मिष्ठान्न में विशेष तौर पर घेवर, फिरनी, आटे के बिस्कुट, बताशे, मठरी (मट्ठी) और मीठा सामान भेजा जाता है। वहीं शादी की पहली तीज नई -नवेली दुल्हन अपने मायके में मनाती है और ससुराल से उसका सिंधारा (मिठाई, कपड़े और श्रृंगार) आता है।

इस दिन क्या खाती हैं महिलाएं?

महिलाएं रात में चांद देखने के बाद ही तीज का व्रत खोलती हैं। घेवर , नारियल के लड्डू, साबूदाना खीर , हलवा , मठरी का का सेवन करती हैं। वहीं, पति और रिश्तेदारों से उपहार भी प्राप्त करती हैं।

तीज की परंपरा को बचाने का प्रयास

आज की युवा पीढ़ी हमारे तीज-त्यौहारों तथा संस्कृति को इन्हें न मनाने के कारण ही भूलते जा रहे हैं, इसीलिए अब इन्हें मनाया जाना आवश्यक होता जा रहा है। इसलिए बहुत से सामाजिक संगठन, शिक्षण संस्थान और सरकार द्वारा जिला व राज्य स्तर पर तीज से संबंधित विभिन्न प्रतियोगिताएं एवं आयोजन किए जाते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने परंपरागत रीति -रिवाज़ों से जुड़े रहे। 

ईब के तीज मनावै ??

पहले महिलाएं झूला झूलते हुए पारम्परिक गीत भी गया करती शायद अब किसी को इन लोकगीतों का पता भी नहीं है और अगर पता है तो आजकल डीजे पर ये गीत बजवाते हैं, लेकिन पहले महिला खुद गाती थीं, जिसका मज़ा ही कुछ और था, अपने टाइम को याद करते हुए कुछ 70-80 + बुजुर्ग महिलाओं ने कहा तीज का चौ -चम्बा तो म्हारे टेम में होया करदा ..ईब के तीज मनावै....ईब तो बस मेहंदी लगै लें... नया सूट पैर लें.. कोथली बी वा नी होंदी जो म्हारे जमाने में होया करदी.... ..कई कनस्तर भर-भर के तो पतासे, घेवर, फिरनी, देसी घी के बिस्कुट, और पता नी के के होया करदा। इब तो किसे नै वे गीत भी कोनी आंदे, जो झूला झूलती होणा गया करदे, लंबी -लंबी, ऊंची -ऊंची पिंग लिया करदे.. ईब तो सारा टीम बदल गया, तीजा के प्रोग्राम मैं फोनै मैं गीत बजावै। 

  • तीज पर्व पर गाए जाने वाले कुछ लोक गीतों की बानगी

मीठी तो कर दे री अम्मा कोथली, सामण री आया गूंजता। जाऊंगा री मेरी बेब्बे के देस, सामण री आया गूंजता। 

झुला झूल रही सब सखियां, आई हरयाली तीज आज, राधा संग में झूलें कान्हा झूमें अब तो सारा बाग़, झूला झूल रही सब सखियां, आई हरियाली तीज आज, नैन भर के रस का प्याला देखे श्यामा को नदं लाला, घन बरसे उमड़ उमड़ के देखो नृत्य करे बृजबाला, छम छम करती ये पायलियां खोले मन के सारे राज, झुला झूल रही सब सखियां, आई हरियाली तीज आज

अम्मा मेरी रंग भरा जी, ए जी कोई आई हैं हरियाली तीज। घर-घर झूला झूलें कामिनी जी, बन बन मोर पपीहा बोलता जी। एजी कोई गावत गीत मल्हार,सावन आया... कोयल कूकत अम्बुआ की डार पें जी, बादल गरजे, चमके बिजली जी। एजी कोई उठी है घटा घनघोर, थर-थर हिवड़ा अम्मा मेरी कांपता जी।

नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा, एक झूला डाला मैंने बाबल के राज में, बाबुल के राज में... संग की सहेली हे सावन का मेरा झूलणा, नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा. ए झूला डाला मैंने भैया के राज में, भैया के राज में... गोद भतीजा हे सावन का मेरा झूलणा, नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा... 

कच्चे नीम्ब की निम्बोली सामण कद कद आवै रे जीओ रे मेरी मां का जाया गाडे भर भर ल्यावै रे बाबा दूर मत ब्याहियो दादी नहीं बुलाने की बाब्बू दूर मत ब्याहियो अम्मा नहीं बुलाने की मौसा दूर मत ब्याहियो मौसी नहीं बुलाने की फूफा दूर मत ब्याहियो बूआ नहीं बुलाने की भैया दूर मत ब्याहियो भाभी नहीं बुलाने की काच्चे नीम्ब की निम्बोली सामणया कद आवै रे जीओ रे मेरी मां का जाया गाडे भर भय ल्यावै रे

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