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अमन सहरावत- पेरिस ओलंपिक में भारत के सबसे कम उम्र के व्यक्तिगत पदक विजेता बने, 10 घंटे में 4.6 किलो वजन घटाकर जीता कांस्य पदक

अमन सहरावत- पेरिस ओलंपिक में भारत के सबसे कम उम्र के व्यक्तिगत पदक विजेता बने, 10 घंटे में 4.6 किलो वजन घटाकर जीता कांस्य पदक

अमन सहरावत ने कहा, "मेरे माता-पिता हमेशा चाहते थे कि मैं पहलवान बनूं। वे ओलंपिक के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे।" अमन ने यह पदक अपने दिवंगत माता-पिता और देश को समर्पित किया।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत को गौरवान्वित करने वाले अमन सहरावत की कहानी संघर्ष, दृढ़ संकल्प और सफलता का एक अद्भुत उदाहरण है। 21 वर्षीय इस पहलवान ने न केवल कांस्य पदक जीता, बल्कि भारत के सबसे कम उम्र के व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता बनने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया। 

बचपन का संघर्ष और कुश्ती की शुरुआत

अमन का जन्म 16 जुलाई 2003 को हरियाणा के झज्जर जिले के भिड़होड गांव में हुआ था। महज 8 साल की उम्र में उन्होंने कुश्ती शुरू की थी। लेकिन जीवन ने उन्हें जल्द ही एक बड़ा झटका दिया। 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां को हार्ट अटैक से और छह महीने बाद अपने पिता को भी खो दिया। इस त्रासदी के बावजूद, अमन ने हार नहीं मानी। 

छत्रसाल स्टेडियम: दूसरा घर

अपने पिता की इच्छा पर, अमन 2013 में दिल्ली के प्रसिद्ध छत्रसाल स्टेडियम में शामिल हुए। यह वही स्थान है जहां से सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, बजरंग पुनिया और रवि दहिया जैसे ओलंपिक पदक विजेता निकले हैं। यहाँ अमन को न केवल प्रशिक्षण मिला, बल्कि एक नया परिवार भी मिला। 

ओलंपिक की कठिन तैयारी

पेरिस ओलंपिक की तैयारी अमन के लिए आसान नहीं थी। सेमीफाइनल हारने के बाद उनका वजन 4.6 किलो बढ़ गया था। कांस्य पदक मैच से पहले उन्हें अपना वजन घटाना था। अमन और उनके कोच ने पूरी रात जागकर कड़ी मेहनत की। 10 घंटे में उन्होंने 4.6 किलो वजन कम किया, जो अपने आप में एक अद्भुत उपलब्धि है।

ऐतिहासिक जीत और नया रिकॉर्ड

57 किलोग्राम वर्ग में प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज को 13-5 से हराकर अमन ने कांस्य पदक जीता। इस जीत के साथ वे 21 साल 0 महीने और 24 दिन की उम्र में भारत के सबसे कम उम्र के व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता बन गए। उन्होंने बैडमिंटन स्टार पी.वी. सिंधु का रिकॉर्ड तोड़ा, जिन्होंने 2016 रियो ओलंपिक में 21 साल 1 महीने और 14 दिन की उम्र में रजत पदक जीता था। 

भावुक प्रतिक्रिया और समर्पण

जीत के बाद अमन भावुक हो गए। उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता हमेशा चाहते थे कि मैं पहलवान बनूं। वे ओलंपिक के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे।" अमन ने यह पदक अपने दिवंगत माता-पिता और देश को समर्पित किया। 

अमन सहरावत की कहानी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। यह दर्शाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की जा सकती है। उनकी यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत जीत है, बल्कि भारतीय खेल जगत के लिए एक नया अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।

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