23 वर्षीया तृप्ति सिंघल हरियाणा के पंचकूला में पली-बढ़ी। बचपन में अपने माता-पिता को निरंतर लड़ते हुए देखा। पिता का व्यवसाय था, जिसमें उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। इन सब का असर तृप्ति के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर पड़ा। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने 12वीं कक्षा से ही छोटे बच्चों को अपने घर पर पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी परिस्थिति और अधिक बिगड़नी तब शुरू ही जब 19 वर्ष की आयु में उन्हें डेंगू हो गया। उसके बाद उनका शरीर दिन-ब-दिन कमजोर होता चला गया।
ट्यूबरक्लोसिस से हुई ग्रसित
इसी समय मानसिक और भावनात्मक रूप से भी वो बहुत स्वयं को बहुत अधिक असुरक्षित महसूस करने लगीं। कष्ट यहीं समाप्त नहीं हुए। डेंगू के ठीक होने के बाद उन्हें हर दिन 100 डिग्री बुखार होने लगा और एक दिन ब्लड टेस्ट करवाने के बाद पता चला कि उन्हें ट्यूबरक्लोसिस हुआ है। उन्हें 20 दिन अकेले रहने के निर्देश प्राप्त हुए जहां उन्हें श्वास की तकलीफ ने आ घेरा। इसने उनकी पीड़ा को और अधिक बढ़ा दिया। उनकी स्थिति और भी अधिक खराब तब होने लगी जब एक दिन अचानक उनके हाथ कांपने लगे और बहुत चाहने पर भी ये कपकपाहट बंद नहीं हो रही थी। वो बस रोए जा रही थी, न हाथों में कंपन बंद हो रहे थे न उनके आंसू।
पैनिक अटैक भी बहुत अधिक तीव्रता से आने लगे
इंटरनेट पर उनकी इस अवस्था के बारे में खोजने पर पता चला कि उन्हें पैनिक अटैक आया है। इसे पढ़कर तृप्ति बहुत घबरा गई और उन्होंने अपने माता-पिता इस स्थिति से अवगत करवाया। इन सब रोगों का परिणाम से उनका वजन बहुत कम हो गया था और पैनिक अटैक भी बहुत अधिक तीव्रता से आने लगे। उन्हें हर क्षण यही भय लगा रहता था कि अगला अटैक न जाने कब आ जाए। यहाँ तक आते-आते तृप्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से पूरी तरह से टूट चुकी थी। पढ़ाई से ध्यान हट चुका था, मन में अजीब से विचार आने लगते थे। ऐसे समय में उन्हें अपने परिवारजनों का और मित्रों का भरपूर समर्थन प्राप्त था।
निराशा और असहाय स्थिति में एक समाधान की तलाश
इसी निराशा और असहाय स्थिति में वो एक समाधान की तलाश करने लगी, जो उन्हें इस अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जा सके। उनके नित-प्रतिदिन गिरते स्वास्थ्य और उनकी ऐसी दयनीय स्थिति को देखते हुए उनके चाचा ने तृप्ति को आर्ट ऑफ लिविंग के बारे में बताया जिसका शिविर उन्होंने पिछले सप्ताह ही स्वयं किया था।
तृप्ति ने पंचकूला स्थित आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र में जाकर शिविर में भाग लिया। सुदर्शन क्रिया करने के बाद उनकी आँख से आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। क्रिया के अनुभव से उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों एक बहुत बड़ा बोझ उनके शरीर से उतर गया। वो अपने चाचा-चाची के बहुत धन्यवाद देती हैं जिन्होंने यह शिविर करवा उनका जीवन बदल दिया।
आज मेडिकल उपकरण बनाने वाली एक प्रतिष्ठित फर्म में कर रही हैं नौकरी
हैप्पीनेस कोर्स करने के बाद तृप्ति ने महीने भर में आर्ट ऑफ लिविंग का सहज समाधि ध्यान योग और मौन शिविर भी कर लिया। वो प्रतिदिन सुदर्शन क्रिया का अभ्यास भी करती थीं जिससे उनके व्यक्तित्व में काफी बदलाव आ गया था और वह स्वयं को भावनात्मक रूप से शक्तिशाली अनुभव करने लगीं।
उनका खोया हुआ आत्मविश्वास वापिस आ गया, उनकी रचनात्मकता के साथ-साथ प्रज्ञा-शक्ति भी बढ़ गई।तृप्ति का कहना है कि आर्ट ऑफ लिविंग के कोर्स करने के बाद से एक बहुत बड़ा परिवर्तन वो अपने भीतर अनुभव करने लगी। वो आज मेडिकल उपकरण बनाने वाली एक प्रतिष्ठित फर्म में नौकरी कर रही हैं।
भाई-बहन अथवा मित्रों से बिना किसी झिझक के इस विषय पर बात करें
साथ ही वह जल्द ही आर्ट ऑफ लिविंग की प्रशिक्षिका बन गुरुदेव द्वारा समाज को प्रदान किए गए इस बहुमूल्य ज्ञान, जीवन कौशल व सुदर्शन क्रिया को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए उत्साहित हैं।साथ ही वो उन सभी लोग जो अपने जीवन में किसी तरह के तनाव का सामना कर रहे हैं या अकेलापन महसूस कर रहे हैं या जीवन में किसी भी तरह की नकारात्मकता से पीड़ित हैं।
उन्हें ये सन्देश देना चाहती है कि आप अपने माता-पिता से या अपने भाई-बहन अथवा मित्रों से बिना किसी झिझक के इस विषय पर बात करें। कोई आपके बारे में क्या सोचेगा इसकी परवाह किए बिना आप लोगों से बात करें। इस बात को जान लें कि आप बिलकुल अकेले नहीं है और आप जिस भी चुनौती का सामना कर रहे हों, आप इससे पार हो सकते हैं।
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