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The Haryana Story | भारतीय हॉकी "आइकॉन'' ने खेल करियर को कहा अलविदा.. बोलीं - "यात्रा भले ही बदल गई, लेकिन मिशन वही''

भारतीय हॉकी "आइकॉन'' ने खेल करियर को कहा अलविदा.. बोलीं - "यात्रा भले ही बदल गई, लेकिन मिशन वही''

हॉकी मेरा जूनून, मेरा जीवन और सबसे बड़ा सम्मान रहा... कुरुक्षेत्र के शाहाबाद से शुरू किया था हॉकी का सफर, पिता चलाते थे बैलगाड़ी, गरीबी में गुजरा बचपन

प्रतीकात्मक तस्वीर

पूर्व भारतीय कप्तान रानी रामपाल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 254 मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और उनकी कप्तानी में टीम ने टोक्यो 2020 ओलंपिक में ऐतिहासिक चौथा स्थान हासिल किया था। भारतीय महिला हॉकी की दिग्गज रानी रामपाल ने गुरुवार को अपने खेल करियर को अलविदा कह दिया है। उनका जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है, जो गरीब परिवार से उठकर महान ऊंचाइयों तक पहुंची। रानी रामपाल, जिनका जन्म 1994 में कुरुक्षेत्र के शाहबाद में हुआ, ने अपने संघर्ष और मेहनत से हर किसी को प्रेरित किया है। यही खिलाड़ी ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी है।

हॉकी मेरा जूनून, मेरा जीवन और सबसे बड़ा सम्मान रहा...

रानी रामपाल ने सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए खेल करियर से सन्यास लेने का ऐलान किया। रानी रामपाल ने कहा "15 साल तक भारतीय जर्सी को गर्व के साथ पहनने के बाद, अब मेरे लिए एक खिलाड़ी के रूप में मैदान से बाहर निकलने और एक नया अध्याय शुरू करने का समय आ गया है। हॉकी मेरा जूनून, मेरा जीवन और सबसे बड़ा सम्मान रहा है, छोटी शुरुआत से लेकर सबसे बड़े मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करने तक, यह यात्रा अविश्वसनीय रही है। मैं अपने साथियों, प्रशिक्षकों और हर किसी की हमेशा आभारी रहूंगी अब और नहीं खेल रही मगर खेल के प्रति मेरा प्यार जारी रहेगा। हॉकी इंडिया, एमवाईएस, साई, हरियाणा सरकार, मेरे दीर्घकालिक प्रायोजकों और आईओएस स्पोर्ट्स को मुझ पर विश्वास करने के लिए धन्यवाद। यात्रा भले ही बदल गई हो, लेकिन मिशन वही है : पूरे दिल से भारतीय हॉकी की सेवा करना।"

कैसे की हॉकी की रानी बनने की शुरुआत

रानी के पिता रामपाल एक घोड़ा तांगा चलाते थे और ईंटें बेचा करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद, रानी ने हॉकी खेलने का सपना नहीं छोड़ा। 2009 में, जब रानी केवल 15 साल की थीं, उनका चयन भारतीय हॉकी टीम में हुआ। उस वर्ष जर्मनी में आयोजित जूनियर विश्व कप में उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में तीन गोल करके, उन्होंने अपने खेल का लोहा मनवाया और यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब भी जीता। रानी ने 2020 में भी मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार हासिल किया और उसी वर्ष देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी रानी को सम्मानित किया गया। रानी रामपाल ने द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच बलदेव सिंह से प्रशिक्षण लिया था।

200 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेले

अपने करियर में रानी रामपाल ने 200 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं और कई बड़े पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। 2020 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री और राजीव गांधी खेल रत्न जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। रानी का समर्पण और संघर्ष आज की पीढ़ी की लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, और लोग अपनी बेटियों को रानी जैसा बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। भारतीय हॉकी खिलाड़ी ने महज 15 साल की उम्र में विश्व कप में अपना डेब्यू करते हुए भारत के लिए सबसे कम उम्र में वर्ल्ड कप खेलने वाली खिलाड़ी बन गईं। उन्होंने 2010 संस्करण में भारत के सात में से पांच गोल किए, और 'यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' का पुरस्कार हासिल किया। 

  • वह उस भारतीय टीम का हिस्सा थीं जिसने 2009 में एशिया कप में रजत पदक जीता था और 2014 एशियाई खेलों में उन्होंने भारत को कांस्य पदक दिलाने में मदद की थी।
  • रियो 2016 में अपने ओलंपिक डेब्यू में भारत के निराशाजनक 12वें स्थान पर रहने के बावजूद, टीम पर रानी का प्रभाव बढ़ता रहा।
  • रानी 2017 में भारत की महिला एशिया कप विजेता टीम का हिस्सा थीं। उन्हें जल्द ही कप्तान बनाया गया और 2018 में, उन्होंने भारत को एशियाई खेलों में रजत पदक, विश्व कप में क्वार्टरफाइनल और राष्ट्रमंडल खेलों में चौथा स्थान दिलाया।
  • टोक्यो 2020 में, रानी ने मिडफील्ड में अहम भूमिका निभाई और अपने खेल से सभी को प्रभावित किया। हालांकि, भारत पदक से चूक गया लेकिन टीम ने प्रभावी चौथा स्थान हासिल किया। उसी वर्ष उन्हें मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • टोक्यो 2020 के बाद से चोट ने उन्हें काफी परेशान किया, जिससे वह 2022 में FIH महिला हॉकी विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेलों से बाहर हो गईं। जबकि उन्होंने 2023 में राष्ट्रीय टीम में वापसी की, लेकिन उन्हें एशियन गेम्स की टीम में शामिल नहीं किया गया।
  • पिछले साल, वह पहली भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी बनीं, जिनके नाम पर स्टेडियम का नाम रखा गया, जब रायबरेली में भारतीय रेलवे के मॉडर्न कोच फैक्ट्री स्टेडियम का नाम बदलकर रानी गर्ल्स हॉकी टर्फ कर दिया गया।
  • रानी को 2023 में हॉकी इंडिया द्वारा भारत की अंडर-17 टीम का कोच नामित किया गया था। इस साल, उन्होंने हॉकी इंडिया लीग में सूरमा हॉकी क्लब के लिए कोच और मेंटर की भूमिका भी निभाई।

 

कभी सोचा भी नहीं था कि वह देश के लिए...

खेल करियर से सन्यास लेने के ऐलान के बाद रानी रामपाल ने कहा कि उन्हें इस बात पर बड़ा गर्व है कि जो लोग शुरुआत में उनके खेलने का विरोध करते थे आज अपनी बेटियों को उनके जैसा बनाने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी खिलाड़ी के लिए जीवन का सबसे कठिन फैसला वह होता है जब वो अपने खेल को अलविदा कहे, लेकिन वे उपलब्धि को देखती है तो बहुत गर्व भी होता है। क्योंकि सात साल की उम्र में पहली बार हॉकी थामने वाली हरियाणा के एक छोटे से शहर शाहाबाद की बेटी ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह देश के लिए 15 साल हॉकी खेलेगी, देश की कप्तान बनेगी।

उन्होंने कहा इतना मौका और मुकाम बहुत कम लड़कियों को मिलता है। वे इतने समय तक दिल से ही खेली। हॉकी ने बहुत कुछ दिया है। बड़ी पहचान भी दी। इतने साल तक खेलने की खुशी है तो दुख भी है कि अब भारत की जर्सी कभी नहीं पहन सकेंगे। उन्होंने कहा कि माता-पिता ने उनके लिए गरीबी के बीच कड़ा संघर्ष किया तो उन्होंने भी उसी समय ठान लिया था कि जीवन में कुछ तो करना ही होगा। मुझे मेरे कोच द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त बलदेव सिंह ने भरोसा दिलाया कि वह हॉकी में बेहतरीन कर सकती है।