प्रदेश में ऐतिहासिक रूप से सबसे समृद्ध नगरों में हांसी शहर का नाम शुमार है। पृथ्वीराज चौहान का यह किला पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इमारतों की फेहरिस्त में है। शहर के बीचोबीच स्थित करीब 30 एकड़ में फैले विशाल किले पर राजपूतों से लेकर मुगल और फिर फिरंगियों ने राज किया। हालांकि किले के निर्माण की असली तारीख को लेकर इतिहासकारों में भी मतभेद है।
ऐसा माना जाता है कि इस ऐतिहासिक किले का निर्माण 1191 में सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने तराइन के पहले युद्ध में फतेह हासिल करने के बाद किया था। राजपूत और मुगल साम्राज्य की अनेक ऐतिहासिक निशानियां आज भी इस शहर में देखी जा सकती हैं। यहां की सबसे प्रमुख धरोहरों में शुमार है पृथ्वीराज चौहान का सदियों पुराना विशाल किला और शहर के बीचोबीच स्थित बुलंद दरवाजा जिसे बड़सी गेट के नाम से भी जाना जाता है। दोनों ही ऐतिहासिक धरोहर विश्व विख्यात हैं।
पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग चंडीगढ़ निदेशालय की टीम ने किया निरीक्षण
अब ये ऐतिहासिक किला म्यूजियम में तब्दील होने जा रहा है, जिसके चलते पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग चंडीगढ़ निदेशालय की टीम ने रविवार को हांसी के करीब 30 एकड़ से ज्यादा में फैले ऐतिहासिक पृथ्वीराज चौहान किले का निरीक्षण किया।
टीम में शामिल सर्वेयर सुपरिटेंडेंट ऑफिसर के.कबुई ने ड्रोन उड़ाकर पूरे किले की जमीन जमीन का जायजा लिया। पूरे किले की हालत को दिखा। इसके साथ ही किले के नजदीक पुरातत्व विभाग की जमीन पर बने अवैध मकानों की ड्रोन से वीडियोग्राफी करवाई। बता दें कि किले के आस-पास काफी अवैध निर्माण है, जिसमें 2012 में पुरातत्व विभाग ने इन्हें पहली बार खाली करने बारे नोटिस भी दिया गया था।
अवैध कब्जाधारियों को नोटिस जारी
इसके बाद हाल ही में नोटिस दिए गए है, जिसको लेकर अवैध कब्जा धारियों को 163 मकान विभाग ने तैयार करके दिए है। इसके बाद भी इन कब्जा धारियों ने इस इंक्रोचमेंट को नहीं हटाया जिसको लेकर आज के.कुबई किले पर पहुंची थी। इसके साथ ही किले के सौंदर्यीकरण को लेकर भी विभाग के अधिकारियों ने निरीक्षण किया। के. कुबई ने कहा कि किले की चारदीवारी बनवाई जाएगी, जिससे कि इसकी मिट्टी झड़ने से बचाया जा सके। कैमरे पर बोलने से के. कुबई ने साफ इंकार कर दिया जबकि ऑनलाइन कैमरा उन्होंने ये सभी जानकारी दी।
इसे हिंदुस्तान की दहलीज भी कहा जाता था
यहां सैनिक छावनी बनाई गई थी। उस दौर में किले के सामरिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे जीतने के लिए ख्वाजा हाशिम उद्दीन, ख्वाजा असमान और रहमान से लेकर कई मुगल शासकों ने हमले किए. एक समय पर इसे हिंदुस्तान की दहलीज भी कहा जाता था। ये कहावत थी कि जो भी हमलावर हांसी की दहलीज को लांघ लेगा वही हिंदुस्तान पर शासन करेगा। इस किले के विशाल गेट को बड़सी गेट के नाम से जाना जाता है। बाजार के बीचोबीच स्थित इस दरवाजे के नीचे से लोग गुजरते हैं।
खुदाई में खुली इतिहास की परतें
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 2004 में ऐतिहासिक किले के इतिहास से वाकिफ होने के लिए खुदाई करवाई। यह खुदाई का कार्य कई महीनों तक चला। इसमें बुद्ध, कुषाण, गुप्त, वेदतर, यौद्धेय, राजपूत, सल्तनत, मुगल और अंग्रेजी काल से संबंधित अनेक अवशेष निकले। इन अवशेषों में ईंट, सिक्के, सिक्के बनाने के सांचे, धार्मिक स्थलों के अवशेष, मूर्तियां, पुराने मिट्टी के बर्तन, मकानों के अवशेष समेत काफी निशानियां मिलीं। 1982 में जैन धर्म से संबंधित मूर्तियां कुक्कू शोरगर नाम के व्यक्ति को किले में खुदाई करते वक्त मिली थी। इन्हें शहर के जैन मंदिर में रखवाया गया। इस खुदाई से ये स्पष्ट हुआ कि हांसी शहर सदियों पुराने इतिहास का गवाह है।
1857 में अंग्रेजों ने किले की दीवारों को उड़ा दिया
इतिहास की धरोहर ‘हांसी’ किताब के अनुसार 1858 के क्रांतिकारी दौर में किले के चारों तरफ बनी चूने की मजबूत दीवारों को बारूद से ध्वस्त कर दिया गया था। इसी दौर में किले के ऊपर मौजूद भवनों को भी काफी नुकसान पहुंचा। किले के मलबे से निकले शिलाखंडों के टुकड़ों को आज भी सड़कों और गलियों में पड़ा देखा जा सकता है।
अगर आप हांसी आना चाहते हो तो जानें कैसे पहुंचे
दिल्ली से करीब 150 किमी. की दूरी पर हांसी शहर स्थित है, बस और ट्रेन के जरिए टूरिस्ट यहां दूर-दराज से पहुंचते हैं। दिल्ली और जयपुर से चलने वाली कई ट्रेनें हांसी स्टेशन पर रुकती हैं. शहर में सैलानियों के रुकने के लिए कई लॉज और आधुनिक सुविधाओं से संपन्न धर्मशालाएं हैं. शहर में स्थित कई होटल और रेस्टोरेंट भी प्रदेश में मशहूर हैं। इसके अलावा शहर में दुनीचंद हलवाई के दूध के पेड़े विदेशों तक मशहूर हैं, जिनका स्वाद चखे बगैर हांसी की यात्रा पूरी नहीं होती।
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