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The Haryana Story | युवाओं के लिए नेतृत्व का पाठ : नैतिक नेतृत्व के दो मुख्य पहलू : खुद को सही रूप में जानना और दूसरों की सेवा करना

युवाओं के लिए नेतृत्व का पाठ : नैतिक नेतृत्व के दो मुख्य पहलू : खुद को सही रूप में जानना और दूसरों की सेवा करना

एक सच्चे नेता को सबसे पहले खुद की जानकारी होना बहुत जरूरी : संत राजिंदर सिंह जी महाराज

संत राजिंदर सिंह जी महाराज

आज के आधुनिक युग में अगर हम देखें तो युवाओं में कुछ कर गुजरने की तमन्ना है, जिससे कि समाज में उनकी एक अलग से पहचान बनें। वह चाहते हैं कि जो कुछ भी वो कह रहे हैं उनकी बात को ध्यान से सुना जाए और इसके साथ-साथ वे यह भी चाहते हैं कि उस बात पर अमल भी किया जाए लेकिन यहाँ वह यह बात अक्सर भूल जाते हैं कि एक जागरूक नेता बनने के लिए केवल उत्साह, प्रेरणा, कुशलता और चीजों को करने की किताबी जानकारी होना ही काफी नहीं है बल्कि हमें यह भी पता होना चाहिए कि अगर कोई कार्य सही तरीके से नहीं हो रहा है तो उसको किस तरीके से ठीक किया जा सकता है और अगर ठीक तरीके से हो रहा है तो उसे और बेहतर किस प्रकार से किया जा सकता है?

एक सच्चे नेता को सबसे पहले खुद की जानकारी होना बहुत जरूरी

इन सबकी जानकारी हमें अवश्य होनी चाहिए। इसके लिए हमें एक कुशल नैतिक नेतृत्व के सभी पहलुओं का बड़ी ही बारीकी से अध्ययन करके उसे अपने जीवन में ढालना होगा। नैतिक नेतृत्व के दो मुख्य पहलू हैं : खुद को सही रूप में जानना और दूसरों की सेवा करना। एक सच्चे नेता को सबसे पहले खुद की जानकारी होना बहुत जरूरी है। यहाँ खुद की जानकारी से तात्पर्य अपने अंदर नैतिक गुणों का विकास करते हुए दूसरों की सेवा करना है। अगर हम ऐसा करते हैं तो जो लोग हमारा अनुसरण करेंगे, उन्हें भी हमारे व्यवहार से मार्गदर्शन प्राप्त होगा क्योंकि जो कुछ भी हम कह रहे हैं, उन्हें वह हमारे आचरण में भी झलकता हुआ दिखाई देगा। 

दिल और दिमाग का सही दिशा में होना बहुत ही जरूरी

यह बात हमें हमेशा अपने दिमाग में रखनी चाहिए कि समाज में जो हम कहते हैं लोग उस पर नहीं बल्कि जो हम करते हैं उस पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इसलिए हमारे अंदर एक सच्चे नेता के रूप में अच्छा व्यवहार करने के साथ-साथ हमारी आदतें, हमारे दिल और दिमाग का सही दिशा में होना बहुत ही जरूरी है। एक सच्चे नेता में अपने अस्तित्व का सही मकसद सामने रखने का साहस होना चाहिए। उनमें ऐसा जीवन व्यतीत करने का साहस होना चाहिए, जो दूसरों के लिए मददगार हो। केवल ऐसा नेतृत्व ही एक संगठित और नैतिक नेतृत्व कहलाता है। असल मायने में यह जीवन का नेतृत्व है। ऐसे नेता अपने अंतर में जाकर खुद का निरीक्षण करते हैं। वे अपने अंतर में पिता परमेश्वर की ताकत से जुड़कर दूसरों में उत्साह और हिम्मत की भावना को फैलाते हैं। 

आंतरिक शक्ति सभी नैतिक गुणों और जीवन का स्त्रोत

ऐसे नेता अंदर से बहुत नम्र और दयालु होते हैं, इस करके वे कभी भी बाहरी दिखावा पसंद नहीं करते। उनकी विचारधारा के अनुसार हमारा जीवन अंदर और बाहर से एक जैसा होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले युवा धीरे-धीरे इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अंतर में कोई उच्च शक्ति है जो हमारा मार्गदर्शन कर रही है। वही आंतरिक शक्ति सभी नैतिक गुणों और जीवन का स्त्रोत है। हम चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारें - परमपिता, परमेश्वर, चैतन्य प्रभु या आत्मा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह शक्ति हमारे अंतर में है और सभी को जीवन का आधार प्रदान कर रही है। एक बार जब हम उस परम शक्ति के संपर्क में आते हैं तो हम एक सच्चे नेता के सभी गुणों के स्त्रोत से जुड़ जाते हैं। ऐसा करके हम बिना किसी मेहनत और सहजता के बड़े बड़े नेताओं के गुण धारण कर सकते हैं। 

असल में सही निर्देशन करने के लिए हमें पहले सेवक बनना होगा

नेतृत्व का दूसरा पहलू है, सेवा। इतिहास में महान नेताओं ने कहा है कि, खुद से पहले दूसरों की सेवा करना ही सफल जीवन की कुंजी है। एक नेता बनने से पहले हमें सेवक होना चाहिए। दूसरों की सेवा करके ही हम उनका निर्देशन करने के अधिकारी बन सकते हैं। हम नाम के लिए तो नेता बन सकते हैं लेकिन असल में सही निर्देशन करने के लिए हमें पहले सेवक बनना होगा। उसके लिए हमें सबसे पहले अपने जीवन में आध्यात्मिकता को प्राथमिकता देनी होगी। जब हम आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हैं और अपने अंदर आध्यात्मिक स्त्रोत से जुड़ते हैं तो हमें अंदर से यह विश्वास हो जाता है कि हम सब एक ही पिता-परमेश्वर की संतान हैं। तब हमारे अंदर खुद-ब-खुद ही सेवा का भाव जागृत होता है। ऐसा करके ही हम एक आदर्श सेवक के साथ-साथ एक ऐसा नेता बन सकते हैं जो दूसरों के लिए प्रेरणादायक हो। 

दृढ़ता और धीरज की आवश्यकता

कुछ भी पाने के लिए हमारे अंदर दृढ़ता और धीरज की आवश्यकता होती है क्योंकि कोई भी लक्ष्य कुछ ही दिनों के प्रयास से पाया नहीं जा सकता। जो लोग आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हैं वे धीरे धीरे ही इस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं और आखिर में नैतिक नेतृत्व खुद-ब खुद ही उनके अंदर आ जाता है क्योंकि प्रभु की ताकत उनसे दूसरों के दिलों तक प्रवाहित होती है। एक सफल नेतृत्व को पाने के लिए हममें से किसी को भी बाहरी दिखावा, अभिनय या ढोंग करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। उसके लिए हमें चाहिए कि हम अपने जीवन को आध्यात्मिक रास्ते की ओर बढ़ाएं, तभी हम न सिर्फ अपने जीवन में बल्कि दूसरों के जीवन में भी खुशियां ला सकेंगे।

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