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भाजपा में भजनलाल परिवार और चौटाला परिवार का टकराव तय

भाजपा में भजनलाल परिवार और चौटाला परिवार का टकराव तय

हिसार लोकसभा सीट पर पुराने विवाद उभरे, रणजीत चौटाला बनाम कुलदीप बिश्नोई की लड़ाई हुई साफ

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर पारिवारिक कलह सुलग रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) से हिसार लोकसभा सीट पर उम्मीदवार बने रणजीत सिंह चौटाला और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई के बीच पुरानी खटास नजर आ रही है। दोनों ही धड़ों ने एक-दूसरे पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। 

दोनों परिवारों में पहले भी रहा है टकराव

दरअसल, हिसार लोकसभा सीट पर चौटाला और भजनलाल परिवारों का आमना-सामना नया नहीं है। इससे पहले भी दोनों परिवारों के बीच यहां से कई बार मुकाबला हो चुका है। 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने कुलदीप बिश्नोई को हराया था। वहीं, रणजीत चौटाला पूर्व सीएम भजनलाल के खिलाफ भी चुनाव लड़ चुके हैं। 

रणजीत की बात पर भव्य और समर्थकों ने साधा निशाना

इस बार रणजीत चौटाला ने एक बयान देकर दोनों धड़ों के बीच की खटास को और बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुझ पर विश्वास करते हैं। आधा घंटा पहले बुलाकर मुझे टिकट दिया। जिन टिकटों के लिए लंबी लाइन लगती है, वह मुझे एक झटके में मिल गई।" रणजीत के इस बयान पर कुलदीप बिश्नोई के बेटे और विधायक भव्य बिश्नोई के समर्थक मुकेश बिश्नोई ने सोशल मीडिया पर लिखा, "उसूलों पर जहां आंच आए, टकराना जरूरी है। जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है। हरियाणा के कद्दावर नेता कुलदीप बिश्नोई जल्द सबके बीच में होंगे, थोड़ा धैर्य बनाए रखें, राजनीतिक साजिशें करने वालों को कड़ा जवाब देंगे।" 

पार्टी छोड़ने की अटकलें, खट्टर जुटे समझाने में

कुलदीप बिश्नोई और उनके बेटे भव्य बिश्नोई ने पार्टी के कार्यक्रमों से भी किनारा कर लिया है। ऐसे में उनके पार्टी छोड़ने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी उन्हें मनाने के लिए जुटे हैं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा भजनलाल परिवार का महत्व बखूबी समझती है, क्योंकि भजनलाल और कुलदीप बिश्नोई हिसार से एक-एक लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। 

चुनावी आंकड़े ही कुलदीप के लिए बने बाधा

हालांकि, भाजपा ने कुलदीप बिश्नोई को टिकट नहीं देने के पीछे चुनावी आंकड़ों को वजह बताया है। 2019 में भव्य बिश्नोई कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़े थे और उन्हें सिर्फ 1 लाख 84 हजार वोट मिले थे, जो भाजपा के जीत के मार्जिन से भी कम थे। ऐसे में पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज किया। 

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