हरियाणा आज सिर्फ जय जवान जय किसान के लिए नहीं जाना जाता, आज जय जवान, जय किसान और जय विद्वान हरियाणा की पहचान है। हरियाणा में हुनर की कमी नहीं है। सिर्फ जरूरत है उसे पहचाने की। कभी अपने को हीन नहीं समझना। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि संघर्ष से डर कर बैठ नहीं जाना, बल्कि जीवन में कुछ करने के लिए जुनून के साथ आगे बढ़ना। उक्त बातें साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित हरियाणा के प्रख्यात कवि, लेखक, शिक्षक डॉ. संतराम देशवाल ने अपने साहित्यिक सफर अनुभव साझा करते हुए कही।डॉ. संतराम देशवाल शनिवार को हरियाणा थिंकर्स फोरम के तत्वावधान में पानीपत के हुडा सेक्टर 13-17, SCO -233 स्थित लेट्स- को कैफे में 'फाइटिंग फॉर ऑर गॉड्स' विषय पर आयोजित परिचर्चा में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।
हरियाणा हर क्षेत्र में अपना डंका बजा रहा
कार्यक्रम में मुख्य तौर पर हिंदू धर्म अथवा सनातन संस्कृति और हरियाणवी संस्कृति के साथ- साथ हिंदी साहित्य पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें प्रो देशवाल ने अपने जीवन के संघर्ष, अनुभव और उपलब्धियों को साझा करते हुए आज की युवा पीढ़ी को प्रेरणा दी कि बैठे बिठाये कुछ नहीं मिलेगा एयर पका-पकाया भी नहीं मिलेगा। आज का युवा AI जैसे टेक्नॉलॉजी से प्रभावित होकर अपनी भूलते जा रहे हैं। टेक्नॉलॉजी मानव दिमाग की ही क्रिएशन है, तो आम समझो अपनी ताकत और शक्ति को। आपके अंदर हुनर है, काबिलियत है, सिर्फ जरूरत है उसे पहचान कर साथ उस पर काम करने की। जिस हरियाणा के लोगों की प्रवृति को लोग 'अखड़' समझते है आज वो हरियाणा हर क्षेत्र में अपना डंका बजा रहा है, दूसरों की बातें सुनकर अपने को हीन कभी न समझें।
हरियाणा में पहली बार किसी साहित्यकार को पद्मश्री पुरस्कार मिला
उल्लेखनीय है कि हरियाणा (सोनीपत) के साहित्यकार डॉ. संतराम देशवाल को मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्होंने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। डॉ. देशवाल ने 30 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में पहली बार किसी साहित्यकार को यह पुरस्कार मिला है। साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देशवाल 30 से अधिक पुस्तकें लिखकर साहित्य साधना में जुटे हुए हैं। क़ाबिलेगौर है कि अब तक हरियाणावासी खेल, कृषि क्षेत्रों में यह पुरस्कार पाते रहे हैं, लेकिन यह पहला अवसर है, जब प्रदेश के किसी साहित्यकार एवं लेखक को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। बता दें कि गुरुग्राम पावर ग्रिड में उप महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत डॉ. संतराम देशवाल के बेटे ने अपनी पत्नी (विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार) के साथ मिलकर अपने पिता बताये उनकी ओर से पद्मश्री के लिए आवेदन किया था। 25 जनवरी को उनके नाम की घोषणा हुई तो उन्हें एकबारगी विश्वास ही नहीं हुआ। बाद में उनके बेटे ने फोन कर उन्हें सारा किस्सा सुनाया तब जाकर विश्वास हुआ।
स्कूल से लेकर कॉलेज-यूनिवर्सिटी तक का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा
डॉ. संतराम देशवाल ने कहा ने बताया कि उनका जन्म झज्जर के गांव खेड़का गुज्जर में हुआ था और छह साल की उम्र में पिता को खो दिया था और रोजाना 15 किलोमीटर का सफर कभी पैदल तो कभी साइकिल पर पूरा करते हुए स्कूल शिक्षा ग्रहण की। फीस के पैसे नहीं होते थे, मिट्टी के तेल के दीये की रोशनी में पढ़ते थे, बावजूद इसके उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक डिग्री हासिल करते चले गए। हिंदी व अंग्रेजी में एमए, एलएलबी, एमफिल, पीएचडी, अनुवाद में डिप्लोमा और जर्मन भाषा में डिप्लोमा किया है। स्कूल से लेकर कॉलेज-यूनिवर्सिटी तक का उनका सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा। सोनीपत के छोटूराम आर्य कॉलेज में 30 वर्ष से अधिक समय तक एसोसिएट प्रोफेसर रहे डॉ. देशवाल 30 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। इससे पहले डॉ. देशवाल को महाकवि सूरदास आजीवन साधना सम्मान, लोक साहित्य शिरोमणि सम्मान और लोक कवि मेहर सिंह पुरस्कार समेत एक दर्जन से अधिक सम्मान मिल चुके हैं।
साहित्य के क्षेत्र में पहला पद्म श्री मिलने से मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं
डॉ. संतराम देशवाल ने कहा कि बचपन से मन में था कि कुछ अलग करना है। बचपन से पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष किया। बावजूद इसके हिम्मत नहीं हारी और आज उसी हिम्मत ने पद्म श्री तक पहुंचा दिया। उन्होंने कहा मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे कभी पद्म श्री भी मिलेगा, आज हरियाणा को साहित्य के क्षेत्र में पहला पद्म श्री मिलने से मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। मैं युवाओं से आह्वान करता हूं कि वह भी साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़े और अपने हरियाणवी संस्कृति, हरियाणवी कला को अपनी लेखनी के माध्यम से दुनिया तक पहुंचाएं। पद्मश्री तक आप भी पहुंच सकते है।
मैं दूसरों को भी यही सलाह देता हूं कि कठिन समय में लेखन या रचनात्मक कार्य में डूब जाएं
डॉ. संतराम देशवाल की 70 वर्ष की जीवन गाथा बेहद प्रेरणादायी है, जो ये सिखाती है कि मेहनत, संयम-अनुशासन, सकारात्मक सोच, दृढ़ संकल्प शक्ति और सामाजिक सरोकार से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। लेखन की तरफ उनका रुझान कब और कैसे हुआ इस बारे में उन्होंने कहा कि मेरा लेखन सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरित है। लेखन अच्छा होने की वजह से अख़बारों की डिमांड पर उनको लेख भेजने लगे और अख़बारों में लेख छपते थे, तो उन्हें पढ़ने वाले बहुत से पाठक प्रभावित होते थे। फिर किसी ने किताब लिखनी की सलाह दी तो बस वहीं से किताबें लिखने का सफर शुरू हुआ।
उन्होंने कहा कि आज एक लेखक के रूप में उनका काम कविता, नवगीत, गजल, लोकगीत, लोक साहित्य, ललित निबंध, यात्रा वृत्तांत, संस्मरण, जीवनी आदि विभिन्न विधाओं में फैला हुआ है। उन्होंने कहा की परेशानियों में भी मैंने खुद को कभी परेशान नहीं दिखाया। मैंने कभी गहरी निराशा या अवसाद का अनुभव नहीं किया, लेकिन जब भी परेशानियां आईं, मैं लेखन में डूब गया। चाहे कविता हो, निबंध हो या कोई अन्य विधा, लेखन ने मेरा हर दु:ख भुला दिया। यह मेरा सबसे बड़ा सहारा रहा है। मैं दूसरों को भी यही सलाह देता हूं कि कठिन समय में लेखन या रचनात्मक कार्य में डूब जाएं।
मैं लोगों के बीच घुलमिल जाता हूं, चाहे वे सेल्फी लें या बात करें
उन्होंने अपनी पसंदीदा पंक्तियां 'मेहनत से मुकद्दर भी बदल जाते हैं, विश्वास से पत्थर भी पिघल जाते हैं... मेहनत करके तो देखो यारों, मेहनत से रास्ते भी बदल जाते हैं, बोले हुए युवाओं का हौंसला बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने आगे कहा कि अपने जीवन उन्होंने कभी अहंकार को पनपने नहीं दिया। कहा कि मैं सहज जीवन जीता हूं। मैं लोगों के बीच घुलमिल जाता हूं, चाहे वे सेल्फी लें या बात करें। मुझे लगता है कि समाज और ईश्वर सब देखता है, और मैं जैसा हूं, वही ठीक हूं। उन्होंने कार्यक्रम के अंत में युवाओं से यही अपील की कि काम को छोटा बड़ा नहीं होता, बस करने का जज़्बा चाहिए।
सामाजिक गतिविधियों में सक्रीय बनें, देश हित और समाज हित में अपनी विशेषताओं के अनुरूप सहभागिता निभाएं। कार्यक्रम में उपस्थित युवाओं और गणमान्यों से समाज, शिक्षा और अन्य कई मुद्दों पर डॉ संतराम देशवाल से सवाल भी किये, जिनका उन्होंने बेहद सहज और सरल शब्दों में जवाब दिया। प्रो अर्जुन सिंह कादियान ने डॉ संतराम देशवाल के प्रेरणादायी अनुभव को साझा करने और युवा का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनका धन्यवाद किया और भविष्य में भी इस चर्चा का आयोजन करते रहने ही बात कही।